पाकिस्तान के छोटे से गांव गाह में जन्मा एक बच्चा आगे चलकर भारत का प्रधानमंत्री बनेगा ये कौन जानता था। गाह में रहने वाले इस बच्चे के पिता सिर्फ मीडिल तक पढ़े थे और ड्राई फ्रूट्स की दुकान पर हिसाब-किताब देखने का काम करते थे।
जबकि इस बच्चे के दादा ने तो स्कूल की शक्ल तक नहीं देखी थी। उसी परिवार के इस बच्चे ने जब स्कूल में कदम रखा तो न सिर्फ हर दर्जे में टॉप करता गया, बल्कि पढ़ने के लिए दुनिया के सबसे मशहूर कॉलेजों, क्रैंब्रिज और ऑक्सफोर्ड तक गया।
लेकिन मनमोहन सिंह नाम के इस बच्चे की कहानी इतनी सीधी भी नहीं है। बचपन में ही उन्होंने अपनी मां को खो दिया और एक दिन उनके पिता भी लापता हो गए। बिना मां-बाप के इस बच्चे ने कैसे एक गांव से प्रधानमंत्री तक का सफर तय किया जानिए आगे...
(मनमोहन सिंह की बेटी ने अपनी किताब 'स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन एंड गुरूशरण' में ये सारे खुलासे किए हैं।)
सिंह की प्रारंभिक पढ़ाई गाह में हुई जहां उनके पिता गुरमुख सिंह एक दुकान पर क्लर्क का काम करते थे। ग्यारह साल की उम्र में उनके पिता परिवार सहित पेशावर आ गए। यहां पर उन्होंने दूसरी शादी कर ली।
दरअसल मनमोहन के जन्म के कुछ साल बाद ही उनकी मां का देहांत हो गया था। अभी उनका परिवार संभलने की कोशिश ही कर रहा था कि विभाजन ने उनके घर को बसने से पहले ही उजाड़ दिया।
विभाजन की भागा-भागी में उनके पिता परिवार से बिछड़ गए और इस सदमे के चलते उनकी सौतेली मां ने अपना मानसिक संतुलन भी खो दिया।
मनमोहन सिंह को स्कूल के फाइनल के एग्जाम देने थे। पेशावर का माहौल बेहद खराब था। लेकिन वो डिगे नहीं और उन गलियों से होते हुए अपने स्कूल पहुंचे जहां जगह-जगह लाशें बिखरी पड़ी थीं।
इन चुनौतियों के बाद भी मनमोहन सिंह ने अपनी पढ़ाई से कोई समझौता नहीं किया। अपने पूरे शैक्षणिक जीवन में वो हमेशा अव्वल आते रहे। पंजाब यूनिवर्सिटी में उन्होंने टॉप किया। इतना ही नहीं, जब वो पढ़ाई करने कैंब्रिज युनिवर्सिटी गए तो वहां भी उन्होंने अपनी डिग्री फर्स्ट क्लास में ही पूरी की।
लेकिन विदेश में भी उनके दिन मुश्किल में ही बीते। कई बार उन्हें पूरा दिन केवल चॉकलेट खाकर गुजारना पड़ा क्योंकि उनके पास खाना खाने के पैसे नहीं थे।
कैंब्रिज से पढ़ कर लौटे मनमोहन सिंह शादी के लिए एक आदर्श वर थे। गुरूशरण कौर संगीत में रूचि रखने वाली एक चंचल बाला थीं। गुरूशरण के विपरीत मनमोहन सिंह बेहद शांत और गंभीर स्वभाव के थे।
शादी के सिलसिले में जब इन दोनों की पहली मुलाकात हुई तो मनमोहन सिंह ने गुरूशरण जी से एक सवाल पूछा। उन्होंने पूछा. 'आपने बीए किस डिवीजन में पास किया है।'
मनमोहन के इस सवाल से गुरूशरण भी शरमा गईं और उन्होंने जवाब दिया, 'सेकेंड क्लास'। लेकिन मनमोहन सिंह उनके जवाब से संतुष्ट नहीं हुए। अगले दिन वह गुरूशरण के कॉलेज गए और उनके ऐकेडमिक रिकॉर्ड की पूरी जानकारी लेने सीधे प्रिंसिपल के पास गए।
मनमोहन सिंह ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से इंडियन एक्सपोर्ट ट्रेंड्स पर डाक्टरेट की डिग्री पूरी की। इसके बाद उन्हें सरकारी और गैर-सरकारी दोनों ही क्षेत्रों से नौकरी के ऑफर आने लगे।
इस तरह कई वर्षों की कठोर तपस्या के बाद उन्हें उनकी मेहनत का फल मिला। अपने कैरियर में उन्होंने वित्त मंत्रालय में लंबा वक्त गुजारा और कई वित्त मंत्रियों के साथ काम किया।
उनके जीवन में 1991 का वर्ष सबसे महत्वपूर्ण है। इस वर्ष ने उनके जीवन की दिशा को हमेशा के लिए मोड़ दिया।
इस टर्निंग प्वाइंट के बारे में पढ़िए अगली कड़ी में...
पाकिस्तान के छोटे से गांव गाह में जन्मा एक बच्चा आगे चलकर भारत का प्रधानमंत्री बनेगा ये कौन जानता था। गाह में रहने वाले इस बच्चे के पिता सिर्फ मीडिल तक पढ़े थे और ड्राई फ्रूट्स की दुकान पर हिसाब-किताब देखने का काम करते थे।
जबकि इस बच्चे के दादा ने तो स्कूल की शक्ल तक नहीं देखी थी। उसी परिवार के इस बच्चे ने जब स्कूल में कदम रखा तो न सिर्फ हर दर्जे में टॉप करता गया, बल्कि पढ़ने के लिए दुनिया के सबसे मशहूर कॉलेजों, क्रैंब्रिज और ऑक्सफोर्ड तक गया।
लेकिन मनमोहन सिंह नाम के इस बच्चे की कहानी इतनी सीधी भी नहीं है। बचपन में ही उन्होंने अपनी मां को खो दिया और एक दिन उनके पिता भी लापता हो गए। बिना मां-बाप के इस बच्चे ने कैसे एक गांव से प्रधानमंत्री तक का सफर तय किया जानिए आगे...
(मनमोहन सिंह की बेटी ने अपनी किताब 'स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन एंड गुरूशरण' में ये सारे खुलासे किए हैं।)
साभार: इंडियन एक्सप्रेस