बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में इस महीने 54 बच्चों की मौत हो गई है। इन बच्चों की उम्र 10 साल से कम बताई जा रही है। ये मौतें जिले के दो अस्पतालों में हुई हैं। हालांकि राज्य सरकार मौत का कारण दिमागी बुखार नहीं बता रही है। सरकार का कहना है कि अधिकतर मौत का कारण हाईपोग्लाइसीमिया है, यानी लो ब्लड शुगर। वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि हाईपोग्लाइसीमिया इस बुखार का ही एक भाग है।
मौत का आंकड़ा 54 तक पहुंच गया है, इनमें से 46 की मौत श्रीकृष्णा मेडिकल कॉलेज में हुई है।
क्या हैं लक्षण?
एईएस (एक्टूड इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) और जेई (जापानी इंसेफलाइटिस) को उत्तरी बिहार में चमकी बुखार के नाम से जाना जाता है। इससे पीड़ित बच्चों को तेज बुखार आता है और शरीर में ऐंठन होती है। इसके बाद बच्चे बेहोश हो जाते हैं। मरीज को उलटी आने और चिड़चिड़ेपन की शिकायत भी रहती है।
केंद्र सरकार की सात सदस्यीय टीम के जल्द ही अस्पतालों का दौरा करने और दिशानिर्देशों का सुझाव देने की संभावना है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्थिति पर चिंता जताई है और स्वास्थ्य विभाग को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया है कि प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र और अस्पताल मामलों से निपटने के लिए जरूरी मानकों का पालन करें।
जनवरी से लेकर अभी तक जिले के दो अस्पतालों में एईएस से पीड़ित 172 बच्चे भर्ती हुए। जिनमें से 157 एक जून के बाद भर्ती हुए और जो 43 मौत हुईं वो सभी जून महीने में हुई हैं। यहां के श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच) में जनवरी से अब तक 117 बच्चे भर्ती हुए, जिनमें से 102 जून में भर्ती हुए थे। इन बच्चों में से 36 की मौत हो गई है।
केजरीवाल मातृ सदन (अस्पताल) में जून के बाद से इस बीमारी के 55 मामले आए, जिनमें से सात बच्चों की मौत हो गई। अभी इस अस्पताल में चार और एसकेएमसीएच अस्पताल में छह बच्चों की हालत गंभीर बनी हुई है। वहीं इलाज के बाद अस्पताल ने 41 बच्चों को छुट्टी दे दी है।
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में एक नर्स का कहना है कि एईएस में आने वाले अधिकांश बच्चे हाइपोग्लाइसीमिया (लो ब्लड शुगर) और कुछ हाइपरग्लाइसेमिया (हाई ब्लड शुगर) से पीड़ित हैं। डॉक्टरों का कहना है कि पीड़ित बच्चों में अधिकतर गरीब परिवारों से हैं और कुपोषित हैं। फर्जी डॉक्टरों से इलाज कराने पर मामला और भी खराब हो जाता है। इसलिए जब भी बच्चा ठीक से खाए पीए ना तो उसे तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
एसकेएमसीएच अस्पताल के डॉक्टर एसके शाही का कहना है, "सभी मामले एईएस के तहत आ रहे हैं। लेकिन लोग इसे एक बीमारी मानते हैं जबकि यह सिर्फ एक सिंड्रोम है। हाइपोग्लाइसीमिया अधिकांश मौतों का कारण है।" उन्होंने आगे कहा, "हम एईएस (एक्टूड इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) कहने से बच रहे हैं। क्योंकि इससे गलत धारणा बन रही है। यहां हुई 36 मौत में से 25 हाइपोग्लाइसीमिया और पांच हाइपोग्लाइसीमिया और इलेक्ट्रोलाइट्स असंतुलन के कारण हुई हैं। छह मौतों का कारण अभी पता नहीं चल पाया है। अस्पताल से लिए गए सैंपल में से केवल दो मामलों में जापानी इंसेफेलाइटिस की पुष्टि हुई है।"
इंडियन अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स एसोसिएशन की कार्यकारी समिति के सदस्य डॉक्टर अरुण शाह का कहना है, "कोई कैसे कह सकता है कि ये एईएस के मामले नहीं हैं? हाइपोग्लाइसीमिया इसी का एक भाग है। एक स्वस्थ बच्चे में शुगर की कमी नहीं होती लेकिन एक गरीब और कुपोषित बच्चे के शरीर में शुगर की कमी होती है। गर्म और उमस वाले मौसम, गंदगी और कुपोषण भी एईएस के पीछे के कारण हैं।"
उन्होंने आगे कहा, "राज्य सरकार पोषण कार्यक्रम और जागरूकता अभियान चलाने में विफल रही जिसे फरवरी में शुरू किया जाना चाहिए था। हाइपोग्लाइसीमिया के मेडिकल शब्दजाल के पीछे छिपना बहुत आसान है। उन्हें एईएस से निपटने के लिए हाइपोग्लाइसीमिया से निपटने के तरीके खोजने चाहिए।"
बिहार के स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव संजय कुमार ने कहा, "हमें केंद्रीय टीम से कुछ दिशानिर्देश मिलने की उम्मीद है। अधिकांश मौतें हाइपोग्लाइसीमिया के कारण हुईं। इनमें से कुछ मरीज सीतामढ़ी, शिवहर, वैशाली और पूर्वी चंपारण जिलों से हैं।"
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में इस महीने 54 बच्चों की मौत हो गई है। इन बच्चों की उम्र 10 साल से कम बताई जा रही है। ये मौतें जिले के दो अस्पतालों में हुई हैं। हालांकि राज्य सरकार मौत का कारण दिमागी बुखार नहीं बता रही है। सरकार का कहना है कि अधिकतर मौत का कारण हाईपोग्लाइसीमिया है, यानी लो ब्लड शुगर। वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि हाईपोग्लाइसीमिया इस बुखार का ही एक भाग है।
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बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में इस महीने 54 बच्चों की मौत हो गई है। इन बच्चों की उम्र 10 साल से कम बताई जा रही है। ये मौतें जिले के दो अस्पतालों में हुई हैं। हालांकि राज्य सरकार मौत का कारण दिमागी बुखार नहीं बता रही है। सरकार का कहना है कि अधिकतर मौत का कारण हाईपोग्लाइसीमिया है, यानी लो ब्लड शुगर। वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि हाईपोग्लाइसीमिया इस बुखार का ही एक भाग है।
मौत का आंकड़ा 54 तक पहुंच गया है, इनमें से 46 की मौत श्रीकृष्णा मेडिकल कॉलेज में हुई है।
क्या हैं लक्षण?
एईएस (एक्टूड इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) और जेई (जापानी इंसेफलाइटिस) को उत्तरी बिहार में चमकी बुखार के नाम से जाना जाता है। इससे पीड़ित बच्चों को तेज बुखार आता है और शरीर में ऐंठन होती है। इसके बाद बच्चे बेहोश हो जाते हैं। मरीज को उलटी आने और चिड़चिड़ेपन की शिकायत भी रहती है।
केंद्र सरकार की सात सदस्यीय टीम के जल्द ही अस्पतालों का दौरा करने और दिशानिर्देशों का सुझाव देने की संभावना है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्थिति पर चिंता जताई है और स्वास्थ्य विभाग को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया है कि प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र और अस्पताल मामलों से निपटने के लिए जरूरी मानकों का पालन करें।
जनवरी से लेकर अभी तक जिले के दो अस्पतालों में एईएस से पीड़ित 172 बच्चे भर्ती हुए। जिनमें से 157 एक जून के बाद भर्ती हुए और जो 43 मौत हुईं वो सभी जून महीने में हुई हैं। यहां के श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच) में जनवरी से अब तक 117 बच्चे भर्ती हुए, जिनमें से 102 जून में भर्ती हुए थे। इन बच्चों में से 36 की मौत हो गई है।
केजरीवाल मातृ सदन (अस्पताल) में जून के बाद से इस बीमारी के 55 मामले आए, जिनमें से सात बच्चों की मौत हो गई। अभी इस अस्पताल में चार और एसकेएमसीएच अस्पताल में छह बच्चों की हालत गंभीर बनी हुई है। वहीं इलाज के बाद अस्पताल ने 41 बच्चों को छुट्टी दे दी है।