मुलायम सिंह की बहू अपर्णा यादव बुधवार को भाजपा में शामिल हो गईं। भाजपा को इसकी मनोवैज्ञानिक बढ़त मिल सकती है। भाजपा इसे मुलायम परिवार में फूट के रूप में प्रचारित कर सकती है। पिछले विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव को चाचा शिवपाल यादव से नाराजगी का नुकसान उठाना पड़ा था। अपर्णा यादव को भाजपा में शामिल करते समय उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने इसका इशारा भी कर दिया है। उन्होंने कहा कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने परिवार को ही एकजुट नहीं रख पाए, तो उत्तर प्रदेश को क्या एकजुट रख पाएंगे। भाजपा की इस रणनीति से अखिलेश यादव को नुकसान हो सकता है। हालांकि, भाजपा का एक बड़ा विकट उखाड़कर समाजवादी पार्टी इसका करारा जवाब देने की तैयारी कर चुकी है।
कैंट सीट से लड़ सकती हैं अपर्णा
भाजपा सूत्रों के अनुसार, अपर्णा यादव को पार्टी लखनऊ कैंट सीट से मैदान में उतार सकती है। इस बारे में पार्टी से आश्वासन मिलने के बाद ही अपर्णा यादव ने भाजपाई खेमे में आना स्वीकार किया है। पार्टी की चुनाव समिति की होने वाली बैठक में इस पर निर्णय हो सकता है। उत्तराखंड के लोगों की बहुलता वाली कैंट सीट मूलरूप से उत्तराखंड की रहीं अपर्णा के लिए बेहद मुफीद साबित हो सकती है। पिछले विधानसभा चुनाव में वे इसी सीट से उम्मीदवार थीं, लेकिन उन्हें भाजपा प्रत्याशी रीता बहुगुणा से हार का सामना करना पड़ा था।
रीता बहुगुणा जोशी ने बाद में इस सीट से इस्तीफा देकर प्रय़ागराज से लोकसभा का चुनाव लड़ा था और विजयी रही थीं। वे इस बार इसी सीट से अपने बेटे मयंक जोशी के लिए टिकट मांग रही हैं। बेटे को टिकट देने के लिए रीता बहुगुणा जोशी ने अपने सांसद पद से इस्तीफा देने तक की पेशकश कर दी है। इस तरह भाजपा नेतृत्व के सामने अपर्णा यादव और रीता बहुगुणा जोशी के बीच तालमेल बिठाना कठिन हो सकता है। लेकिन इसका हल भाजपा एक उम्मीदवार को मैदान में उतारकर, तो दूसरे को विधान परिषद के जरिए सदन में लाकर कर सकती है।
माना जा रहा है कि भाजपा अपर्णा यादव को चुनाव में उतारने की रणनीति अपनाएगी। इससे बार-बार अपर्णा यादव के जरिए मीडिया में सुर्खियां मिलती रहेंगी और मुलायम परिवार में टूट होने का मनोवैज्ञानिक संदेश दिया जाता रहेगा। इसका अखिलेश यादव को नुकसान होगा। हालांकि, अखिलेश यादव ने भाजपा पर यह कहकर हमला करने की कोशिश की है कि भाजपा को उनके परिवार की चिंता ज्यादा है।
सपा चुप नहीं बैठेगी
अखिलेश यादव को पता है कि पिछले विधानसभा चुनाव में चाचा शिवपाल यादव की नाराजगी से जनता के बीच बेहद नकारात्मक संदेश गया था और उन्हें इसका बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था। शिवपाल यादव के अलग चुनाव लड़ने से उनके एक भी प्रत्याशी भले ही चुनाव न जीत पाए हों, लेकिन समाजवादी पार्टी के दर्जनों उम्मीदवार बेहद कम मार्जिन से हार गए। अखिलेश यादव को पता है कि अपर्णा यादव के प्रकरण से उनका सिसायी नुकसान हो सकता है। लिहाजा सपा भाजपा पर पलटवार करने की रणनीति पर काम करने में जुट गई है।
सपा के एक बड़े नेता के अनुसार, अपर्णा यादव मुलायम परिवार का बड़ा नाम नहीं हैं। वे राजनीतिक तौर पर अखिलेश यादव, रामगोपाल यादव, धर्मेंद्र यादव की तरह सक्रिय नहीं रही हैं, लिहाजा उनके भाजपा में जाने से परिवार को कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा। वहीं, नेता के दावे के अनुसार, भाजपा के दो बड़े नेता अभी भी सपा से संपर्क में हैं और उनके सपा में आने का फॉर्मूला तय कर पार्टी इसका एलान करेगी। यह भाजपा को अपर्णा यादव प्रकरण का जवाब होगा। भाजपा के कई नेताओं को सपा से जोड़कर अखिलेश यादव ने इसकी शुरुआत भी कर दी है।
विस्तार
मुलायम सिंह की बहू अपर्णा यादव बुधवार को भाजपा में शामिल हो गईं। भाजपा को इसकी मनोवैज्ञानिक बढ़त मिल सकती है। भाजपा इसे मुलायम परिवार में फूट के रूप में प्रचारित कर सकती है। पिछले विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव को चाचा शिवपाल यादव से नाराजगी का नुकसान उठाना पड़ा था। अपर्णा यादव को भाजपा में शामिल करते समय उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने इसका इशारा भी कर दिया है। उन्होंने कहा कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने परिवार को ही एकजुट नहीं रख पाए, तो उत्तर प्रदेश को क्या एकजुट रख पाएंगे। भाजपा की इस रणनीति से अखिलेश यादव को नुकसान हो सकता है। हालांकि, भाजपा का एक बड़ा विकट उखाड़कर समाजवादी पार्टी इसका करारा जवाब देने की तैयारी कर चुकी है।
कैंट सीट से लड़ सकती हैं अपर्णा
भाजपा सूत्रों के अनुसार, अपर्णा यादव को पार्टी लखनऊ कैंट सीट से मैदान में उतार सकती है। इस बारे में पार्टी से आश्वासन मिलने के बाद ही अपर्णा यादव ने भाजपाई खेमे में आना स्वीकार किया है। पार्टी की चुनाव समिति की होने वाली बैठक में इस पर निर्णय हो सकता है। उत्तराखंड के लोगों की बहुलता वाली कैंट सीट मूलरूप से उत्तराखंड की रहीं अपर्णा के लिए बेहद मुफीद साबित हो सकती है। पिछले विधानसभा चुनाव में वे इसी सीट से उम्मीदवार थीं, लेकिन उन्हें भाजपा प्रत्याशी रीता बहुगुणा से हार का सामना करना पड़ा था।
रीता बहुगुणा जोशी ने बाद में इस सीट से इस्तीफा देकर प्रय़ागराज से लोकसभा का चुनाव लड़ा था और विजयी रही थीं। वे इस बार इसी सीट से अपने बेटे मयंक जोशी के लिए टिकट मांग रही हैं। बेटे को टिकट देने के लिए रीता बहुगुणा जोशी ने अपने सांसद पद से इस्तीफा देने तक की पेशकश कर दी है। इस तरह भाजपा नेतृत्व के सामने अपर्णा यादव और रीता बहुगुणा जोशी के बीच तालमेल बिठाना कठिन हो सकता है। लेकिन इसका हल भाजपा एक उम्मीदवार को मैदान में उतारकर, तो दूसरे को विधान परिषद के जरिए सदन में लाकर कर सकती है।
माना जा रहा है कि भाजपा अपर्णा यादव को चुनाव में उतारने की रणनीति अपनाएगी। इससे बार-बार अपर्णा यादव के जरिए मीडिया में सुर्खियां मिलती रहेंगी और मुलायम परिवार में टूट होने का मनोवैज्ञानिक संदेश दिया जाता रहेगा। इसका अखिलेश यादव को नुकसान होगा। हालांकि, अखिलेश यादव ने भाजपा पर यह कहकर हमला करने की कोशिश की है कि भाजपा को उनके परिवार की चिंता ज्यादा है।
सपा चुप नहीं बैठेगी
अखिलेश यादव को पता है कि पिछले विधानसभा चुनाव में चाचा शिवपाल यादव की नाराजगी से जनता के बीच बेहद नकारात्मक संदेश गया था और उन्हें इसका बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था। शिवपाल यादव के अलग चुनाव लड़ने से उनके एक भी प्रत्याशी भले ही चुनाव न जीत पाए हों, लेकिन समाजवादी पार्टी के दर्जनों उम्मीदवार बेहद कम मार्जिन से हार गए। अखिलेश यादव को पता है कि अपर्णा यादव के प्रकरण से उनका सिसायी नुकसान हो सकता है। लिहाजा सपा भाजपा पर पलटवार करने की रणनीति पर काम करने में जुट गई है।
सपा के एक बड़े नेता के अनुसार, अपर्णा यादव मुलायम परिवार का बड़ा नाम नहीं हैं। वे राजनीतिक तौर पर अखिलेश यादव, रामगोपाल यादव, धर्मेंद्र यादव की तरह सक्रिय नहीं रही हैं, लिहाजा उनके भाजपा में जाने से परिवार को कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा। वहीं, नेता के दावे के अनुसार, भाजपा के दो बड़े नेता अभी भी सपा से संपर्क में हैं और उनके सपा में आने का फॉर्मूला तय कर पार्टी इसका एलान करेगी। यह भाजपा को अपर्णा यादव प्रकरण का जवाब होगा। भाजपा के कई नेताओं को सपा से जोड़कर अखिलेश यादव ने इसकी शुरुआत भी कर दी है।