दिल्ली हिंसा में पुलिस की चुप्पी पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। पीड़ितों का कहना है कि पुलिस लगातार तीन दिन तक दंगा प्रभावित क्षेत्रों में नहीं आई और उपद्रवी जान-माल को आग लगाते रहे। हिंसा प्रभावित कई इलाकों पर पुलिस के मूक दर्शक बने रहने का भी आरोप है।
मंगलवार को हुई हिंसा के दौरान उत्तर-पूर्वी दिल्ली के एक इलाके में डूयूटी पर तैनात एक अधिकारी के मुताबिक मामला लगातार बिगड़ रहा था। मौके पर भीड़ उग्र होती जा रही थी। दोनों ही पक्षों से पत्थरबाजी लगातार बढ़ती जा रही थी। कई वाहनों को आग लगाई जा चुकी थी।
सूत्रों का कहना है कि पुलिस अधिकारियों ने वरिष्ठ अधिकारियों को स्थिति बिगड़ने की सूचना दी थी और हालात को काबू करने के लिए फायरिंग करने की इजाजत मांगी थी, लेकिन अधिकारियों ने भीड़ पर फायरिंग करने का आदेश देने से साफ इनकार कर दिया।
अधिकारी के मुताबिक अगर फायरिंग की इजाजत मिल गई होती, तो दंगों में इतने लोगों की जान नहीं जाती। अधिकारियों ने अंतिम समय तक स्थिति को संभालने के लिए शांतिपूर्ण तरीका के इस्तेमाल पर ही जोर दिया।
हालात बिगड़ने का था अंदेशा
जानकारी के मुताबिक दिल्ली पुलिस को हालात बिगड़ने का अंदेशा पहले से था। इसके संदर्भ में खुफिया सूत्रों की रिपोर्ट पहले ही आ चुकी थी। लेकिन स्थिति इस हद तक बिगड़ सकती है, यह भांपने में उच्च अधिकारी पूरी तरह नाकाम रहे। अगर इसी समय कुछ विशेष लोगों को काबू में कर लिया गया होता तो दिल्ली में दंगों की आग नहीं भड़कती।
सीसीटीवी और सोशल मीडिया के वीडियो पुलिस के पास
दंगों की जांच के दौरान पुलिस ने इलाकों के सीसीटीवी फुटेज कब्जे में ले लिए हैं। सोशल मीडिया में चल रहे वीडियोज को भी पुलिस ने अपनी निगरानी में शामिल कर लिया है। पुलिस का मानना है कि इन माध्यमों से वह अपराधियों तक पहुंचने में वह कामयाब रहेगी। इसके लिए कॉल रिकॉर्ड भी खंगाले जा रहे हैं।
दिल्ली दंगों के सबसे ज्यादा पीड़ितों का इलाज गुरू तेग बहादुर अस्पताल में हुआ है और यहीं पर सबसे ज्यादा लोगों की मौत भी हुई है। गुरुवार देर शाम तक अस्पताल में कुल 215 दंगा पीड़ितों को लाया जा चुका है। इनमें नौ पीड़ितों की इलाज के दौरान मौत हो चुकी है जबकि 25 पीड़ितों को ‘मृत लाया हुआ (ब्राट डेड)’ घोषित किया गया था। इस तरह अस्पताल से 34 लोगों के मौत की खबर है। अस्पताल में अभी भी 51 पीड़ितों का इलाज चल रहा है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार दिल्ली दंगों में दोनों ही पक्षों को नुकसान हुआ है। दोनों ही पक्षों के लोगों को जान-माल का नुकसान उठाना पड़ा है। लेकिन इसी बीच यह संतोषजनक खबर सामने आई है कि प्रशासन की सतर्कता बढ़ने के बाद गुरुवार को चौथे दिन किसी भी क्षेत्र से हिंसा की कोई ताजा घटना नहीं घटी है। इससे लोगों ने राहत की सांस ली है।
पटपड़गंज के एक प्राइवेट अस्पताल में चल रहे दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी अमित शर्मा की तबियत में भी सुधार हुआ है। उन्हें आईसीयू से बाहर निकाल दिया गया है और अब उनकी हालत में तेजी से सुधार हो रहा है। इस अस्पताल में कुल ग्यारह लोगों को भर्ती किया गया था। इसमें आठ लोगों को इलाज कर छुट्टी दी जा चुकी है जबकि डीसीपी सहित तीन लोगों का इलाज अभी भी चल रहा है।
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दिल्ली हिंसा में पुलिस की चुप्पी पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। पीड़ितों का कहना है कि पुलिस लगातार तीन दिन तक दंगा प्रभावित क्षेत्रों में नहीं आई और उपद्रवी जान-माल को आग लगाते रहे। हिंसा प्रभावित कई इलाकों पर पुलिस के मूक दर्शक बने रहने का भी आरोप है।
मंगलवार को हुई हिंसा के दौरान उत्तर-पूर्वी दिल्ली के एक इलाके में डूयूटी पर तैनात एक अधिकारी के मुताबिक मामला लगातार बिगड़ रहा था। मौके पर भीड़ उग्र होती जा रही थी। दोनों ही पक्षों से पत्थरबाजी लगातार बढ़ती जा रही थी। कई वाहनों को आग लगाई जा चुकी थी।
सूत्रों का कहना है कि पुलिस अधिकारियों ने वरिष्ठ अधिकारियों को स्थिति बिगड़ने की सूचना दी थी और हालात को काबू करने के लिए फायरिंग करने की इजाजत मांगी थी, लेकिन अधिकारियों ने भीड़ पर फायरिंग करने का आदेश देने से साफ इनकार कर दिया।
अधिकारी के मुताबिक अगर फायरिंग की इजाजत मिल गई होती, तो दंगों में इतने लोगों की जान नहीं जाती। अधिकारियों ने अंतिम समय तक स्थिति को संभालने के लिए शांतिपूर्ण तरीका के इस्तेमाल पर ही जोर दिया।
हालात बिगड़ने का था अंदेशा
जानकारी के मुताबिक दिल्ली पुलिस को हालात बिगड़ने का अंदेशा पहले से था। इसके संदर्भ में खुफिया सूत्रों की रिपोर्ट पहले ही आ चुकी थी। लेकिन स्थिति इस हद तक बिगड़ सकती है, यह भांपने में उच्च अधिकारी पूरी तरह नाकाम रहे। अगर इसी समय कुछ विशेष लोगों को काबू में कर लिया गया होता तो दिल्ली में दंगों की आग नहीं भड़कती।
सीसीटीवी और सोशल मीडिया के वीडियो पुलिस के पास
दंगों की जांच के दौरान पुलिस ने इलाकों के सीसीटीवी फुटेज कब्जे में ले लिए हैं। सोशल मीडिया में चल रहे वीडियोज को भी पुलिस ने अपनी निगरानी में शामिल कर लिया है। पुलिस का मानना है कि इन माध्यमों से वह अपराधियों तक पहुंचने में वह कामयाब रहेगी। इसके लिए कॉल रिकॉर्ड भी खंगाले जा रहे हैं।