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gandhi jayanti special,impact of mahatma gandhi on world cinema
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गांधी और विश्व सिनेमा (भाग- 4): महात्मा गांधी का सिने-जगत पर प्रभाव
गांधी जी सिनेमा के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने सिनेमा को कभी नहीं अपनाया, उसे त्यागा हुआ था। वे कहते थे कि फ़िल्म थियेटर के स्थान पर वे स्पिनिंग थियेटर खोलना पसंद करेंगे।
महात्मा गांधी पर बनी फिल्में
- फोटो : Amarujala Creatives
महात्मा गांधी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की मुहीम चलाई और देश उनके साथ हो लिया। जिस तरह वे विदेशी चीजों के इस्तेमाल के खिलाफ़ थे उन्होंने उसे स्वयं त्यागा था और लोगों से भी उन्हें त्यागने का अनुरोध किया। वे सिनेमा के भी कट्टर विरोधी थे। उन्होंने सिनेमा को कभी नहीं अपनाया, उसे त्यागा हुआ था। वे कहते थे कि फ़िल्म थियेटर के स्थान पर वे स्पिनिंग थियेटर खोलना पसंद करेंगे।
प्रचलित धारणा के अनुसार मोहनदास करमचंद गांधी ने मात्र फ़िल्म ‘रामराज्य’ देखी। कुछ लोग उनके एक और फ़िल्म ‘मिशन टू मास्को’ देखने का जिक्र करते हैं।
उद्योगपति शांति कुमार मोरारजी अपने संस्मरण में लिखते हैं कि मीरा बहन ने उन्हें ‘मिशन टू मास्को’ फ़िल्म को देखने केलिए मनाया था। उन दिनों बापू आगा खाँ जेल से छूट कर नरोत्तम मोरारजी के बंगले पर रह रहे थे। गांधी जी ने ‘राजा हरिश्चंद्र’ नाटक को देख कर सत्यवचन का व्रत लिया था।
दादा साहेब फ़ालके ने भारत की पहली फ़िल्म 1913 में ‘राजा हरिश्चंद्र’ बनाई तो वह भी उन्होंने नहीं देखी। बहरआल यह जानी-मानी बात है कि उन्हें फ़िल्मों से कोई लगाव नहीं था। उन्हें सिनेमा के लोगों में भी कोई दिलचस्पी नहीं थी। गांधी जी भले ही चैपलिन से नहीं मिलना चाहते थे मगर चार्ली चैपलिन उनसे मिलकर अवश्य प्रभावित हुए।
गांधी और चार्ली चैपलिन की मुलाकात
गांधी गोलमेज कॉन्फ़्रेंस के लिए लंदन में थे तो सिनेमा की बड़ी हस्ती चार्ली चैपलिन (उस समय वह अपनी फ़िल्म ‘सिटी लाइट्स’ के प्रमोशन के लिए लंदन में था) उनसे मिलना चाहते थे, बापू की उसमें कोई रुचि न थी। महात्मा ने चार्ली का नाम तक नहीं सुना था। किसी ने उन्हें बताया कि वह एक प्रसिद्ध अभिनेता है।
गांधी का उत्तर था, मेरे पास उससे मिलने का समय नहीं है। लेकिन जब बताया गया कि वह आपके उद्देश्य से सहानुभूति रखता है तो वे उससे मिलने को राजी हो गए। चैपलिन ने विंस्टन चर्चिल को गांधी की तारीफ़ करते हुए उनसे मिलने जाने की बात बताई तो चर्चिल ने चार्ली पर ही फ़ब्ती कस दी। विंस्टन चर्चिल की नजर में गांधी ‘अधनंगा फ़कीर’ थे।
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चार्ली चैपलिन गांधी से मिले। मिलने से पहले चार्ली बहुत नर्वस थे।
मुलाकात में चार्ली ने कहा, मैं आपके देश और लोगों की स्वतंत्रता के पक्ष में हूँ, लेकिन एक बात नहीं समझ पाता हूँ कि आप मशीन के उपयोग के इतने खिलाफ़ क्यों हैं? क्या आपको नहीं लगता है यदि मशीनें प्रयोग नहीं की गई तो बहुत सारा काम ठप्प हो जाएगा? गांधी जी ने स्पष्ट किया, ‘मैं मशीनों के खिलाफ़ नहीं हूँ, परंतु मशीनें आदमी से उसका काम छीन लें यह सहन नहीं कर सकता हूँ।’
आगे जोड़ा, ‘आज हम आपके गुलाम हैं क्योंकि हम आपकी चीजों के आकर्षण से उबर नहीं पा रहे हैं। स्वतंत्रता अवश्य हमारी होगी अगर हम इस आकर्षण से स्वयं को स्वतंत्र कर लेंगे।’
चार्ली चैपलिन की फ़िल्म ‘मॉडर्न टाइम्स’ मशीनों का मजाक उड़ाते हुए, उनकी क्रूरता प्रदर्शित करती है और यदि ‘द ग्रेट डिक्टेटर’ फ़िल्म के अंतिम हिस्से को हम ध्यान से सुनें तो वहां महात्मा गांधी के प्रभाव, उनके अहिंसा के सिद्धांत की पुरजोर अपील को पाते हैं।
बापू पर बनी फिल्में और डॉक्यूमेंट्री
- फोटो : Pixabay
पश्चिमी देशों का गांधी को लेकर रुख
पश्चिम शुरू से गांधी में रुचि रख रहा था लेकिन अलग ढ़ंग से। शुरू में हॉलीवुड का रवैया गांधी के प्रति बड़ा नकारात्मक था। वे सीधे उन पर फ़िल्म नहीं बना रहे थे मगर ‘गंगा दीन’ तथा ‘एवरीबॉडी लाइक्स म्यूजिक’ जैसी फ़िल्मों में परोक्ष रूप से उनका मजाक उड़ा रहे थे। जिसका भारतीय फ़िल्म प्रेस विरोध कर रहा था।
1923 में ब्रिटिश सरकार गांधी पर फ़िल्म बनाने को उत्सुक थी मगर हीरो के रूप में नहीं। फ़ीचर फ़िल्म के पूर्व न्यूजरील दिखाना ब्रिटिश काल में भी होता था। 1922 में ऐसी ही एक साइलेंस न्यूजरील दिखाई जा रही थी, शीर्षक था, ‘गांधी– नाऊ कंडेम्ड टू सिक्स इयर्स’ इसमें गांधी को लोगों को संबोधित करते दिखाया गया था।
इसी तरह 1932 में उन्हें एक न्यूजरील में ‘गांधी फ़ास्ट ब्रिंग न्यू इंडियन क्राइसिस’ शीर्षक से दिखाया जा रहा था। ब्रिटिश सरकार के लिए वे एक बड़ी मुसीबत (‘नटोरियस एजीटेटर’) थे। पर एक अमेरिकन न्यूजरील कंपनी ‘फ़ॉक्स मूवीटोन’ ने 1931 में उनकी आवाज को ‘महात्मा गांधी टॉक्स’ नाम से पकड़ा था। गांधी जी ने इस शूटिंग को नापसंद करते हुए भी इसमें सहयोग किया था।
गांधी जी पर पहली ब्रिटिश फ़िल्म
गांधी जी पर पहली ब्रिटिश फ़िल्म की बात करें तो यह है, ‘नाइन आवर्स टू राम’। मार्क रॉबसन के निर्देशन में 1963 में बनी इस फ़िल्म में हत्या पूर्व गांधी के हत्यारे नाथुराम गोडसे की मानसिकता के नौ घंटों का काल्पनिक चित्रण किया है। यहाँ गांधी की भूमिका जे.एस कश्यप ने की है।
यह फ़िल्म स्टेनली वॉलपर्ट (उन्होंने गांधी, जिन्ना, नेहरू, भुट्टो पर भी लिखा है) के लेखन ‘गांधी’ज पैशन: द लाइफ़ एंड लेगेसी ऑफ़ महात्मा गांधी’ पर आधारित है। यहाँ गांधी कुछ ही दृश्यों में आते हैं और गांधी जी के अलावा अन्य अभिनेता गैर भारतीय हैं और उनका भारतीय लहजे में इंग्लिश बोलना बड़ा अटपटा लगता है।
पश्चिम वाले गांधी जी के खिलाफ़ फ़िल्म बनाना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने हॉलीवुड के उस समय के अमेरिका के एक प्रसिद्ध फ़िल्मकार डी. ड्ब्ल्यू. ग्रिफ़िथ से बात भी की थी। मगर बात बनी नहीं। इसके पहले गांधी जी पर फ़िल्म निर्माण की एक और योजना पूरी होने के पहले ही समाप्त हो गई।
गांधी जी की मृत्यु के कुछ साल बाद ही 1952 में हंगरी के फिल्मकार गेब्रियल पास्कल गांधी जी पर फिल्म निर्माण करना चाहते थे। संयोग कुछ ऐसा हुआ कि वे कुछ कर पाते उससे पहले ही 1954 में उनकी मृत्यु हो गई और यह प्रयास असफ़ल हो गया।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन की प्रोफ़ेसर और भारतीय संस्कृति तथा सिनेमा की विशेषज्ञ रेचल ड्वायर लिखती हैं, हंगेरियन फ़िल्म निर्देशक गैब्रियल पास्कल तथा इंग्लिश फ़िल्मकार डेविड लीन (बाद में उन्होंने ‘लॉरेंस ऑफ़ अरबिया’ जैसी बेहतरीन फ़िल्म बनाई और खूब प्रसिद्धि पाई) गांधी पर फ़िल्म बनाना चाहते थे। लीन तो 1958 में भारत आए भी मगर उनकी स्क्रिप्ट को स्वीकृति नहीं मिली। इस तरह कई निर्देशक चाहते हुए भी महात्मा को परदे पर न ला सके।
लेकिन एक अन्य प्रयास ऐसा सफ़ल हुआ जिसकी मिसाल मिलनी काफ़ी मुश्किल है। गांधी के अनुयायी मोतीलाल कोठारी ने रिचर्ड एटेनबरो को लुई फिशर की लिखी गांधी की जीवनी (गांधी: हिज लाइफ़ एंड मेसेज फ़ॉर द वर्ल्ड) दे कर इस ग्रैंड फ़िल्म को बनाने का सुझाव रिचर्ड एटेनबरो को दिया था।
सितारवादक रविशंकर ने एक समय राग ‘मोहनकौंस’ बनाया था, रविशंकर ने ही जॉर्ज फेंटॉन के साथ मिलकर एटेनबरो की फिल्म ‘गांधी’ के लिए संगीत रचना की। रिचर्ड एटेनबरो की ‘गांधी’ ने महात्मा गांधी पर बनी सारी फ़िल्मों के रिकॉर्ड भंग कर दिए। जिस पर हम आगे बात करेंगे।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदाई नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
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