तमिलनाडु में कपड़े बनाने का प्रमुख शहर त्रिपुर की औरतें चरखा चलाती थीं। इस चरखा चलाती जन-चेतना को चेट्टियार ने शूट किया। औरतें चरखा चला रही हैं और बैकग्राउंड में कर्नाटक संगीत गायक डी. के. पट्टमल का स्वर उभरता है, ‘आडु राट्टे’ (चरखा चलने दो) गीत सुनाई देता है। इस गीत को तमिल स्वतंत्रता आंदोलनकारी नमक्कल रामलिंगम पिल्लई ने लिखा है।
2,000 औरतों को इस फ़िल्मांकन के लिए चेट्टियार ने अपने खर्च पर जमा किया था। एक और दृश्य में नेहरू चरखा चला रहे हैं और पार्श्वस्वर में कहा जाता है, ‘चरखा भारत को जोड़ता है।’ एक अन्य दृश्य में बेटा देवदास पिता मोहनदास के पैर दबा रहा है। इस डॉक्यूमेंट्री में 1927 मद्रास कांग्रेस, 1929 लाहौर कांग्रेस, गोलमेज कॉन्फ़्रेंस के फ़ुटेज शामिल हैं।
उस समय की प्रमुख हस्तियाँ जैसे सुभाष चंद्र बोस, राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, खान अब्दुल गफ़्फ़र खान, राज गोपालाचार्य, जे. बी. कृपलानी, सरोजिनी नायडू, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन आदि को यह डॉक्यूमेंट्री कवर करती है।
इन द फ़ुटस्टेप्स ऑफ़ द महात्मा
गांधी हेरिटेज पोर्टल पर चेट्टियार की यह डॉक्यूमेंट्री देखी जा सकती है। इसमें वॉयसओवर प्रारंभ में तमिल में था, बाद में उसे तेलगू में डब किया गया। शुरू में यह डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई लेकिन जल्द ही सेंसरशिप के कारण रोक दी गई। चेट्टियार ने इसे बनाते समय हुए अपने अनुभवों को अपनी पत्रिका ‘कुमारी मलर’ में प्रकाशित किया जो बाद में ‘इन द फ़ुटस्टेप्स ऑफ़ द महात्मा’ नाम से प्रकाशित हुए।
यह डॉक्यूमेंट्री इंग्लिश, हिन्दी में भी डब हुई। स्वतंत्र भारत में यह खो गई, जिसके कुछ संस्करण को इतिहासज्ञ वेंकटाचलपति ने खोज निकाला है।
गांधी फ़ाउंडेशन की साइट पर गांधी के पूरे जीवन (1869-1948) को समेटती एक डॉक्युमेंट्री, ‘महात्मा: लाइफ आफ गांधी’ मिलती है। 1968 में बनी इस डॉक्युमेंट्री में गांधी के जीवन एवं कार्य से जुड़े फ़ुटेज, जैसे नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन तथा गांधी, नेहरू, सुभाष के भाषण सुने जा सकते हैं।
इस वृतचित्र का निर्देशन और स्क्रिप्ट लेखन विठ्लभाई झावेरी ने किया है। यह ‘द गांधी नेशनल मेमोरियल फ़ंड’, भारत सरकार के फ़िल्म प्रभाग के सहयोग से बनी है। गांधी शताब्दी वर्ष के लिए बनी यह डॉक्यूमेंट्री पांच घंटे लंबी है। गांधी की मृत्यु के बीस साल बाद बनी यह डॉक्युमेंट्री उनके जीवन को विस्तार से दिखाती है।
गांधी का जीवन और कार्य ऐसा था कि वे जीते-जी कल्ट बन गए। लाखों लोगों के जीवन को उन्होंने प्रभावित किया। शताब्दी बाद भी उनकी जीवन पद्धति सामान्य लोगों, कलाकारों, रचनाकारों को प्रेरित करती है। एक बड़ी संख्या में लोग उनके प्रशंसक हैं, वहीं कुछ लोग उनके आलोचक भी हैं। लेकिन उनके कट्टर विरोधी भी उनकी महत्ता को स्वीकार करते हैं।
डॉक्यूमेंट्री- गांधी: हिज लाइफ़ एंड लेगेसी
सत्य और अहिंसा उनके जीवन के दो मूल मंत्र थे। गांधी जयंती के उपलक्ष्य पर 2009 में बीबीसी पर प्रस्तुत एक और डॉक्यूमेंट्री मिलती है। इसे बीबीसी के लिए पत्रकार और न्यूजरीडर मिशेल हुसैन ने ‘गांधी: हिज लाइफ़ एंड लेगेसी’ नाम से बनाया है। कथावाचक भी वे खुद हैं।
मिशेल हुसैन गांधी से जुड़े प्रत्येक स्थान पर जाती हैं, लोगों का साक्षात्कार करती हैं। साक्षात्कार के अलावा इस फ़िल्म में फ़ुटेज का सहारा लिया गया है। यह यूट्यूब पर उपलब्ध है। डॉक्यूमेंट्री ‘द मेकिंग ऑफ़ द महात्मा’ आर्काइव और विशेषज्ञों के माध्यम से भारत विभाजन को एक जटिल मुद्दा बताती है, गांधी की भूमिका बहुत विवादास्पद बताती है।
जहाँ-जहाँ गांधी अपने जीवन काल में रहे थे (राजकोट, लंदन, पिटोरिया, जोहानसबर्ग, दिल्ली, बंबई, अहमदाबाद आश्रम, बिडला भवन) मिशेल उन सब स्थानों जाती हैं। मिशेल डॉक्यूमेंट्री में गांधी के जीवन की प्रमुख घटनाओं, ऐतिहासिक दृश्यों, मुख्य प्रभावकारी और प्रेरक संदर्भों आदि का फ़िल्मांकन करती हैं।
मिशेल ने टॉनी बेन, लक्ष्मी सिंह तिकारी, इंदिरा अठावले, राज मोहन गांधी, रुद्रांग्शू मुखर्जी, त्रिदीप सुहुर्द, नारायण देसाई, प्रो. मृदुला मुखर्जी, विलियम डालरिम्पल, इला गांधी, प्रेम नायडु, फ़ातिमा मीर के साक्षात्कार से अपनी बात स्पष्ट करने की चेष्टा की है। यह डॉक्यूमेंट्री इस जादुई व्यक्तित्व गांधी को साहसी, जटिल व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करती है, जो दुनिया के लिए अहिंसा और असहयोग का मूर्त रूप बन गया है।
आगे पढ़िए गांधी और सिनेमा श्रृंखला का चौथा भाग- महात्मा गांधी का सिने-जगत पर प्रभाव
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