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20 वीं सदी में भारत ने कई महान व्यक्तित्व पैदा किए हैं जिनमें से एक थे देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद। साल 1950 में जब देश में गणतंत्र लागू हुआ तो उन्हें देश का पहला राष्ट्रपति चुना गया। देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की आज 55वीं पुण्यतिथि है।
राजेंद्र प्रसाद 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में पैदा हुए थे जबकि उनकी मृत्यु 28 फरवरी 1963 को हुई थी। दोस्त और जानने वाले सभी उनको प्यार से बाबू राजेंद्र प्रसाद बुलाते थे।
शुरुआती पढ़ाई छपरा में करने के बाद उनकी पूरी पढ़ाई कलकत्ता में हुई थी। उनकी आत्मकथा के अनुसार शादी के बाद उन्होंने लॉ में मास्टर्स की डिग्री हासिल की थीऔर बाद में पीएचडी की। उन्हें बचपन से ही जल्दी सोने की आदत थी और वह सुबह जल्दी उठते थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि लाख कोशिशों के बाद भी वह रात आठ बजते-बजते सो जाते थे। एक दो बार जब उन्होंने जागने की कोशिश की तो वह पढ़ते पढ़ते गिर गए थे। राजेंद्र बाबू की इस आदत से उनकी मां भी हैरान थीं।
महज 13 साल की उम्र में उनकी शादी राजवंशी देवी से हो गई थी।
पढ़ाई के दौरान ही उनकी मुलाकात गोपाल कृष्ण गोखले सहित स्वतंत्रता संग्राम में जुड़े कई लोगों से हुई। उसके बाद वह स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए बेचैन हो गए। उन्होंने लिखा है कि साल 1934 में जब बिहार में आए भूकंप और बाढ़ के दौरान उन्होंने राहत कार्य में अहम भूमिका निभाई। आजादी की लड़ाई के दौरान वह कई बार जेल भी गए।
साल 1934 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में अध्यक्ष चुन लिया गया। तब नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने इस पद से इस्तीफा दिया था। यह बेहद कठिन समय था। ऐसे में उन्होंने पद का निर्वाह बेहद सरल और निष्ठापूर्वक किया।
उन्होंने कलकत्ता हाई कोर्ट में अपनी वकालत की प्रैक्टिस शूरू की बाद में पटना अपना ट्रांसफर लिया। वह महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे और उन्होंने भारतीय नेशनल कांग्रेस को ज्वाइन किया। 26 जनवरी 1950 को 10.24 की सुबह उन्होंने देश के राष्ट्रपति पदभार ग्रहण किया।
1952 में जब चुनाव हुआ तो वह स्वतंत्र भारत के राष्ट्रपति चुने गए वहीं 1957 में भी उन्हें ही राष्ट्रपति पद के लिए चुना गया। उन्होंने 1962 में सार्वजनिक जीवन से सेवानिवृत्ति ली। राजेंद्र प्रसाद के लिए दो बातें जो बहुत प्रसिद्ध हुई जिसमें उनके लिए कहा गया था कि 'एक्जामिनी इज बेटर देन एक्जामनर' यानी परीक्षा देने वाला कॉपी जांचने वाले से बेहतर है।
वहीं राजेंद्र बाबू देश के पहले ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्होंने देश के सुदूर राज्यों में बसे गरीबों तक पहुंचने के लिए ट्रेन से यात्रा की। यह पूरी यात्रा पांच महीने तक की थी। इस यात्रा के दौरान वो छोटे-छोटे स्टेशनों पर भी रुके जहां उनसे मिलने गांव के गरीब किसान आते थे और वो उन सभी को बहुत आराम से सुनते थे।
वहीं उन्होंने जब 1962 में राजनीति और सार्वजनिक जीवन से सन्यास लेने की सोची तब उन्होंने दिल्ली की राम लीला मैदान में लोगों को संबोधित किया। उस समय लाखों लोग उन्हें सुनने पहुंचे। उन्होंने उस समय लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि आप मेरी गलतियों के लिए मुझे माफ कर दीजिएगा।
20 वीं सदी में भारत ने कई महान व्यक्तित्व पैदा किए हैं जिनमें से एक थे देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद। साल 1950 में जब देश में गणतंत्र लागू हुआ तो उन्हें देश का पहला राष्ट्रपति चुना गया। देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की आज 55वीं पुण्यतिथि है।
राजेंद्र प्रसाद 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में पैदा हुए थे जबकि उनकी मृत्यु 28 फरवरी 1963 को हुई थी। दोस्त और जानने वाले सभी उनको प्यार से बाबू राजेंद्र प्रसाद बुलाते थे।
शुरुआती पढ़ाई छपरा में करने के बाद उनकी पूरी पढ़ाई कलकत्ता में हुई थी। उनकी आत्मकथा के अनुसार शादी के बाद उन्होंने लॉ में मास्टर्स की डिग्री हासिल की थीऔर बाद में पीएचडी की। उन्हें बचपन से ही जल्दी सोने की आदत थी और वह सुबह जल्दी उठते थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि लाख कोशिशों के बाद भी वह रात आठ बजते-बजते सो जाते थे। एक दो बार जब उन्होंने जागने की कोशिश की तो वह पढ़ते पढ़ते गिर गए थे। राजेंद्र बाबू की इस आदत से उनकी मां भी हैरान थीं।
महज 13 साल की उम्र में उनकी शादी राजवंशी देवी से हो गई थी।
पढ़ाई के दौरान ही उनकी मुलाकात गोपाल कृष्ण गोखले सहित स्वतंत्रता संग्राम में जुड़े कई लोगों से हुई। उसके बाद वह स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए बेचैन हो गए। उन्होंने लिखा है कि साल 1934 में जब बिहार में आए भूकंप और बाढ़ के दौरान उन्होंने राहत कार्य में अहम भूमिका निभाई। आजादी की लड़ाई के दौरान वह कई बार जेल भी गए।
rajendra prasad
साल 1934 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में अध्यक्ष चुन लिया गया। तब नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने इस पद से इस्तीफा दिया था। यह बेहद कठिन समय था। ऐसे में उन्होंने पद का निर्वाह बेहद सरल और निष्ठापूर्वक किया।
उन्होंने कलकत्ता हाई कोर्ट में अपनी वकालत की प्रैक्टिस शूरू की बाद में पटना अपना ट्रांसफर लिया। वह महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे और उन्होंने भारतीय नेशनल कांग्रेस को ज्वाइन किया। 26 जनवरी 1950 को 10.24 की सुबह उन्होंने देश के राष्ट्रपति पदभार ग्रहण किया।
1952 में जब चुनाव हुआ तो वह स्वतंत्र भारत के राष्ट्रपति चुने गए वहीं 1957 में भी उन्हें ही राष्ट्रपति पद के लिए चुना गया। उन्होंने 1962 में सार्वजनिक जीवन से सेवानिवृत्ति ली। राजेंद्र प्रसाद के लिए दो बातें जो बहुत प्रसिद्ध हुई जिसमें उनके लिए कहा गया था कि 'एक्जामिनी इज बेटर देन एक्जामनर' यानी परीक्षा देने वाला कॉपी जांचने वाले से बेहतर है।
वहीं राजेंद्र बाबू देश के पहले ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्होंने देश के सुदूर राज्यों में बसे गरीबों तक पहुंचने के लिए ट्रेन से यात्रा की। यह पूरी यात्रा पांच महीने तक की थी। इस यात्रा के दौरान वो छोटे-छोटे स्टेशनों पर भी रुके जहां उनसे मिलने गांव के गरीब किसान आते थे और वो उन सभी को बहुत आराम से सुनते थे।
वहीं उन्होंने जब 1962 में राजनीति और सार्वजनिक जीवन से सन्यास लेने की सोची तब उन्होंने दिल्ली की राम लीला मैदान में लोगों को संबोधित किया। उस समय लाखों लोग उन्हें सुनने पहुंचे। उन्होंने उस समय लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि आप मेरी गलतियों के लिए मुझे माफ कर दीजिएगा।