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भगवान केदारनाथ की पैदल यात्रा को सुलभ व सरल बनाने के लिए स्वीकृत रामबाड़ा-केदारनाथ रोपवे का निर्माण डेढ़ दशक बाद भी शुरू नहीं हो पाया है। जबकि केदारनाथ आपदा के बाद से तीन बार के सर्वेक्षण भी हो चुका है।
केदारनाथ आपदा के सात वर्ष : बाबा केदार में प्रधानमंत्री मोदी की गहरी आस्था, पीएम की निगरानी में हो रहा पुनर्निर्माण
16/17 जून 2013 की आपदा के बाद केदारनाथ तक पहुंच को आसान करने की मांग होती आ रही है, लेकिन प्रदेश सरकारों ने हवाई सेवा को बढ़ावा देने के अलावा पैदल मार्ग की सुध नहीं ली है। यात्रा को सुलभ व सरल बनाने को लेकर आश्वासन ही मिले हैं। वर्ष 2005 में उत्तराखंड सरकार द्वारा रामबाड़ा-केदारनाथ 3.5 किमी लंबा रोपवे स्वीकृत किया गया था। उत्तरांचल इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कंपनी (यूडेक) द्वारा रोपवे के निर्माण के लिए सर्वेक्षण कर पूरे क्षेत्र का फिजीबिलिटी टेस्ट भी कराया गया था।
तब, रोपवे निर्माण के लिए 70 करोड़ का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा गया था। सरकार ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड में कार्य कराने की बात कही और वर्ष 2009 में निविदाएं आमंत्रित की गई थी, लेकिन मामला आगे नहीं बढ़ पाया। जून 2013 की आपदा के बाद भी केदारनाथ रोपवे निर्माण को लेकर तीन बार घोषणाएं हो चुकी हैं।
यहां तक कि 2017 में केंद्रीय पर्यटन सचिव द्वारा धाम पहुंचने पर स्थानीय प्रशासन से रोपवे का प्रस्ताव मांगा गया था। सरकार ने 2018 में पुन: यूडेक व निजी कंपनी से रोपवे के लिए सर्वे कराया, लेकिन अभी तक सर्वे रिपोर्ट भी जारी नहीं हो पाई है, जिसका खामियाजा यात्राकाल में आने वाले श्रद्धालुओं को भुगतना पड़ रहा है। तीर्थ पुरोहित विनोद शुक्ला, दिनेश बगवाड़ी, एपी वाजपेयी ने पैदल मार्ग के विस्तार के साथ रोपेव निर्माण की मांग की है।
रामबाड़ा-केदारनाथ रोपवे निर्माण के लिए बीते वर्ष शासन द्वारा यूडेक से सर्वेक्षण कराया गया था, जिसकी रिपोर्ट अभी जारी नहीं हुई है। इस संबंध में जो भी दिशा-निर्देश शासन-प्रशासन से मिलेंगे, उसी के आधार पर कार्य किया जाएगा।
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सुशील नौटियाल, जिला पर्यटन एवं साहसिक खेल अधिकारी
2013 की आपदा से व्यापक रूप से प्रभावित केदारनाथ धाम छह वर्षों से पुनर्निर्माण से गुजर रहा है। धाम की भव्यता और सुंदरता दिनोंदिन निखर रही है। वैज्ञानिक तकनीक से लेकर पारंपरिक शैली से यहां निर्माण कार्य हो रहे हैं, लेकिन सात वर्ष बाद भी केदारनाथ तक आसान पैदल पहुंच के विकल्प नहीं तलाशे गए हैं। जो पैदल मार्ग उपयोग में है, वह एवलांच व भूस्खलन जोन में है, जिससे यहां खतरा बढ़ रहा है।
आपदा में व्यापक तबाही के बाद केदारनाथ मंदिर व केदारपुरी की सुरक्षा, सौंदर्य और संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया गया। अक्तूबर 2017 में पीएम मोदी द्वारा केदारनाथ पुनर्निर्माण को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल करने के बाद इस क्षेत्र को भव्य व दिव्य बनाने के कार्य हो रहे हैं, लेकिन आज भी केदारनाथ तक आसान पहुंच के लिए शासन-प्रशासन अपनी सोच को विकसित नहीं कर पाया है।
मार्च 2014 में मंदाकिनी नदी के बाई तरफ से निम द्वारा जो 9 किमी का नया पैदल मार्ग बनाया गया है, वहां अधिकांश एवलांच जोन में है। यहां नीचे से बह रही मंदाकिनी नदी के बहाव से हो रहे भूकटाव भूस्खलन का खतरा अलग से है, जिससे यहां बसे पड़ाव भी सुरक्षित नहीं हैं।
वहीं, वर्ष 2014-15 में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग द्वारा जो दो वैकल्पिक पैदल मार्ग तोषी-केदारनाथ व चौमासी-केदारनाथ बनाए गए थे, वे भी बदहाल पड़े हुए हैं। केदारनाथ के विधायक मनोज रावत का कहना है कि वर्ष 2016 में हिटो केदार अभियान के तहत पुराने ट्रेकों की खोज की गई थी, जिनका उद्देश्य केदारनाथ को चारों तरफ से लिंक करना था, लेकिन प्रदेश सरकार बीते तीन वर्षों में इस दिशा में कोई कार्य नहीं कर पाई है।
भगवान केदारनाथ की पैदल यात्रा को सुलभ व सरल बनाने के लिए स्वीकृत रामबाड़ा-केदारनाथ रोपवे का निर्माण डेढ़ दशक बाद भी शुरू नहीं हो पाया है। जबकि केदारनाथ आपदा के बाद से तीन बार के सर्वेक्षण भी हो चुका है।
केदारनाथ आपदा के सात वर्ष : बाबा केदार में प्रधानमंत्री मोदी की गहरी आस्था, पीएम की निगरानी में हो रहा पुनर्निर्माण
16/17 जून 2013 की आपदा के बाद केदारनाथ तक पहुंच को आसान करने की मांग होती आ रही है, लेकिन प्रदेश सरकारों ने हवाई सेवा को बढ़ावा देने के अलावा पैदल मार्ग की सुध नहीं ली है। यात्रा को सुलभ व सरल बनाने को लेकर आश्वासन ही मिले हैं। वर्ष 2005 में उत्तराखंड सरकार द्वारा रामबाड़ा-केदारनाथ 3.5 किमी लंबा रोपवे स्वीकृत किया गया था। उत्तरांचल इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कंपनी (यूडेक) द्वारा रोपवे के निर्माण के लिए सर्वेक्षण कर पूरे क्षेत्र का फिजीबिलिटी टेस्ट भी कराया गया था।
तब, रोपवे निर्माण के लिए 70 करोड़ का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा गया था। सरकार ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड में कार्य कराने की बात कही और वर्ष 2009 में निविदाएं आमंत्रित की गई थी, लेकिन मामला आगे नहीं बढ़ पाया। जून 2013 की आपदा के बाद भी केदारनाथ रोपवे निर्माण को लेकर तीन बार घोषणाएं हो चुकी हैं।
यहां तक कि 2017 में केंद्रीय पर्यटन सचिव द्वारा धाम पहुंचने पर स्थानीय प्रशासन से रोपवे का प्रस्ताव मांगा गया था। सरकार ने 2018 में पुन: यूडेक व निजी कंपनी से रोपवे के लिए सर्वे कराया, लेकिन अभी तक सर्वे रिपोर्ट भी जारी नहीं हो पाई है, जिसका खामियाजा यात्राकाल में आने वाले श्रद्धालुओं को भुगतना पड़ रहा है। तीर्थ पुरोहित विनोद शुक्ला, दिनेश बगवाड़ी, एपी वाजपेयी ने पैदल मार्ग के विस्तार के साथ रोपेव निर्माण की मांग की है।
रामबाड़ा-केदारनाथ रोपवे निर्माण के लिए बीते वर्ष शासन द्वारा यूडेक से सर्वेक्षण कराया गया था, जिसकी रिपोर्ट अभी जारी नहीं हुई है। इस संबंध में जो भी दिशा-निर्देश शासन-प्रशासन से मिलेंगे, उसी के आधार पर कार्य किया जाएगा।
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सुशील नौटियाल, जिला पर्यटन एवं साहसिक खेल अधिकारी
छह वर्षों से पुनर्निर्माण से गुजर रहा केदारनाथ धाम
2013 की आपदा से व्यापक रूप से प्रभावित केदारनाथ धाम छह वर्षों से पुनर्निर्माण से गुजर रहा है। धाम की भव्यता और सुंदरता दिनोंदिन निखर रही है। वैज्ञानिक तकनीक से लेकर पारंपरिक शैली से यहां निर्माण कार्य हो रहे हैं, लेकिन सात वर्ष बाद भी केदारनाथ तक आसान पैदल पहुंच के विकल्प नहीं तलाशे गए हैं। जो पैदल मार्ग उपयोग में है, वह एवलांच व भूस्खलन जोन में है, जिससे यहां खतरा बढ़ रहा है।
आपदा में व्यापक तबाही के बाद केदारनाथ मंदिर व केदारपुरी की सुरक्षा, सौंदर्य और संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया गया। अक्तूबर 2017 में पीएम मोदी द्वारा केदारनाथ पुनर्निर्माण को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल करने के बाद इस क्षेत्र को भव्य व दिव्य बनाने के कार्य हो रहे हैं, लेकिन आज भी केदारनाथ तक आसान पहुंच के लिए शासन-प्रशासन अपनी सोच को विकसित नहीं कर पाया है।
मार्च 2014 में मंदाकिनी नदी के बाई तरफ से निम द्वारा जो 9 किमी का नया पैदल मार्ग बनाया गया है, वहां अधिकांश एवलांच जोन में है। यहां नीचे से बह रही मंदाकिनी नदी के बहाव से हो रहे भूकटाव भूस्खलन का खतरा अलग से है, जिससे यहां बसे पड़ाव भी सुरक्षित नहीं हैं।
वहीं, वर्ष 2014-15 में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग द्वारा जो दो वैकल्पिक पैदल मार्ग तोषी-केदारनाथ व चौमासी-केदारनाथ बनाए गए थे, वे भी बदहाल पड़े हुए हैं। केदारनाथ के विधायक मनोज रावत का कहना है कि वर्ष 2016 में हिटो केदार अभियान के तहत पुराने ट्रेकों की खोज की गई थी, जिनका उद्देश्य केदारनाथ को चारों तरफ से लिंक करना था, लेकिन प्रदेश सरकार बीते तीन वर्षों में इस दिशा में कोई कार्य नहीं कर पाई है।