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Rahu Kaal: क्या होता है राहुकाल, क्यों माना जाता है इसे अशुभ ?
पं जयगोविंद शास्त्री, ज्योतिषाचार्य
Published by: विनोद शुक्ला
Updated Thu, 09 Apr 2020 09:42 AM IST
समुद्र मंथन के समय जब अमृतकलश लेकर भगवान धनवंतरी प्रकट हुए, तो देवों और दानवों में सर्वप्रथम अमृतपान करने को लेकर विवाद छिड़ गया। अमृतप्राप्ति के प्रति इनके बीच बढ़ती कलह को अमंगल संकेत मानते हुए धनवंतरी जी ने भगवान विष्णु का स्मरण कर देवों और दानवों के मध्य हो रहे झगडे को समाप्त करने की प्रार्थना की। दानव अमृतपान करके कहीं अमर न होजायें, यह सोचकर सृष्टि की रक्षा के प्रति नारायण की भी चिंता बढ़ने लगी और परिस्थिति को अति संवेदनशील मानते हुए श्रीविष्णु ने विश्वमोहिनी रूप धारण किया तथा दानवों को मोहित करके स्वयं के द्वारा देवों और दानवों में अमृत का बराबर-बराबर बँटवारा करने का प्रस्ताव रखा जिसे दैत्यों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। दोनों पक्ष पंक्तिबद्ध होकर अलग-अलग बैठ गए।
दैत्वों का सेनापति राहु बहुत बुद्धिमान था। वो वेश बदलकर देवताओं की पंक्ति में जा बैठा, जैसे ही राहु ने अमृतपान किया, सूर्य और चन्द्र ने उसे पहचान लिया जिसके परिणाम स्वरूप नारायण ने सुदर्शन चक्र से राहु का गला काट दिया। अमृत की कुछ बूँदें राहु के गले से नीचे उतर चुकी थीं और वो अमरता प्राप्त कर चुके थे। राहु के सर कटने के काल को 'राहुकाल' कहा गया जो अशुभ माना जाता है। तभी से इस काल को देव-दानव दोनों ही अशुभ मानते हैं इस काल में आरम्भ किये गए कार्य-व्यापार में काफी दिक्कतों के बाद कामयाबी मिलती है अतः इस काल में कोई भी नयाकार्य आरम्भ करने से बचना चाहिए।
राहु के शरीर के सिरोभाग को राहु और गले से नीचे के भाग को केतु कहा गया। राहु के खून की जो बूँदें पृथ्वी पर गिरीं वो प्याज बनी तथा केतु के रक्त की बूंदों से लहसुन की उत्पत्ति हुई। चूँकि प्याज-लहसुन में इनके अमृतमय रक्त की बूँदें मिल चुकीं थी इसलिए ये भी अमृततुल्य माने गए और इन दोनों खाद्य पदार्थों में अनेकों रोंगों को शमन करने की शक्ति आ गई जिसे आज भी हर कोई स्वीकार करता है।
राहु का सिर कटने की घटना उस दिन शायंकाल की है जिसे पूरे दिन के घंटा मिनट का आँठवा भाग माना गया। कालगणना के अनुसार पृथ्वी पर किसी भी जगह के सूर्योदय के समय से सप्ताह के पहले दिन सोमवार को दिनमान के आँठवें भाग में से दूसरा भाग, शनिवार को दिनमान के आठवें भाग में से तीसरा भाग, शुक्रवार को आठवें भाग में से चौथा भाग, बुधवार को पांचवां भाग, गुरुवार को छठा भाग, मंगलवार को सातवां तथा रविवार को दिनमान का आठवां भाग राहुकाल होता होता है।
किसी बड़े तथा शुभकार्य के आरम्भ के समय उस दिन के दिनमान का पूरा मान घंटा मिनट में निकालें उसे आठ बराबर भागों में बांटकर स्थानीय सूर्योदय में जोड़ दें आपको शुद्ध राहुकाल ज्ञात हो जाएगा जो भी दिन होगा उस भाग को उस दिन का राहुकाल माने और इस काल को सभी शुभ कार्यों के आरम्भ के वर्जित माने, अन्यथा कार्य सफलता में बड़ी बड़ी बाधाओं की आशंका रहती है।
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