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भाजपा को नए अध्यक्ष के लिए नए साल का इंतजार करना होगा। तीन राज्यों हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव तक अमित शाह ही संगठन की कमान संभाले रहेंगे।
जरूरत पड़ने पर शाह की मदद के लिए पार्टी कार्यकारी अध्यक्ष बना सकती है। तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव बेहद महत्वपूर्ण होने के कारण पार्टी किसी तरह का कोई खतरा नहीं उठाना चाहती।
शाह के गृह मंत्री बनने के बाद नए अध्यक्ष के लिए माथापच्ची शुरू हुई थी। तब यह तय हुआ था, चूंकि नए अध्यक्ष का चुनाव 50 फीसदी राज्यों में संगठन के चुनाव संपन्न होने के बाद ही संभव है, ऐसे में पार्टी के लिए एक कार्यकारी अध्यक्ष तय कर दिया जाए। बाद में तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव के कारण शाह को पद पर बनाए रखने का फैसला किया गया।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि दरअसल तीनों राज्यों में शाह की जमीनी स्तर पर मजबूत पकड़ है। अगर संगठन की जिम्मेदारी किसी नए चेहरे को दी जाएगी तो उन्हें जमीनी समझ हासिल करने में ही लंबा वक्त लगेगा, जबकि पार्टी के पास तैयारी के लिए ज्यादा समय नहीं है। यही कारण है कि पार्टी ने शाह को साल के अंत तक संगठन की जिम्मेदारी देने और बीच में जरूरत महसूस होने पर कार्यकारी अध्यक्ष घोषित करने की रणनीति बनाई।
राज्यों को ले कर भी हड़बड़ी में नहीं है पार्टी
पार्टी ने राज्यों में संगठनात्मक चुनाव से पहले सदस्यता अभियान शुरू करने का फैसला कर साफ कर दिया है कि वह राज्यों में संगठन को नए सिरे से गठित करने को ले कर हड़बड़ी में नहीं है। पहले चर्चा थी कि पार्टी यूपी और बिहार में जल्द से जल्द नए अध्यक्ष का चयन करेगी। चूंकि बिहार में अगले साल के अंत में और यूपी में 2022 में विधानसभा चुनाव है, ऐसे में इन राज्यों में नया अध्यक्ष तय करने के लिए पार्टी के पास काफी समय है।
भाजपा को नए अध्यक्ष के लिए नए साल का इंतजार करना होगा। तीन राज्यों हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव तक अमित शाह ही संगठन की कमान संभाले रहेंगे।
जरूरत पड़ने पर शाह की मदद के लिए पार्टी कार्यकारी अध्यक्ष बना सकती है। तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव बेहद महत्वपूर्ण होने के कारण पार्टी किसी तरह का कोई खतरा नहीं उठाना चाहती।
शाह के गृह मंत्री बनने के बाद नए अध्यक्ष के लिए माथापच्ची शुरू हुई थी। तब यह तय हुआ था, चूंकि नए अध्यक्ष का चुनाव 50 फीसदी राज्यों में संगठन के चुनाव संपन्न होने के बाद ही संभव है, ऐसे में पार्टी के लिए एक कार्यकारी अध्यक्ष तय कर दिया जाए। बाद में तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव के कारण शाह को पद पर बनाए रखने का फैसला किया गया।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि दरअसल तीनों राज्यों में शाह की जमीनी स्तर पर मजबूत पकड़ है। अगर संगठन की जिम्मेदारी किसी नए चेहरे को दी जाएगी तो उन्हें जमीनी समझ हासिल करने में ही लंबा वक्त लगेगा, जबकि पार्टी के पास तैयारी के लिए ज्यादा समय नहीं है। यही कारण है कि पार्टी ने शाह को साल के अंत तक संगठन की जिम्मेदारी देने और बीच में जरूरत महसूस होने पर कार्यकारी अध्यक्ष घोषित करने की रणनीति बनाई।
राज्यों को ले कर भी हड़बड़ी में नहीं है पार्टी
पार्टी ने राज्यों में संगठनात्मक चुनाव से पहले सदस्यता अभियान शुरू करने का फैसला कर साफ कर दिया है कि वह राज्यों में संगठन को नए सिरे से गठित करने को ले कर हड़बड़ी में नहीं है। पहले चर्चा थी कि पार्टी यूपी और बिहार में जल्द से जल्द नए अध्यक्ष का चयन करेगी। चूंकि बिहार में अगले साल के अंत में और यूपी में 2022 में विधानसभा चुनाव है, ऐसे में इन राज्यों में नया अध्यक्ष तय करने के लिए पार्टी के पास काफी समय है।