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Bombay High Court Says Woman entitled to maintenance under Domestic Violence Act even after divorce
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Bombay HC: दो महीने में तलाक, फिर पति ने गुजारा भत्ता देने से कर दिया था इनकार, अब अदालत ने सुनाया यह फैसला
पीटीआई, मुंबई
Published by: संजीव कुमार झा
Updated Mon, 06 Feb 2023 02:02 PM IST
सार
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तलाक की कार्यवाही के दौरान महिला ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत गुजारा भत्ता मांगा था। पारिवारिक अदालत ने उसके आवेदन को खारिज कर दिया था, जिसके बाद उसने सत्र अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसने 2021 में उसकी याचिका स्वीकार कर ली।
बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम (डीवी अधिनियम) के प्रावधानों के तहत तलाक के बाद भी महिला भरण-पोषण की हकदार है। न्यायमूर्ति आर जी अवाचट की एकल पीठ ने 24 जनवरी के आदेश में एक सत्र अदालत द्वारा पारित एक मई 2021 के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें एक पुलिस कांस्टेबल को निर्देश दिया गया था कि वह अपनी तलाकशुदा पत्नी को प्रति माह 6,000 रुपये का रखरखाव का भुगतान करे। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि याचिका में यह सवाल उठाया गया है कि क्या तलाकशुदा पत्नी घरेलू हिंसा अधिनियम तहत भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है?
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि 'घरेलू संबंध' शब्द की परिभाषा दो व्यक्तियों के बीच संबंध का सुझाव देती है, जो किसी भी समय (ज्यादातर अतीत में) एक साझा घर में एक साथ रहते थे या रहते थे। अदालत ने कहा, कि याचिकाकर्ता पति होने के नाते अपनी पत्नी के भरण-पोषण का प्रावधान करने के लिए वैधानिक दायित्व के तहत था। चूंकि वह ऐसा प्रावधान करने में विफल रहा, इसलिए प्रतिवादी/पत्नी के पास डीवी अधिनियम के तहत आवेदन दायर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
दो महीने में हो गया था तलाक
न्यायमूर्ति अवाचट ने आगे कहा कि वह व्यक्ति "सौभाग्यशाली" था कि जब वह पुलिस सेवा में था और प्रति माह 25,000 रुपये से अधिक का वेतन प्राप्त कर रहा था, तो उसे प्रति माह केवल 6,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। याचिका के अनुसार, पुरुष और महिला ने मई 2013 में शादी की थी लेकिन वैवाहिक विवादों के कारण जुलाई 2013 से अलग रहने लगे। बाद में इस जोड़े का तलाक हो गया।
पारिवारिक अदालत ने महिला की याचिका कर दी खारिज लेकिन अब हाईकोर्ट ने दी राहत
तलाक की कार्यवाही के दौरान महिला ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत गुजारा भत्ता मांगा था। पारिवारिक अदालत ने उसके आवेदन को खारिज कर दिया था, जिसके बाद उसने सत्र अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसने 2021 में उसकी याचिका स्वीकार कर ली। व्यक्ति ने उच्च न्यायालय में अपनी याचिका में दावा किया कि चूंकि अब कोई वैवाहिक संबंध अस्तित्व में नहीं है, इसलिए उसकी पत्नी घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत किसी भी राहत की हकदार नहीं थी।
उन्होंने आगे कहा कि शादी के विघटन की तारीख तक भरण-पोषण के सभी बकाया चुका दिए गए थे।
महिला ने याचिका का विरोध किया और कहा कि डीवी अधिनियम के प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि एक पत्नी, जिसे तलाक दिया गया है या तलाक ले चुकी है, भी रखरखाव और अन्य सहायक राहत का दावा करने की हकदार है।
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