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दिल्ली में संसद भवन के उद्घाटन को लेकर मायावती ने एक बार फिर से सियासी गुगली खेल दी है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने प्रधानमंत्री द्वारा किए जाने वाले उद्घाटन का न सिर्फ समर्थन किया है, बल्कि उद्घाटन को भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी का हक भी बताया है। विपक्षी दलों को एकजुट करने वाले अलग-अलग राजनैतिक दलों के नेताओं के लिए मायावती का इस तरह खुलकर समर्थन करना सियासी झटके जैसा माना जा रहा है। लेकिन मायावती ने भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थन में बात करके कार्यक्रम में शिरकत ना करके जो सियासी गुगली फेंकी है, अब उसके राजनीतिक गलियारों में मायने तलाशे जा रहे हैं।
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बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर सियासत की पिच पर ऐसी गुगली फेंकी है, जिसे लेकर अब तमाम राजनीतिक दल अलग-अलग तरीके के कयास लगा रहे हैं। मायावती ने संसद भवन के उद्घाटन पर मचे सियासी घमासान को अपनी पार्टी की तरफ से एक ऐसे बयान दिया है, जिसे अब राजनीतिक गलियारों में आगे बढ़ाया जा रहा है। मायावती ने गुरुवार को अपने बयान में कहा कि जिस सरकार ने इस नए संसद भवन को बनवाया है इसलिए उसके उद्घाटन का हक भी उसका ही है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी देश व जनहित के मुद्दों पर हमेशा दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उसका समर्थन करती आई है। 28 मई को होने वाले संसद भवन के उद्घाटन को भी पार्टी इसी दलगत राजनीतिक नजरिए से ऊपर उठते हुए न सिर्फ इसका स्वागत करती है, बल्कि भाजपा की सरकार की ओर से बनवाए गए इस संसद भवन उद्घाटन समारोह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की किए जाने का स्वागत करती है। लेकिन अपनी व्यस्तताओं के चलते मायावती ने इस कार्यक्रम में शिरकत न करने का भी जिक्र किया है।
मायावती की ऐसी सियासी गुगली पर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मायावती भाजपा का खुलकर विरोध अन्य विपक्षी पार्टियों की तरह नहीं करती हैं। राजनैतिक विश्लेषक रजनीश दिनकर कहते हैं कि यह मायावती की शुरुआत से स्ट्रेटजी रही है कि वह केंद्र में बैठे किसी भी सत्तासीन पार्टी का उतनी मुखर तरीके से विरोध नहीं करती है, जितना कि देश की दूसरी अन्य बड़ी पार्टियां करती हैं। उनका मानना है कि सियासत के मैदान में बसपा भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ती हैं। इस राजनीतिक लड़ाई में वह कसी हुई फील्डिंग भी सजाती है। लेकिन बीते कुछ चुनावों में जिस तरीके से मायावती की पार्टी का कोर वोट बैंक भारतीय जनता पार्टी में शिफ्ट होना शुरू हुआ है, तब से मायावती भारतीय जनता पार्टी पर उतना आक्रामक नहीं रह रही हैं। इसके पीछे तर्क देते हुए वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक ओपी तवर कहते हैं कि मायावती जितना ज्यादा भारतीय जनता पार्टी पर आक्रामक होंगी, भारतीय जनता पार्टी उसी तेजी से उनके वोट बैंक में और जबरदस्त से सेंधमारी करेगी। वह कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि मायावती के सॉफ्ट होने से भाजपा उनके वोट बैंक में सेंधमारी नहीं करेगी। लेकिन बसपा को इस बात का कहीं ना कहीं भरोसा होता है कि वह जितना आक्रामक सपा और कांग्रेस पर होगी उसका फायदा भाजपा पर उतनी आक्रामकता से नहीं मिलेगा।
अब नई संसद के उद्घाटन मामले में मायावती के इस बयान को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या मायावती ने भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बार फिर से लोकसभा चुनावों से पहले अपना सॉफ्ट कॉर्नर तैयार कर लिया है। हालांकि इस बारे में बहुजन समाज पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि मायावती के इस बयान को देशहित से और संवैधानिक प्रक्रिया के लिहाज से देखा जाना चाहिए। वह कहते हैं कि मायावती ने यह कहकर उस बात को सपोर्ट किया है, जिस सरकार ने संसद भवन की बिल्डिंग को तैयार किया है उसका हक भी इस बिल्डिंग के उद्घाटन का है। वह कहते हैं कि कई सालों में ऐसी तमाम बिल्डिंग्स का उद्घाटन तत्कालीन सरकारों के मुखिया या उनके नेताओं ने ही किया है। हालांकि बसपा के इस तर्क को राजनैतिक विश्लेषक मानने को तैयार नहीं हैं।
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मायावती की सियासी गुगली को समझाते हुए वरिष्ठ पत्रकार जुनेद हुसैन कहते हैं कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता जाएगा मायावती इस तरीके की सियासी गुगलियां फेंकती जाएंगी। उनका कहना है कि एक तरह से तो मायावती ने भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन किया है। वहीं दूसरी ओर मायावती ने इस कार्यक्रम में शिरकत न करके अपना डिफेंसिव पॉलिटिकल शॉट भी खेल दिया है। मायावती के इस कार्यक्रम में न जाने का संदेश वह अपने बसपा के कोर वोटर के बीच में देना चाहती हैं। इसके लिए बाकायदा बसपा के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की ओर से लोगों के बीच में संदेश भी दिया जाने वाला है। जुनेद कहते हैं कि मायावती की इस गुगली से विपक्षी दलों को एकजुट करने की इस मुहिम को भी अब थोड़ा ब्रेक लेना होगा। जिसमें मायावती को शामिल किए जाने की बात कही जा रही थी। वह कहते हैं अभी तक तो मायावी यही कह रही हैं कि वह आगामी लोकसभा के चुनावों में अपने दम पर ही सियासी मैदान में उतरेंगी, लेकिन विपक्षी दल अभी भी उनको मना कर अपने साथ जोड़ने की कवायद में लगे हुए हैं।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत कहते हैं कि 2019 लोकसभा चुनावों के बाद जब सपा और बसपा का गठबंधन टूटा तो बसपा की मुखिया मायावती ने खुद इस बात को स्वीकार किया था कि समाजवादी पार्टी के साथ हुआ या गठबंधन उनकी अब तक की सबसे बड़ी भूल थी। इस दौरान मायावती ने यह भी कहा था अगर समाजवादी पार्टी को हराने के लिए उनको बहुत भारतीय जनता पार्टी का साथ देना पड़े, तो वह साथ भी देंगी। राजपूत कहते हैं अगर मायावती ने आज यह कह कर भारतीय जनता पार्टी का साथ दिया है, तो इसमें गलत कुछ नहीं है। क्योंकि बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी दोनों एक ही हैं।