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Supreme Court order lakshadweep administration to continue meat products in school mid day meal
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Lakshadweep: लक्षद्वीप में बच्चों को मिड डे मील में मिलते रहेंगे मांस उत्पाद, सुप्रीम कोर्ट ने दिया फैसला
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: शिव शरण शुक्ला
Updated Sat, 23 Jul 2022 07:49 PM IST
सार
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अब लक्षद्वीप में स्कूल जाने वाले बच्चों को मिड-डे मिल में नान वेज आइटम मिलते रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शिक्षा निदेशालय ने इस बाबत आदेश जारी कर दिया है।
स्कूली बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन के मेन्यू से डेयरी फार्म बंद करने और चिकन सहित मांस उत्पादों को हटाने के लक्षद्वीप प्रशासन के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आ गया है। जिसके बाद अब लक्षद्वीप में स्कूल जाने वाले बच्चों को मिड-डे मिल में नान वेज आइटम मिलते रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शिक्षा निदेशालय ने इस बाबत आदेश जारी कर दिया है।
दरअसल, केरल उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने सितंबर 2021 में कवरत्ती के मूल निवासी अजमल अहमद द्वारा दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया था। इस जनहित याचिका में आरोप लगाया गया था कि जब प्रफुल्ल खोड़ा पटेल ने पिछले साल दिसंबर में द्वीप प्रशासक के रूप में कार्यभार संभाला था, तब उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता पशुपालन विभाग द्वारा चलाए जा रहे डेयरी फार्मों को बंद करवाना और द्वीपवासियों के भोजन की आदतों को ‘बदलवाना’ था, जिसका पालन अनन्त काल से होता चला आ रहा है।
अहमद की याचिका में पशुपालन निदेशक के 21 मई 2021 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि सभी डेयरी फार्मों को तत्काल बंद किया जाए। याचिकाकर्ता अहमद ने कहा कि यह प्रस्तावित ‘पशु संरक्षण (विनियम), 2021’ को लागू करने के इरादे से किया गया था, जो गायों, बछड़ों और बैल के वध पर प्रतिबंध लगाता है।
उन्होंने याचिका में कहा था कि इस प्रस्तावित नियम के अनुसार, डेयरी फार्मों को बंद करके, दूध उत्पादों को प्राप्त करने के लिए द्वीपवासियों के स्त्रोत को कम करके और उन्हें गुजरात से आयातित दूध उत्पादों को खरीदने के लिए मजबूर करके बीफ और बीफ उत्पादों की बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। याचिकाकर्ता ने लक्षद्वीप में स्कूली बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन के मेनू से चिकन और अन्य मांस की वस्तुओं को हटाने के प्रशासन के फैसले को भी चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता अहमद ने आरोप लगाया था कि यह द्वीप के लोगों के भोजन की आदतों को चुनने के अधिकार में हस्तक्षेप करने के अलावा और कुछ नहीं है। उन्होंने कहा था कि ये संविधान के तहत निहित अधिकार के खिलाफ है।
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