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विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हश्र पर वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री डॉ. इंदिरा हृदयेश की पहली प्रतिक्रिया यही थी कि ‘जैसे-तैसे इज्जत बच गई।’ सच तो यह है कि इस चुनाव में अपनी और कांग्रेस की इज्जत बचाने वाली वह उन गिनती भर के विजेताओं में शामिल हैं जिन्होंने प्रचंड मोदी लहर का सामना करते हुए कामयाबी का झंडा बुलंद किया।
मगर इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने एक बार फिर जीत दर्ज करके साबित किया कि उनकी कामयाबी तुक्का नहीं बल्कि उनके सियासी दमखम का प्रतिफल है। दरअसल, वही प्रदेश की सियासत के असल सिकंदर हैं। इस सूची में पहला नाम प्रीतम सिंह का है। प्रीतम सिंह की लगातार जीत की वजह से चकराता कांग्रेस का अभेद्य दुर्ग माना जाता है। इस बार भाजपा ने इसमें सेंध लगाने की जानदार कोशिश की, मगर कामयाब नहीं हो सकी। प्रीतम लगातार चौथी बार इस सीट से चुनाव जीते।
उनकी जीत का अंतर 16654 से 1543 तक जरूर कम हुआ, मगर प्रचंड मोदी लहर और पिछले दो दशकों के सत्तारोधी रुझान के बावजूद चुनाव जीतकर वह सियासत के असल सिकंदर साबित हुए। इस सूची में दूसरा नाम गोविंद सिंह कुंजवाल का है, जिन्होंने जागेश्वर सीट पर लगातार चौथा चुनाव जीता है। ये बात और है कि इंदिरा की तरह उनकी भी जैसे-तैसे इज्जत बची। कुंजवाल महज 399 से चुनाव जीते।
गौर करने वाली बात यह भी है कि चकराता और जागेश्वर उन सात सीटों में से हैं जहां 2014 के लोस चुनाव में कांग्रेस बढ़त बनाने में कामयाब रही थी। इस सूची में धर्मपुर सीट का नाम शामिल हैं, हालांकि लगातार तीन चुनाव जीतने वाले दिनेश अग्रवाल इस बार यहां हार गए। मंगलौर से जीते काजी निजामुद्दीन, केदारनाथ से मनोज रावत, पिरान कलियर से फुरकान अहमद और धारचूला से हरीश धामी को इस रूप में नया सिकंदर माना जा सकता है कि वे प्रचंड मोदी लहर में भी नहीं डिगे।
भाजपा में कई सिकंदर
भाजपा में ऐसे कई नाम हैं जिन्होंने सत्तारोधी रुझान में चुनाव जीते। इनमें सबसे पहला नाम विधायक हरबंस कपूर हैं जिन्होंने देहरादून कैंट को अभेद भगवा दुर्ग में बदल दिया है। यूपी के जमाने से लेकर अब तक कपूर को कोई शिकस्त नहीं दे पाया है। उनके बाद दूसरा नाम डीडीहाट से लगातार चौथा चुनाव जीते बिशन सिंह चुफाल का है। इस सूची में गदरपुर के विधायक अरविंद पांडेय, ऋषिकेश के प्रेमचंद अग्रवाल, काशीपुर के विधायक हरभजन सिंह चीमा, हरिद्वार के मदन कौशिक के नाम प्रमुख हैं।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हश्र पर वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री डॉ. इंदिरा हृदयेश की पहली प्रतिक्रिया यही थी कि ‘जैसे-तैसे इज्जत बच गई।’ सच तो यह है कि इस चुनाव में अपनी और कांग्रेस की इज्जत बचाने वाली वह उन गिनती भर के विजेताओं में शामिल हैं जिन्होंने प्रचंड मोदी लहर का सामना करते हुए कामयाबी का झंडा बुलंद किया।
मगर इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने एक बार फिर जीत दर्ज करके साबित किया कि उनकी कामयाबी तुक्का नहीं बल्कि उनके सियासी दमखम का प्रतिफल है। दरअसल, वही प्रदेश की सियासत के असल सिकंदर हैं। इस सूची में पहला नाम प्रीतम सिंह का है। प्रीतम सिंह की लगातार जीत की वजह से चकराता कांग्रेस का अभेद्य दुर्ग माना जाता है। इस बार भाजपा ने इसमें सेंध लगाने की जानदार कोशिश की, मगर कामयाब नहीं हो सकी। प्रीतम लगातार चौथी बार इस सीट से चुनाव जीते।
उनकी जीत का अंतर 16654 से 1543 तक जरूर कम हुआ, मगर प्रचंड मोदी लहर और पिछले दो दशकों के सत्तारोधी रुझान के बावजूद चुनाव जीतकर वह सियासत के असल सिकंदर साबित हुए। इस सूची में दूसरा नाम गोविंद सिंह कुंजवाल का है, जिन्होंने जागेश्वर सीट पर लगातार चौथा चुनाव जीता है। ये बात और है कि इंदिरा की तरह उनकी भी जैसे-तैसे इज्जत बची। कुंजवाल महज 399 से चुनाव जीते।
गौर करने वाली बात यह भी है कि चकराता और जागेश्वर उन सात सीटों में से हैं जहां 2014 के लोस चुनाव में कांग्रेस बढ़त बनाने में कामयाब रही थी। इस सूची में धर्मपुर सीट का नाम शामिल हैं, हालांकि लगातार तीन चुनाव जीतने वाले दिनेश अग्रवाल इस बार यहां हार गए। मंगलौर से जीते काजी निजामुद्दीन, केदारनाथ से मनोज रावत, पिरान कलियर से फुरकान अहमद और धारचूला से हरीश धामी को इस रूप में नया सिकंदर माना जा सकता है कि वे प्रचंड मोदी लहर में भी नहीं डिगे।
भाजपा में कई सिकंदर
भाजपा में ऐसे कई नाम हैं जिन्होंने सत्तारोधी रुझान में चुनाव जीते। इनमें सबसे पहला नाम विधायक हरबंस कपूर हैं जिन्होंने देहरादून कैंट को अभेद भगवा दुर्ग में बदल दिया है। यूपी के जमाने से लेकर अब तक कपूर को कोई शिकस्त नहीं दे पाया है। उनके बाद दूसरा नाम डीडीहाट से लगातार चौथा चुनाव जीते बिशन सिंह चुफाल का है। इस सूची में गदरपुर के विधायक अरविंद पांडेय, ऋषिकेश के प्रेमचंद अग्रवाल, काशीपुर के विधायक हरभजन सिंह चीमा, हरिद्वार के मदन कौशिक के नाम प्रमुख हैं।