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फिल्म समीक्षा/फैन:फिल्म शाहरुख के अंधभक्तों के लिए है

रवि बुले/अमर उजाला, मुंबई Updated Fri, 15 Apr 2016 03:49 PM IST
shahrukh khan's movie 'fan' review
निर्माताः आदित्य चोपड़ा

निर्देशकः मनीष शर्मा
सितारेः शाहरुख खान
रेटिंग **

ज्ञानीजन सदा समझाते आए हैं कि रिश्ते और दोस्ती बराबरी वालों में ही निभते हैं। ऐसे में किसी फिल्मी सितारे और फैन का कैसा रिश्ता और कैसी दोस्ती? यह खोटे सिक्के की तरह है। जिसे जेब में रख कर फैन खुश तो हो सकता है परंतु हकीकत यह है कि वह इससे सितारे की जिंदगी के पांच सेकेंड तक पा नहीं सकता। सितारे का सच यह है कि वह फैन को भरमाने के लिए कहता हैः तुम हो तो हम हैं। सच यह है कि वह जिस जगह पर है वहां अपनी मेहनत, सनक और किस्मत से है। वर्ना तो ऊपर वाले ने उसे उसी मिट्टी से बनाया है, जिससे फैन को।

निर्देशक मनीष शर्मा की फिल्म फैन यह बात उन्हें समझाने कोशिश करती है, जो सितारों की अंधभक्ति करते हैं। शाहरुख खान यहां डबल रोल में हैं। आश्चर्य है कि सितारा फैन को देखना भी चाहता है तो अपनी ही शक्ल है! यह आत्ममुग्धता है। दो-दो शाहरुख लेखक-निर्देशक की नजर में दर्शक के लिए डबल डोज हो सकते हैं परंतु कहानी में कृत्रिम मालूम पड़ते हैं।



दोहरी भूमिका के बावजूद फिल्म शाहरुख के स्टारडम से न्याय नहीं करती। एक तरफ स्टार शाहरुख की चमक यहां फीकी है। दूसरी तरफ मेक-अप और स्पेशल इफेक्ट्स से बना जूनियर शाहरुख एक मासूम लगते फैन से सनकी बदमाश में तब्दील हो जाता है और दर्शकों की संवेदना खो देता है। दर्शक दोनों ही किरदारों से नहीं जुड़ पाते। निर्देशक और खुद शाहरुख यह कह सकते हैं कि फिल्म उनकी सितारा छवि के साथ एक प्रयोग है।

दूसरे हिस्से में फिल्म फिसल जाती है

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कहानी का फिल्मी सितारा आर्यन खन्ना (शाहरुख खान) उम्रदराज हो रहा है और एक नए उभरते कपूर सितारे से खुद को असुरक्षित महसूस करता है। वहीं उसका एक फैन है, गौरव चंदना (शाहरुख) जो उससे मिलकर सिर्फ यह बताना चाहता है कि वह उसे कितना चाहता है। इसका सबूत यह घटना। जब खबर आती है कि आर्यन खन्ना ने कपूर सितारे को एक पार्टी में थप्पड़ जड़ दिया और कपूर पुलिस में रिपोर्ट लिखाने की तैयारी में है।

गौरव कपूर सितारे को उसकी वैनिटी वैन में बंधक बना कर उससे माफीनामे का वीडियो बना लेता है। आर्यन को बर्थडे गिफ्ट के रूप में भेजता है। आर्यन को जब पता चलता है तो उसे यह बात पसंद नहीं आती और वह गौरव को पुलिस हवालात में भिजवा देता है। हवालात में सितारे और फैन की मुलाकात होती है। सितारा फैन को खरी-खोटी सुनाता है। यहीं से फैन सितारे का सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है।

डुप्लीकेट जैसा होने की वजह से गौरव सितारे का रूप धर कर जगह-जगह पहुंचता है और अपनी हरकतों से उसे बदनाम करता है। फिल्म का पहला हिस्सा जरूर कुछ बांधता है, लेकिन दूसरा हिस्सा बोरियत से भरा है। जहां लेखक-निर्देशक राह से भट गए। यहां उनके पास कहने को कुछ अधिक नहीं है और वे सितारे द्वारा फैन का पीछा करने जैसे लंबे-लंबे दृश्य रचते हैं।

निर्देशक सच दिखाने में नाकाम रहे

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दूसरे भाग में कहानी पीछे रह जाती है। आर्यन खन्ना असल जिंदगी में भी फिल्मी अंदाज में काम करता दिखता है! निर्देशक यह फर्क दिखाने में नाकाम रहे कि सितारे पर्दे पर जो करते दिखते हैं वह सच नहीं होता। वह भी साधारण इंसान हैं। हालांकि अंत में उन्होंने सितारे के मुंह से यह बात भाषण जैसी कहलवाई है।

फिल्म शाहरुख के अंधभक्तों के लिए है। वैसे वह इसके संदेह को सचमुच समझ सके तो उनकी आंखें खुल सकती हैं। वे सचमुच पूछ सकते हैः हम आपके हैं कौन? जो लोग सिनेमा को मनोरंजन के लिए देखते हैं वे निराश होंगे। यहां रोमांस, कॉमेडी, गीत-संगीत कुछ नहीं। कमजोर स्क्रिप्ट ने थ्रिल को उथला कर दिया है।

शाहरुख पर उम्र हावी होने लगी है। उनका चार्म यहां गायब है। जूनियर के रूप में जरूर कुछ रोचक दृश्य उनके हिस्से आए हैं। प्रॉस्थेटिक मेकअप का चलन इधर बढ़ा है। जूनियर शाहरुख को देख कर आपको तनु वेड्स मनु रिटर्न्स की दत्तो (कंगना रनौत) याद आएंगी। परंतु दत्तो जैसी सहजता गौरव में नहीं मिलेगी।
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