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Radhe Shyam Movie Review in Hindi by Pankaj Shukla Prabhas Pooja Hegde Sathyaraj Sachin Khedekar
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Radhe Shyam Review: ‘बाहुबली’ प्रभास का दिलचस्प रोमांटिक रूप, हाथों की लकीरों की ललचाती कहानी
प्रभास
,
पूजा हेगड़े
,
मुरली शर्मा
,
भाग्यश्री
,
जगपति बाबू
,
सचिन खेडेकर
और
सत्यराज
लेखक
राधा कृष्ण कुमार
निर्देशक
राधा कृष्ण कुमार
निर्माता
यूवी क्रिएशंस
और
टी सीरीज
रिलीज डेट
11 मार्च 2022
रेटिंग
2/5
बड़े बजट की फिल्मों का जमाना है। और, कोशिश सबकी यही है कि सिनेमाघरों तक दर्शकों को फिर से लेकर आना है। साल 2018 में शुरू हुई फिल्म ‘राधे श्याम’ को लेकर इसे बनाने वालों का दावा भी सिनेमाघरों में एक ऐसा दृश्य श्रव्य प्रभाव पैदा करने का रहा है, जो भारतीय सिनेमा के लिए अब तक अनदेखा हो। तीन सौ से साढ़े तीन सौ करोड़ रुपये के बजट में बनी बताई जा रही फिल्म ‘राधे श्याम’ के यूरोप के एक मशहूर हस्तरेखा विशेषज्ञ की प्रेम कहानी से प्रेरित दिखती है। हालांकि, तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बनाने वालों के देश में ये फिल्म सामुद्रिक शास्त्र की एक ऐसी लोकप्रिय परंपरा को आगे बढ़ाती दिखती है जिसकी तरफ हाल के बरसों में युवा पीढ़ी का ध्यान कम ही गया। प्रभास की ‘बाहुबली’ सीरीज की फिल्मों ने ही ऐसी अखिल भारतीय फिल्मों की तरफ दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया, जो सिर्फ कथ्य से ही नहीं बल्कि अपने प्रस्तुतीकरण से भी चौंकाती हैं। फिल्म ‘राधे श्याम’ दर्शकों को चौंकाने का दमखम रखने वाले सिनेमा की नई कड़ी है, इस फिल्म से अभिनेता प्रभास की भी हिंदीभाषी क्षेत्रों में लोकप्रियता का इम्तिहान होने वाला है।
राधेश्याम
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
हाथ देखकर लोगों का भविष्य बताने वाले कभी बड़े शहरों के व्यस्ततम बाजारों में फुटपाथों पर भी अक्सर दिख जाया करते थे। देश की जीडीपी बढ़ने के साथ जिन लोकप्रिय व्यवसायों का लोक से विलोप होना शुरू हुआ, उनमें ये हस्तरेखा ज्ञान भी शामिल है। फिल्म ‘राधे श्याम’ की कहानी एक ऐसे युवक की कहानी है जिसे हाथ की लकीरों में आने वाला संसार दिखता है। वह एक भारतीय परंपरा का विशिष्ट वाहक है और विदेश में उसका अपना सितारा काफी बुलंद है। फिर उसे मिलती है प्रेरणा। भावों की भी और अनुभूतियों की भी। प्रेरणा उसे आकर्षित करती है। दोनों की जुगलबंदी बनने में समय लगता है। इनके हाथों की लकीरें एक हो पाएंगी या नहीं या फिर दोनों अपनी भाग्य रेखाओं के हिसाब से चलते हुए जीवन के दो अलग अलग ध्रुवों पर निकल जाएंगे, इसी उधेड़बुन में फिल्म ‘राधे श्याम’ की कहानी दर्शकों को बांधने की कोशिश करती चलती है।
राधेश्याम
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
निर्देशक राधा कृष्ण कुमार मूल रूप से कलम के धनी हैं। तेलुगू फिल्मों के संवाद लिखने के दौरान ही उन पर अभिनेता गोपीचंद का विश्वास बना। बतौर निर्देशक राधा कृष्ण कुमार ने सात साल पहले अपनी पहली फिल्म बनाई ‘जिल’। इस फिल्म के निर्माताओं ने ही फिल्म ‘राधे श्याम’ में राधा कृष्ण कुमार पर बड़ा दांव लगाया है। ‘बाहुबली’ की शूटिंग के दौरान प्रभास जब एक्शन फिल्मों से हटकर कुछ रोमांटिक सा, कुछ हल्का फुल्का सा करने के मूड में थे तो उन्हें ‘राधे श्याम’ की कहानी सुनने को मिली। राधा कृष्ण कुमार ने कुछ कुछ चर्चित लेखक के विजयेंद्र प्रसाद के सूत्र अपनी इस नई फिल्म को गढ़ने के लिए इस्तेमाल किए हैं। वह किरदार से पहले उसके आसपास का वातावरण रचते हैं। लेकिन, विजयेंद्र प्रसाद की खूबी ये है कि वातावरण उनके सभी किरदारों की कलाकारी का मंच तैयार करते हैं। फिल्म ‘राधे श्याम’ में राधा कृष्ण कुमार की रची दुनिया से उनके सभी कलाकार एक रूप नहीं हो पाते हैं। वह स्पेशल इफेक्ट्स से परदे पर चकाचौंध तो प्रस्तुत करते हैं, लेकिन इस चकाचौंध में फिल्म के सहयोगी कलाकार बार बार धूमिल होते रहते हैं।
राधेश्याम
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
हां, फिल्म के हीरो प्रभास के किरदार विक्रमादित्य पर निर्देशक राधा कृष्ण कुमार ने खासी मेहनत की है। प्रभास भी अपनी रोमांटिक छवि गढ़ने की यहां पूरी कोशिश करते दिखते हैं। फिल्म में हास्य और उल्लास प्रस्तुत करने वाले दृश्यों में वह काफी सहज भी बन पड़े हैं। प्रभास की कद काठी सामान्य नहीं है। उनका डीलडौल दैवीय है। उनके हाव भाव और उनकी देहभाषा भी किसी बलशाली पुरुष का भान देती है। ऐसे में उन्हें पूजा हेगड़े जैसी नाजुक के प्रेमी के तौर पर देखना हिंदीभाषी दर्शकों के लिए मेहनत का काम है। फिल्म देखते हुए मन को बार बार समझाना होता है कि परदे पर दिख रहा कलाकार महिष्मति का बाहुबली नहीं है। वह आदि पुरुष का राम भी नहीं है। वह विक्रमादित्य है, इसे समझने में ही फिल्म का आधा हिस्सा चला जाता है। परदे पर बदलती बेहद खूबसूरत तस्वीरों के साथ मध्यांतर तक आते आते फिल्म की कहानी सम पर आती है। समुद्र के विकराल रूप को परदे पर देखने से दर्शक विस्मित भी होते हैं। पर दर्शकों को ये कहानी असली सी नहीं लगती, और यही फिल्म ‘राधे श्याम’ की सबसे बड़ी कमजोरी भी है।
राधेश्याम
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
प्रभास की मेहनत फिल्म में साफ दिखती है, वह अपना असर छोड़ने में भी कामयाब हैं। लेकिन, पूजा हेगड़े एक बार फिर बड़ा मौका मिलने के बावजूद चूक गईं। नयनाभिराम दृश्यों के बीच वह अपने चरित्र की मनोभावनाएं उजागर करने में चूकती हैं। सितारों के सहारे टंगी एक प्रेम कहानी में जिस आवेग और उद्वेग की जरूरत उनके अभिनय में थी, उसका संवेग उनके अभिनय से गायब है। फिल्म की दूसरी कमजोर कड़ी इसके सहायक कलाकारों में सचिन खेडेकर व मुरली शर्मा को छोड़ दूसरे कलाकारों को बेहतर मौका न मिल पाना रहा। कहानी के हिसाब से उनके किरदार ढंग से नहीं गढ़े गए। भाग्यश्री से बड़े परदे पर वापसी पर इससे कहीं बेहतर करने की उम्मीद हर हिंदी सिनेप्रेमी को रही।
राधे श्याम
- फोटो : social media
फिल्म के हिंदी संस्करण के गीत संगीत को छोड़ दें तो फिल्म ‘राधे श्याम’ की बाकी तकनीकी टीम बहुत कमाल की है। सिनेमैटोग्राफर मनोज परमहंस ने परदे पर एक अद्भुत कल्पना लोक रचने में कामयाबी हासिल की है। यूरोप की ये अब तक की सबसे कलाकारी भरी पर्यटन शोरील भी दिखती है। उनका कैमरा कहानी के साथ चलता है। वह भले दर्शकों को कहानी के साथ जोड़ने में ज्यादा सफल न रहा हो लेकिन अपने निर्देशक की कल्पना को परदे पर उतारने में उनका कैमरा सिनेमा के कैनवास पर कूंची सा फिसलता चलता है। कोटागिरी वेंकटेश्वर राव ने फिल्म के संपादन में अपना कौशल फिर से दिखाया है। वह दक्षिण के सबसे काबिल फिल्म संपादकों में शुमार हैं और उनका संपादन फिल्म को गति प्रदान करने में काफी हद तक सफल भी है। एस थमन का पार्श्वसंगीत इसके तेलुगू संस्करण के हिसाब से है और हिंदीभाषी दर्शकों की संगीत रुचि के अनुसार वांछित प्रभाव पैदा नहीं कर पाता है।
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