कहते हैं कि अनुभव, जानकारी और उसकी प्रस्तुति का तरीका छाप छोड़ ही देता है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इसी मेधा पर मुस्करा रहे हैं। मुस्कराएं भी क्यों न? पीएम मोदी ने मुख्यमंत्रियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में चर्चा के दौरान कोविड-19 से लड़ने में तारीफ जो कर दी।
राजनीतिक गलियारे में इसके खूब माने भी निकाले जा रहे हैं। प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों से पहली चर्चा 22 अप्रैल को जनता कर्फ्यू के दौरान की थी। बताते हैं तब से चौथी चर्चा तक गहलोत बढ़त बनाए हुए हैं। कम संसाधनों में गहलोत की टीम ने भीलवाड़ा मॉडल, जयपुर का रामगंज मॉडल तो चर्चा में ला दिया है, इसके साथ गहलोत ने ही सबसे पहले राज्यों को वित्तीय संसाधन देने, जीएसटी बकाए का भुगतान करने, केंद्र सरकार को जांच के लिए किट, रैपिड टेस्ट किट आदि खरीदकर राज्यों में वितरित करने का भी सुझाव दिया।
अशोक गहलोत ही ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने राजस्थान में चीन से आई रैपिड टेस्ट किट से जांच रोकने का फैसला लिया। आईसीएमआर और केंद्र सरकार से इसके खराब गुणवत्ता की शिकायत भी की। दरअसल इस तारीफ में राजस्थान के मुख्यमंत्री ही नहीं हैं, चीन से आई किट की राजनीतिक डिप्लोमेसी भी छिपी है।
वक्त की नजाकत समझ रही हैं ममता
आक्रामक राजनीति करने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बकाया नहीं रखती। राजनीति में सूद समेत वापस करने के लिए जानी जाती हैं। लेकिन जैसे-जैसे प. बंगाल के चुनाव नजदीक आ रहे हैं ममता भी वक्त की नजाकत समझ रही हैं।
सोमवार को ममता बनर्जी ने न केवल प्रधानमंत्री के साथ चर्चा कर रहे मुख्यमंत्रियों बल्कि तमाम राजनीतिक पंडितों को भी हैरान कर दिया। ममता बनर्जी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में शरीक हुईं। पूरे तीन घंटे तक बैठी रहीं। न कोई मुद्दा उठाया और न ही अपनी बात कही।
जबकि सबको उम्मीद थी कि केंद्र सरकार की टीम से खफा ममता पहले खुद नहीं शामिल होंगी। ममता की यह नाराजगी जितना केंद्र सरकार द्वारा अचानक बिना विश्वास में लिए टीम भेजने से है, उतना ही वह केंद्र सरकार के अधिकारी अपूर्व चंद्रा की रिपोर्ट और उसके सार्वजनिक होने से नाराज हैं।
ऐसे में समझा जा रहा था कि उनका (ममता) कोई प्रतिनिधि शामिल होगा। लेकिन अपनी नाराजगी जरूर दर्ज कराएंगी। ममता ने इन तीनों संभावनाओं पर पानी फेर दिया। जबकि प्रधानमंत्री के साथ बैठक में न केवल केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्ष वर्धन थे, बल्कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी मौजूद थे।
बुरे फंसे नीतीश
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बुरे फंस गए हैं। नीतीश कुमार की बड़ी परेशानी का कारण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कदम हैं। योगी अपना ग्राफ तो बढ़ा रहे हैं, लेकिन राज्य में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के कारण नीतीश का संकट दोगुना की गति से बढ़ रहा है।
योगी का अपना गढ़ उत्तर प्रदेश का गोरखपुर मंडलीय परिक्षेत्र बिहार से सटा है। पूर्वांचल की जब बात आती है तो यह बिहार के नेपाल सीमा से सटे रक्सौल तक का क्षेत्र कवर कर लेता है। इधर इलाका पिछड़ा है और सबसे ज्यादा मजदूरों का दूसरे राज्यों में पलायन होता है।
समृद्ध लोगों के बच्चे भी बाहर ही पढ़ते हैं। योगी ने मार्च के आखिरी सप्ताह में गरीब मजदूरों को लाने के लिए बसों को आनंद विहार भेजने की घोषणा कर दी थी। अप्रैल के दूसरे सप्ताह में योगी कोटा से छात्रों को भी राज्य में ले गए।
पिछले दो-तीन दिन से उत्तर प्रदेश की बसें विभिन्न राज्यों से पहुंच रहे गरीब मजदूरों को ढो रही हैं। तीनों कदम योगी ने लॉकडाऊन के दौरान ही उठाए और तीनों बार नीतीश ने अपना निर्णय सुनाकर इसका विरोध भी किया।
पहली बार सफल हो गए थे, लेकिन दो बार से हाथ खाली हैं। मध्य प्रदेश समेत तमाम राज्यों ने भी ऐसा ही कदम उठा लिया है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी पहल शुरू कर दी है। बताते हैं ऐसे में नीतीश कुमार पर भी दबाव काफी बढ़ गया है। वैसे भी बिहार के मजदूर देश के लगभगल सभी राज्यों में फैले हैं।
इन्हें लाने के खर्च का भी नीतीश को अंदाजा है। अब ऐसे में नीतीश करें तो क्या? प्रधानमंत्री से गुहार लगाने के सिवा चारा ही क्या है? लेकिन सुनवाई वहां भी नहीं हो रही है।
फिर मोर्चे पर राहुल गांधी
कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी मिशन राफेल में भले फेल हो गए हों, लेकिन लंबे एकांतवास के बाद अब वह फिर सरकार के खिलाफ मोर्चे पर आ डटे हैं। उन्हें इस बार बाजी जीतने का भरोसा हो रहा है।
इस बार राहुल के इस अभियान में कांग्रेस पार्टी की युवा और वरिष्ठ नेताओं की मिली जुली टीम भी शामिल है। राहुल गांधी कोविड-19 संक्रमण रोकने में केंद्र सरकार की विफलताओं पर बारीकी से नजर गड़ाए हैं, तो साथ ही टीम राहुल ने वित्तीय मामले में भी बड़ी तैयारी की है।
राहुल की निगाह केंद्र सरकार के राहत पैकेज पर टिकी है। वह मई के महीने तक का इंतजार भी करना चाह रहे हैं। टीम राहुल का मानना है कि मोदी सरकार तमाम प्रयास के बावजूद कोविड-19 संक्रमण की जांच में अहम रोल नहीं निभा पा रही है।
सरकार का एक मात्र हथियार लॉकडाउन है और यह निम्न, मध्य वर्ग पर करारी चोट करने वाला है। तमाम क्षेत्र में बड़ी बेरोजगारी आएगी। चीन से मंगाई गई जांच किटों की कीमतों का विवाद और रिजर्व बैंक द्वारा भगोड़े मेहुल चोकसी समेत 50 लोन डिफाल्टरों की 68 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा की कर्ज माफी को राहुल गांधी ने सरकार के खिलाफ एक हथियार बना लिया है।
टीम राहुल को लग रहा है कि इससे जनता में भी गुस्सा बढ़ेगा और उन्हें उम्मीद है कि कांग्रेस को इसका फायदा नोटबंदी, जीएसटी के बाद गुजरात में हुए विधानसभा चुनाव में बने माहौल की तरह मिलेगा।
कहते हैं कि अनुभव, जानकारी और उसकी प्रस्तुति का तरीका छाप छोड़ ही देता है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इसी मेधा पर मुस्करा रहे हैं। मुस्कराएं भी क्यों न? पीएम मोदी ने मुख्यमंत्रियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में चर्चा के दौरान कोविड-19 से लड़ने में तारीफ जो कर दी।
राजनीतिक गलियारे में इसके खूब माने भी निकाले जा रहे हैं। प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों से पहली चर्चा 22 अप्रैल को जनता कर्फ्यू के दौरान की थी। बताते हैं तब से चौथी चर्चा तक गहलोत बढ़त बनाए हुए हैं। कम संसाधनों में गहलोत की टीम ने भीलवाड़ा मॉडल, जयपुर का रामगंज मॉडल तो चर्चा में ला दिया है, इसके साथ गहलोत ने ही सबसे पहले राज्यों को वित्तीय संसाधन देने, जीएसटी बकाए का भुगतान करने, केंद्र सरकार को जांच के लिए किट, रैपिड टेस्ट किट आदि खरीदकर राज्यों में वितरित करने का भी सुझाव दिया।
अशोक गहलोत ही ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने राजस्थान में चीन से आई रैपिड टेस्ट किट से जांच रोकने का फैसला लिया। आईसीएमआर और केंद्र सरकार से इसके खराब गुणवत्ता की शिकायत भी की। दरअसल इस तारीफ में राजस्थान के मुख्यमंत्री ही नहीं हैं, चीन से आई किट की राजनीतिक डिप्लोमेसी भी छिपी है।