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CRPF Constable was on fake attachment for months on verbal orders
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CRPF: महीनों से फर्जी अटैचमेंट पर था हवलदार, निजी झगड़े में गोली चलाई तो फूटा भांडा
CRPF: सीआरपीएफ में दर्जनों जवानों को महज एक मौखिक आदेश पर लंबे समय के लिए रसूखदार अफसरों या दूसरे वीवीआईपी के यहां भेज दिया जाता है। कई मामलों में तो यह तैनाती कई वर्षों तक चलती रहती है, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं होती कि उस पर कोई कड़ा कदम उठा सके...
देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल 'सीआरपीएफ' में एक कथित फर्जी अटैचमेंट का मामला सामने आया है। सीआरपीएफ की 230वीं बटालियन, जो छत्तीसगढ़ में तैनात है, वहां का एक ड्राइवर 'हवलदार' मो. तारिक, कई महीनों से यूपी के इलाहाबाद में तैनात है। लंबे समय से चल रहा ये मामला किसी की पकड़ में नहीं आता, यदि वह ड्राइवर अपने निजी झगड़े में फायर नहीं करता। पुलिस केस हुआ तो मामले की परतें खुलने में देर नहीं लगी। सेंट्रल सेक्टर हेडक्वार्टर के डीआईजी 'प्रशासन' राजीव रंजन 'आईपीएस' को मामले की जांच सौंपी गई है।
मौखिक आदेश पर तैनाती
सीआरपीएफ में पहले भी इस तरह से अटैचमेंट के मामले सामने आते रहे हैं। दर्जनों जवानों को महज एक मौखिक आदेश पर लंबे समय के लिए रसूखदार अफसरों या दूसरे वीवीआईपी के यहां भेज दिया जाता है। कई मामलों में तो यह तैनाती कई वर्षों तक चलती रहती है, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं होती कि उस पर कोई कदम उठा सके। सूत्रों के अनुसार, 230वीं बटालियन के ड्राइवर 'हवलदार' मो. तारिक भी लंबे समय से इलाहाबाद में तैनात है। कायदे से उन्हें अपनी बटालियन, जो छत्तीसगढ़ में तैनात हैं, में होना चाहिए। अटैचमेंट के जरिए किसी भी जवान को दूसरी जगह पर तैनात किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए एक तय प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है। 230वीं बटालियन के कमांडेंट दिनेश सिंह चंदेल हैं। वे कई साल तक यूपी में तैनात रहे हैं।
सूत्रों का कहना है कि इलाहाबाद में मो. तारिक ने अपनी निजी झगड़े में पड़ोसी पर गोली चला दी। पुलिस ने केस दर्ज कर लिया। जांच शुरू हुई तो मामले का खुलासा हुआ। सीआरपीएफ ने इस मामले की जांच कराने के आदेश दिए। बल के एक पूर्व आईजी बताते हैं, देखिये ऐसे मामलों में दो ही संभावनाएं बनती हैं। एक तो यह कि जवान अपनी मनमर्जी से आया हो। हालांकि यह आसान नहीं है। अगर कोई जवान, बिना सूचना दिए एक दिन भी गैर-हाजिर रहता है, तो मामले की छानबीन शुरू हो जाती है। इस मामले में जवान को छत्तीसगढ़ की 230वीं बटालियन से इलाहाबाद आए कई माह हो चुके हैं। दूसरी संभावना यह बनती है कि वह जवान फर्जी अटैचमेंट पर हो। मतलब, किसी बड़े अफसर के घर पर काम कर रहा हो। ऐसे केस में किसी बड़े अधिकारी ने अपने जूनियर से यह कहा हो कि उसे एक ड्राइवर की जरूरत है, अपनी बटालियन से भेज दो। जूनियर अधिकारी की हिम्मत नहीं होती कि वह मना कर सके। यह भी हो सकता है कि सक्षम अधिकारी ने खुद ही ड्राइवर को जाने के लिए कहा हो।
कई कर्मियों से हुई पूछताछ
इस केस की तह तक पहुंचने के लिए कई कर्मियों से पूछताछ की गई है। इनमें मोटर ट्रांसफर अफसर 'एमटीओ', एसआईए, हेडक्वार्टर कंपनी राइटर और एमटी हवलदार शामिल हैं। इन सबसे पूछा गया है कि ड्राइवर तारिक किसके कहने पर इलाहाबाद गया है। उसके रवानगी आदेश कहां से जारी हुए हैं। क्या वह छुट्टी पर है, अटैचमेंट पर है। इस संबंध में कोई लिखित दस्तावेज है या सभी आदेश मौखिक हैं। इन चारों कार्मिकों से आईपीएस राजीव रंजन ने कई दस्तावेज भी तलब किए थे। जैसे ड्राइवर की छुट्टी का प्रमाण पत्र। इस मामले में पहले कब-कब छुट्टी स्वीकृत हुई है, इस बाबत जरूरी दस्तावेज। सीआरपीएफ मैस में ड्राइवर तारिक के खाने की रिपोर्ट, ड्यूटी रजिस्टर, अगर उसने साक्षात्कार लिया है तो वह रजिस्टर, उसका आईकार्ड कब और किसने जारी किया, ये दस्तावेज भी मांगे गए हैं। पिछले पांच वर्षों के 'वार्षिक मेडिकल परीक्षण' की रिपोर्ट भी तलब की गई है। पहले उसकी पोस्टिंग कहां-कहां रही है। छह माह के दौरान उसका ड्यूटी स्टेट्स क्या है। इलाहाबाद में सीआरपीएफ का रेंज दफ्तर, ग्रुप सेंटर और आरएएफ का बटालियन हेडक्वार्टर भी है।
इस साल फरवरी में अमर उजाला डॉट कॉम ने यह खुलासा किया था कि अनेक सीआरपीएफ जवान, मौखिक आदेश से केंद्रीय मंत्री, दर्जनों पूर्व डीजी/एडीजी व अन्य अफसरों के घर पर काम कर रहे थे। सीआरपीएफ जवानों को अपना सहायक, ड्राइवर, कुक या अन्य किसी काम से घर पर रखने वाले वीवीआईपी लोगों की सूची में मौजूदा केंद्रीय मंत्री, पूर्व मंत्री, केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारी, आरपीएफ डीजी, सीआरपीएफ के पूर्व डीजी, एसडीजी, एडीजी, आईजी व डीआईजी के अलावा चंडीगढ़ पुलिस के डीजी भी शामिल थे। देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के घर पर भी मार्च 2015 से तीन सीआरपीएफ कर्मी तैनात थे। इन्हें एस्टेब्लिशमेंट ब्रांच के डीआईजी के सिग्नल पर भेजा गया था। इसके अलावा 51 सीआरपीएफ कर्मी ऐसे मिले, जो अपनी पोस्टिंग वाली जगह से किसी दूसरी यूनिट या इकाई में भेजे गए हैं। इनमें से कुछ जवानों की अटैचमेंट या तैनाती को पांच साल से अधिक समय हो चुका था। बल के कई पूर्व डीजी भी बतौर सहायक, सीआरपीएफ जवानों को अपने पास रखे हुए थे।
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