जरा संभलिए..अपने शरीर को किसी भी डॉक्टर के पास सौंपने से पहले जरा जांच तो कीजिए कि जिसे आप डॉक्टर समझ बेहोश हो बेड पर लेट गए वह डॉक्टर है भी या नहीं।
जी हां ऐसे ही किसी भी नर्सिंग होम में अपने स्वास्थ्य की मंगल कामना करना आप पर भारी पड़ सकता है और शायद मंगल कामना के चक्कर में आपकों अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा भी गंवाना पड़े। एक व्यक्ति को अपनी लापरवाही का खामियाजा अपने कूल्हे में निकले फोडे के
तौर पर भुगतना पड़ रहा है, जिसे ठीक करने के लिए अब सर्जरी होगी।
उत्तराखंड के सुदूर पहाड़ी अंचलों में ही नहीं राजधानी देहरादून में भी झोलाछाप डाक्टरों की भरमार है। देहरादून में पैसा बचाने के लिए कई नर्सिंगहोम अप्रशिक्षित स्टाफ रखे हैं। मरीजों का कहना है कि इन नर्सिंगहोमों में रात की व्यवस्था ऐसा ही स्टाफ संभालता है। मुख्य चिकित्साधिकारी डा. एएस सेंगर भी नर्सिंगहोमों में अप्रशिक्षित स्टाफ की बात मानते हैं।
और खराब हो गए पिस्टुला
उनका कहना है कि क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट लागू होने के बाद नर्सिंगहोमों में अप्रशिक्षित स्टाफ रखने की समस्या खत्म हो जाएगी। गुर्दा रोगी प्रीति त्यागी ने बताया कि डायलिसिस यूनिट के अप्रशिक्षित टेक्नीशियन के चक्कर में उनके तीन फिस्टुला खराब हो चुके हैं।
एक फिस्टुला बनवाने में 20-25 हजार रुपये खर्च आता है। इसे बनवाने दिल्ली जाना पड़ता है। प्रीति वेटेनरी विभाग की सेवानिवृत्त अतिरिक्त निदेशक डा. डीएन त्यागी की पत्नी हैं। उनका कहना है कि एक गुर्दा रोगी के अधिकतम चार फिस्टुला बन सकते हैं।
लगाया इंजेक्शन निकला फोड़ा
बताया कि मेरा तीन फिस्टुला खराब हो चुके हैं चौथा खराब हुआ तो डायलिसिस नहीं हो पाएगी। दून अस्पताल की इमरजेंसी में बुधवार को आए रोगी राजेश कुमार ने बताया कि उसे टायफाइड हुआ था। रायपुर रोड स्थित एक नर्सिंगहोम में भरती था। उसके दोनों कूल्हों पर चार इंजेक्शन लगे थे। चारों पक कर फोड़ा हो गए। एक का जख्म नासूर बन गया है।
डॉक्टर ने राजेश को सर्जरी की सलाह दी है। इसी तरह कोरोनेशन की ओपीडी में आईं विमला रावत के हाथ में गलत ‘प्रिक’ होने से सड़न पैदा हो गई है। ऐसे ही कई लोग हैं जिन्होंने सरकारी अस्पताल की लाइन में लगने के बजाय अपना शरीर निजी क्लीनिकों को सौंपना ज्यादा उचित समझा ओर आज वह इसी का खमियाजा भुगतने को विवश हैं।
जरा संभलिए..अपने शरीर को किसी भी डॉक्टर के पास सौंपने से पहले जरा जांच तो कीजिए कि जिसे आप डॉक्टर समझ बेहोश हो बेड पर लेट गए वह डॉक्टर है भी या नहीं।
जी हां ऐसे ही किसी भी नर्सिंग होम में अपने स्वास्थ्य की मंगल कामना करना आप पर भारी पड़ सकता है और शायद मंगल कामना के चक्कर में आपकों अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा भी गंवाना पड़े। एक व्यक्ति को अपनी लापरवाही का खामियाजा अपने कूल्हे में निकले फोडे के
तौर पर भुगतना पड़ रहा है, जिसे ठीक करने के लिए अब सर्जरी होगी।
उत्तराखंड के सुदूर पहाड़ी अंचलों में ही नहीं राजधानी देहरादून में भी झोलाछाप डाक्टरों की भरमार है। देहरादून में पैसा बचाने के लिए कई नर्सिंगहोम अप्रशिक्षित स्टाफ रखे हैं। मरीजों का कहना है कि इन नर्सिंगहोमों में रात की व्यवस्था ऐसा ही स्टाफ संभालता है। मुख्य चिकित्साधिकारी डा. एएस सेंगर भी नर्सिंगहोमों में अप्रशिक्षित स्टाफ की बात मानते हैं।
और खराब हो गए पिस्टुला
उनका कहना है कि क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट लागू होने के बाद नर्सिंगहोमों में अप्रशिक्षित स्टाफ रखने की समस्या खत्म हो जाएगी। गुर्दा रोगी प्रीति त्यागी ने बताया कि डायलिसिस यूनिट के अप्रशिक्षित टेक्नीशियन के चक्कर में उनके तीन फिस्टुला खराब हो चुके हैं।
एक फिस्टुला बनवाने में 20-25 हजार रुपये खर्च आता है। इसे बनवाने दिल्ली जाना पड़ता है। प्रीति वेटेनरी विभाग की सेवानिवृत्त अतिरिक्त निदेशक डा. डीएन त्यागी की पत्नी हैं। उनका कहना है कि एक गुर्दा रोगी के अधिकतम चार फिस्टुला बन सकते हैं।
लगाया इंजेक्शन निकला फोड़ा
बताया कि मेरा तीन फिस्टुला खराब हो चुके हैं चौथा खराब हुआ तो डायलिसिस नहीं हो पाएगी। दून अस्पताल की इमरजेंसी में बुधवार को आए रोगी राजेश कुमार ने बताया कि उसे टायफाइड हुआ था। रायपुर रोड स्थित एक नर्सिंगहोम में भरती था। उसके दोनों कूल्हों पर चार इंजेक्शन लगे थे। चारों पक कर फोड़ा हो गए। एक का जख्म नासूर बन गया है।
डॉक्टर ने राजेश को सर्जरी की सलाह दी है। इसी तरह कोरोनेशन की ओपीडी में आईं विमला रावत के हाथ में गलत ‘प्रिक’ होने से सड़न पैदा हो गई है। ऐसे ही कई लोग हैं जिन्होंने सरकारी अस्पताल की लाइन में लगने के बजाय अपना शरीर निजी क्लीनिकों को सौंपना ज्यादा उचित समझा ओर आज वह इसी का खमियाजा भुगतने को विवश हैं।