निर्माताः आदित्य चोपड़ा
निर्देशकः मनीष शर्मा
सितारेः शाहरुख खान
रेटिंग **
ज्ञानीजन सदा समझाते आए हैं कि रिश्ते और दोस्ती बराबरी वालों में ही निभते हैं। ऐसे में किसी फिल्मी सितारे और फैन का कैसा रिश्ता और कैसी दोस्ती? यह खोटे सिक्के की तरह है। जिसे जेब में रख कर फैन खुश तो हो सकता है परंतु हकीकत यह है कि वह इससे सितारे की जिंदगी के पांच सेकेंड तक पा नहीं सकता। सितारे का सच यह है कि वह फैन को भरमाने के लिए कहता हैः तुम हो तो हम हैं। सच यह है कि वह जिस जगह पर है वहां अपनी मेहनत, सनक और किस्मत से है। वर्ना तो ऊपर वाले ने उसे उसी मिट्टी से बनाया है, जिससे फैन को।
निर्देशक मनीष शर्मा की फिल्म फैन यह बात उन्हें समझाने कोशिश करती है, जो सितारों की अंधभक्ति करते हैं। शाहरुख खान यहां डबल रोल में हैं। आश्चर्य है कि सितारा फैन को देखना भी चाहता है तो अपनी ही शक्ल है! यह आत्ममुग्धता है। दो-दो शाहरुख लेखक-निर्देशक की नजर में दर्शक के लिए डबल डोज हो सकते हैं परंतु कहानी में कृत्रिम मालूम पड़ते हैं।
दोहरी भूमिका के बावजूद फिल्म शाहरुख के स्टारडम से न्याय नहीं करती। एक तरफ स्टार शाहरुख की चमक यहां फीकी है। दूसरी तरफ मेक-अप और स्पेशल इफेक्ट्स से बना जूनियर शाहरुख एक मासूम लगते फैन से सनकी बदमाश में तब्दील हो जाता है और दर्शकों की संवेदना खो देता है। दर्शक दोनों ही किरदारों से नहीं जुड़ पाते। निर्देशक और खुद शाहरुख यह कह सकते हैं कि फिल्म उनकी सितारा छवि के साथ एक प्रयोग है।