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Gujarat Elections: भावनगर में भगवा गढ़ बरकरार रखने की चुनौती, आप व कांग्रेस ने पेचीदा बनाया समीकरण

महेंद्र तिवारी, भावनगर। Published by: देव कश्यप Updated Wed, 30 Nov 2022 06:32 AM IST
सार

भावनगर जिले में आप और कांग्रेस ने जातीय समीकरण के हिसाब से प्रत्याशी उतार कर भाजपा के लिए पेचीदा समीकरण बना दिया है। पिछले दो चुनावों से भाजपा को सात में छह सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार महंगाई व शिक्षा बड़ा मुद्दा हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। - फोटो : ANI

विस्तार

पहले चरण की जिन 19 जिलों की 89 सीटों पर एक दिसंबर को वोट डाले जाएंगे, उनमें सूरत और राजकोट के बाद सबसे ज्यादा विधानसभा सीटों वाला भावनगर है। सात विधानसभा सीटों वाला यह जिला भाजपा का गढ़ बना हुआ है। वर्ष 2012 और 2017 के चुनाव में यहां भाजपा ने छह-छह सीटें जीती थी। दोनों बार एक-एक सीट कांग्रेस के खाते में गई थी। इस बार कांग्रेस और आप की दोहरी चुनौती के बीच गढ़ को बचाने के लिए भाजपा ने सारे दांव चल दिए हैं। चुनाव की घोषणा के बाद पीएम नरेंद्र मोदी तीन बार भावनगर आ चुके हैं। दो सीटों के प्रत्याशी भी बदल दिए गए हैं।



पलिटाना में जहां मोदी ने पहले चरण का चुनाव प्रचार खत्म होने से एक दिन पहले सोमवार को चुनावी जनसभा कर कांग्रेस को घेरा था, वहां की राधाबेन बताती हैं, यहां चुनाव ठीक चल रहा है। मोदी भाई का भावनगर से खास जुड़ाव है। वह प्रचार अभियान के प्रारंभ से अब तक तीन बार इस जिले में आ चुके हैं। चुनाव घोषणा के तत्काल बाद वह भावनगर में एक सामूहिक विवाह कार्यक्रम (पापा की परी) में शामिल होने आए थे। उस कार्यक्रम में ऐसी तमाम बेटियों का विवाह हुआ था जिनके पिता नहीं हैं।


इतने बड़े पद पर होकर कोई अपना मानकर ही समय निकालता है। इसके बाद 23 नवंबर और 28 नवंबर (बीते सोमवार) को चुनाव प्रचार के लिए आए, तो सभी को वोट देने की अपील कर गए हैं। भावनगर कस्बे के कॉलेज स्टूडेंट अतीश कहते हैं कि, मोदी जी ने यह सही कहा है कि जब कांग्रेस राज था, तब गुजरात में बम विस्फोट बहुत आम थे। अब लोग सुरक्षित महसूस करते हैं। यह बहुत बड़ी बात है और लोगों के दिमाग में भी है। वह कहते हैं कि मोदी पर गुजरातियों को गर्व है। लेकिन, गुजरात में भाजपा कोई ऐसा पक्का नेता नहीं बनाती जो खुलकर कुछ कर पाए। बार-बार मुख्यमंत्री बदल देते हैं। मोदी के पीएम बनने के बाद तीन सीएम बनाए जा चुके हैं। ऐन चुनाव के वक्त दूसरे दल से लोगों को लाकर टिकट दे देते हैं, सालों से कार्यकर्ता बनकर काम करने वाले मुंह ताकते रह जाते हैं। यह अच्छा नहीं है। इस बार मोदी जी के नाम पर भले आ जाएं, ऐसे रहा तो आगे मुश्किल हो जाएगी। 
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