अनिल चंदोला, अमर उजाला, देहरादून
Published by: अलका त्यागी
Updated Wed, 19 Aug 2020 12:34 PM IST
गोल्डन ब्वॉय के नाम से मशहूर जसपाल राणा को आज भी राजीव गांधी खेल रत्न न मिलने का मलाल है। उनका कहना है कि 20 से ज्यादा इंटरनेशनल मेडल जीतने के बावजूद पुरस्कारों की सलेक्शन कमेटी ने उन्हें हमेशा नजरअंदाज किया। मांगकर या लड़कर सम्मान लिया जाए तो उसकी वैल्यू नहीं रहती।
द्रोणाचार्य अवार्ड के लिए चुने जाने के बाद अमर उजाला से बातचीत करते हुए भारतीय जूनियर निशानेबाजी टीम के कोच जसपाल राणा ने कहा कि पिछले वर्ष भी पुरस्कार के लिए उनका नाम उठा था, लेकिन चयन समिति को गलत सूचनाएं उपलब्ध कराई गईं। बाद में इसी मामले पर सोशल मीडिया में बेकार की बातें भी फैलाई गईं। उन्होंने कहा कि इसके खिलाफ मैं कोर्ट गया। मेरी लड़ाई सिर्फ इतनी है कि कमेटी तक झूठी और गलत बातें किसने व क्यों पहुंचाई।
उन्होंने कहा कि ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट अभिनव बिंद्रा के विरोध जताने के बाद मुझे लगा कि इस लड़ाई को लड़ने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कॉमनवेल्थ में आठ गोल्ड समेत इंटरनेशनल लेवल पर कई पदक जीतने के बावजूद मुझे खेल रत्न के काबिल नहीं समझा गया। सम्मान की वैल्यू तब है, जब वो समय पर और सही ढंग से दिया जाए।
जसपाल राणा ने बताया कि ओलंपिक कोटे के तहत चुने गए शूटर्स को घर पर ही कोचिंग की सुविधाएं दी जा रही हैं। सभी के घर में अत्याधुनिक मशीनें लगाई गई हैं। साथ ही उनकी फिटनेस और फोकस पर भी पूरा ध्यान दिया जा रहा है।
खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने की जरूरत
जूनियर शूटिंग टीम के कोच राणा ने कहा कि युवा खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। कुछ राज्यों में खिलाड़ियों को सरकारी नौकरियों में वरीयता दी जाती है। इससे नए खिलाड़ियों को हौसला मिलता है।
राजीव मेहता पर उठाए सवाल
राणा ने ओलंपिक संघ के महासचिव राजीव मेहता पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि राजीव मेहता को अपने राज्य उत्तराखंड को इसका लाभ देना चाहिए लेकिन वह लेकिन ऐसा नहीं कर रहे हैं। नेशनल गेम के लिए जो सुविधाएं देने की तैयारियां की जा रही हैं, उनको लॉन्ग टर्म कोचिंग के लिए रखा जाना चाहिए ताकि हम राष्ट्रीय स्तर की तरह नए खिलाड़ियों को चुनकर उन पर काम करें। कोचिंग एक लॉन्ग टर्म प्रोग्राम है, जिसमें कोच से ज्यादा खिलाड़ी की भूमिका होती है।
विस्तार
गोल्डन ब्वॉय के नाम से मशहूर जसपाल राणा को आज भी राजीव गांधी खेल रत्न न मिलने का मलाल है। उनका कहना है कि 20 से ज्यादा इंटरनेशनल मेडल जीतने के बावजूद पुरस्कारों की सलेक्शन कमेटी ने उन्हें हमेशा नजरअंदाज किया। मांगकर या लड़कर सम्मान लिया जाए तो उसकी वैल्यू नहीं रहती।
द्रोणाचार्य अवार्ड के लिए चुने जाने के बाद अमर उजाला से बातचीत करते हुए भारतीय जूनियर निशानेबाजी टीम के कोच जसपाल राणा ने कहा कि पिछले वर्ष भी पुरस्कार के लिए उनका नाम उठा था, लेकिन चयन समिति को गलत सूचनाएं उपलब्ध कराई गईं। बाद में इसी मामले पर सोशल मीडिया में बेकार की बातें भी फैलाई गईं। उन्होंने कहा कि इसके खिलाफ मैं कोर्ट गया। मेरी लड़ाई सिर्फ इतनी है कि कमेटी तक झूठी और गलत बातें किसने व क्यों पहुंचाई।
उन्होंने कहा कि ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट अभिनव बिंद्रा के विरोध जताने के बाद मुझे लगा कि इस लड़ाई को लड़ने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कॉमनवेल्थ में आठ गोल्ड समेत इंटरनेशनल लेवल पर कई पदक जीतने के बावजूद मुझे खेल रत्न के काबिल नहीं समझा गया। सम्मान की वैल्यू तब है, जब वो समय पर और सही ढंग से दिया जाए।