पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखंड में वर्ष 2017 में भाजपा की सरकार बनने के बाद पलायन के कारणों और इसकी रोकथाम के लिए सुझाव देने के लिए ग्राम्य विकास विभाग के अंतर्गत पलायन आयोग का गठन किया गया। आयोग ने इस संबंध में प्रदेश के सभी गांवों का सर्वे कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। जिसमें मुख्य रूप पलायन के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार प्रमुख कारण उबरकर सामने आए।
सरकार ने इन कारकों को दूर करने के लिए अपने स्तर पर कई योजनाएं शुरू कीं, लेकिन स्थितियां आज भी नहीं बदली हैं। राज्य में पलायन का दौर अब भी जारी है। गत वर्ष कोरोनाकाल में तमाम प्रवासी लौटकर अपने गांव पहुंचे। कहा जा रहा था कि अब इनमें से अधिकतर लोग वापस नहीं जाएंगे, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ।
रोजगार की कमी के कारण इनमें से अधिकतर लोग वापस महानगरों का रुख कर गए हैं। अब उत्तराखंड ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग को संवैधानिक संस्था बनाने की तैयारी है। पिछले दिनों ग्राम्य विकास मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद ने इस सिलसिले में प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश विभागीय अधिकारियों को दिए हैं।
मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना शुरू की
प्रदेश सरकार ने अब पलायन की रोकथाम के लिए मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना शुरू की है। इसके तहत राज्य के प्रभावित कुल 474 गांवों में बेरोजगार युवाओं और गांवों में वापस लौटे युवाओं को स्वरोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रथम चरण में 2020-21 में कुल 18 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की है।
32 लाख लोग अपना घर छोड़ शहरों में बसे
पलायन आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड से करीब 60 प्रतिशत आबादी यानी 32 लाख लोग अपना घर छोड़ चुके हैं। पलायन आयोग की रिपोर्ट कहती है कि 2018 में उत्तराखंड के 1,700 गांव भुतहा हो चुके हैं, जबकि करीब एक हजार गांव ऐसे हैं, जहां सौ से कम लोग बचे हैं। कुल मिलाकर 3900 गांवों से पलायन हुआ है।
जिलेवार रिपोर्ट तैयार कर रहा पलायन आयोग
अब पलायन आयोग जिलेवार सर्वे कर पलायन की रोकथाम के लिए रिपोर्ट तैयार करने में जुटा है। अब तक नौ जिलों की रिपोर्ट सरकार को सौंपी जा चुकी है। इसके साथ ही गांवों की आर्थिकी सशक्त बनाने के लिए भी आयोग सरकार को अपनी संस्तुतियां दे चुका है।
बदल रहा राज्य का राजनीतिक भूगोल
गैर लाभकारी संगठन इंटीग्रेटेड माउंटेन इनीशिएटिव (आईएमआई) की ओर से जारी स्टेट ऑफ द हिमालय फार्मर्स एंड फार्मिंग रिपोर्ट के अनुसार राज्य में जिस गति से पलायन हो रहा है, उससे आने वाले समय में उत्तराखंड का राजनीतिक भूगोल बदल सकता है। पलायन के चलते राज्य की विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों का दायरा नए सिरे से निर्धारित करना पड़ सकता है।
राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में औद्योगिक विकास की रफ्तार बढ़ी है, लेकिन औद्योगिक विकास का ये मॉडल पहाड़ों से पलायन नहीं रोक पाया। प्रदेश का औद्योगिक विकास मैदानी जिलों तक सीमित रहा। अवस्थापना विकास, कनेक्टिविटी समस्या और आपदा जैसी चुनौती के आगे पहाड़ों में उद्योग स्थापित नहीं हो पाए। राज्य बनने के बाद 21 साल में 49 हजार से अधिक लघु एवं सूक्ष्म उद्योग स्थापित हुए हैं। जिससे राज्य की जीडीपी में उद्योग क्षेत्र की हिस्सेदारी 19.2 प्रतिशत से बढ़ 49 प्रतिशत हो गई है।
नौ नवंबर 2000 को राज्य गठन के समय उत्तराखंड में 14163 लघु एवं सूक्ष्म और 46 बड़े उद्योग ही स्थापित थे। पहले राज्य का यह भू-भाग शून्य उद्योग के लिए जाना जाता था। वर्ष 2003 में विशेष औद्योगिक प्रोत्साहन पैकेज के बाद राज्य में औद्योगिक विकास ने रफ्तार पकड़ी है। 21 साल में उत्तराखंड ने औद्योगिक विकास में तरक्की की है। जिससे राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में उद्योग क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ी है। जहां पर जीडीपी में उद्योग क्षेत्र का अंश 19.2 प्रतिशत था। जो बढ़ कर 49 प्रतिशत से अधिक हो गया है। इसमें विनिर्माण क्षेत्र का योगदान लगभग 36 प्रतिशत है।
राज्य के औद्योगिक विकास का मॉडल पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन रोकने में सफल नहीं हो पाया है। राज्य गठन के बाद रोजगार के लिए पहाड़ों से तेजी से पलायन हुआ है। अब सरकार का पहाड़ों में स्थानीय उत्पादों पर आधारित लघु व सूक्ष्म उद्योगों को बढ़ावा देने पर विशेष फोकस है। जिससे रोजगार के अवसर सृजित होने से पलायन को रोका जा सके।
एमएसएमई उद्योगों में 12778 करोड़ का निवेश
राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में 49809 एमएसएमई उद्योग स्थापित हुए हैं। जिसमें 12778 करोड़ का निवेश हुआ है। इससे 2.82 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिला। राज्य बनने से पहले उत्तराखंड में कुल 14163 लघु उद्योग स्थापित थे। जिसमें 700 करोड़ का निवेश किया गया था। वहीं, 46 बड़े उद्योग स्थापित थे। वर्तमान में देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर जिले में 327 बड़े उद्योग स्थापित हैं।
उत्तराखंड को एक नए आर्थिक विकास के मॉडल की जरूरत है। जिसमें औद्योगिक विकास भी शामिल है। इस मॉडल में बैकवर्ड और फारवर्ड लिंकेज दोनों ही शामिल है। राज्य बनने के बाद औद्योगिक विकास में तेजी आई है, लेकिन पहाड़ों में मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण औद्योगिक विकास नहीं हुआ है। जो लघु उद्योग स्थापित हुए हैं, उन्हें नुकसान होने पर मदद नहीं मिली है। जिससे उनका मनोबल टूटा है।
- पंकज गुप्ता, अध्यक्ष, इंडस्ट्री एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड
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पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखंड में वर्ष 2017 में भाजपा की सरकार बनने के बाद पलायन के कारणों और इसकी रोकथाम के लिए सुझाव देने के लिए ग्राम्य विकास विभाग के अंतर्गत पलायन आयोग का गठन किया गया। आयोग ने इस संबंध में प्रदेश के सभी गांवों का सर्वे कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। जिसमें मुख्य रूप पलायन के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार प्रमुख कारण उबरकर सामने आए।
सरकार ने इन कारकों को दूर करने के लिए अपने स्तर पर कई योजनाएं शुरू कीं, लेकिन स्थितियां आज भी नहीं बदली हैं। राज्य में पलायन का दौर अब भी जारी है। गत वर्ष कोरोनाकाल में तमाम प्रवासी लौटकर अपने गांव पहुंचे। कहा जा रहा था कि अब इनमें से अधिकतर लोग वापस नहीं जाएंगे, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ।
रोजगार की कमी के कारण इनमें से अधिकतर लोग वापस महानगरों का रुख कर गए हैं। अब उत्तराखंड ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग को संवैधानिक संस्था बनाने की तैयारी है। पिछले दिनों ग्राम्य विकास मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद ने इस सिलसिले में प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश विभागीय अधिकारियों को दिए हैं।
मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना शुरू की
प्रदेश सरकार ने अब पलायन की रोकथाम के लिए मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना शुरू की है। इसके तहत राज्य के प्रभावित कुल 474 गांवों में बेरोजगार युवाओं और गांवों में वापस लौटे युवाओं को स्वरोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रथम चरण में 2020-21 में कुल 18 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की है।
32 लाख लोग अपना घर छोड़ शहरों में बसे
पलायन आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड से करीब 60 प्रतिशत आबादी यानी 32 लाख लोग अपना घर छोड़ चुके हैं। पलायन आयोग की रिपोर्ट कहती है कि 2018 में उत्तराखंड के 1,700 गांव भुतहा हो चुके हैं, जबकि करीब एक हजार गांव ऐसे हैं, जहां सौ से कम लोग बचे हैं। कुल मिलाकर 3900 गांवों से पलायन हुआ है।
जिलेवार रिपोर्ट तैयार कर रहा पलायन आयोग
अब पलायन आयोग जिलेवार सर्वे कर पलायन की रोकथाम के लिए रिपोर्ट तैयार करने में जुटा है। अब तक नौ जिलों की रिपोर्ट सरकार को सौंपी जा चुकी है। इसके साथ ही गांवों की आर्थिकी सशक्त बनाने के लिए भी आयोग सरकार को अपनी संस्तुतियां दे चुका है।
बदल रहा राज्य का राजनीतिक भूगोल
गैर लाभकारी संगठन इंटीग्रेटेड माउंटेन इनीशिएटिव (आईएमआई) की ओर से जारी स्टेट ऑफ द हिमालय फार्मर्स एंड फार्मिंग रिपोर्ट के अनुसार राज्य में जिस गति से पलायन हो रहा है, उससे आने वाले समय में उत्तराखंड का राजनीतिक भूगोल बदल सकता है। पलायन के चलते राज्य की विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों का दायरा नए सिरे से निर्धारित करना पड़ सकता है।