करीब साढ़े तीन हजार साल पहले कुमाऊं में ताम्र संचय युगीन संस्कृति विकसित हुई थी। यह करीब 15वीं सदी ईसा पूर्व का वह काल माना जाता है जब मनुष्य ने पत्थरों के उपकरणों के स्थान पर तांबे से उपकरण और हथियार आदि बनाने शुरू किए। अस्सी के दशक, उसके बाद कुमाऊं के कई इलाकों में ताम्र संचय युगीन संस्कृति वाले तांबे की बनी मानव आकृतियां, अन्य उपकरण मिले। अंग्रेजों के शासन से पहले चंद, गोरखा शासन के दौरान कुमाऊं के तमाम इलाकों में तांबे का अच्छा खासा कारोबार था। कुछ इलाकों में तांबे की खानें भी थी, लेकिन अब यह उद्योग समाप्त हो गया है।
देश में ताम्र युगीन उपकरण 1822 से प्रकाश में आते रहे हैं, लेकिन सबसे पहले इस ओर 1905, 1907 में आगरा के अवध प्रांत में तैनात जिला मजिस्ट्रेट विसेंट स्मिथ ने ध्यान दिया। उस दौर में मिले ताम्र उपकरणों को सूचीबद्ध करते हुए उन्होंने सबसे ताम्रयुग की कल्पना की थी। विशेषज्ञों ने शुरू में यह अनुमान लगाया कि ताम्रयुगीन संस्कृति तत्कालीन अविभाजित उप्र में सिर्फ सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, बदायूं आदि इलाकों तक ही सीमित थी। पुराविद कौशल सक्सेना के मुताबिक 1986 में ताम्र संस्कृति का पहला उपकरण हल्द्वानी में प्राप्त हुआ।
यह मानव आकृति के रूप में बना था। इसके बाद पिथौरागढ़ जिले के बनकोट, नैनीपातल में भी कुछ ताम्र संचय संस्कृति के उपकरण मिले। अब तक कुल 14 ताम्र मानव आकृतियां मिल चुकी हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक कुमाऊं में मिले यह उपकरण 15वीं सदी ईसा पूर्व के माने जाते हैं। इस आधार पर यह ताम्र मानव आकृतियां, उपकरण करीब साढ़े तीन हजार साल पुराने माने जाते हैं।
इनमें कुछ उपकरण पीटकर बनाए हुए और कुछ सांचे के बने हैं। उल्लेखनीय है कि कुमाऊं की खरई पट्टी (अब जिला बागेश्वर), सल्ला कफड़खान, राईआगर, बोरा आगर, अस्कोट, रामगढ़ आदि इलाकों में तांबे की खानें थी। चंद और गोरखा शासनकाल तक तांबे की खानों से तांबे का दोहन होता रहा, लेकिन अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में तांबे की खानों पर रोक लगा दी।
प्राचीन काल से ही यहां रहने वाले ताम्र कारीगर तांबे के बर्तन आदि बनाने में काफी पारंगत रहे हैं। तांबे की खानें बंद होने के बावजूद अल्मोड़ा में हाल के बरसों तक तांबे के बर्तन बनाने का कारोबार अच्छा खासा चलता था, लेकिन पिछले कुछ सालों से मशीनों के बने बर्तन आने के बाद यह कारोबार समाप्ति की ओर है।
400 साल पुराना अल्मोड़ा का ताम्र उद्योग अब दम तोड़ रहा है। अल्मोड़ा को ताम्र नगरी भी कहा जाता था और अल्मोड़ा के टम्टा मोहल्ले में करीब 72 परिवार इस व्यवसाय से जुड़े थे। यहां के ताम्र कारीगरों द्वारा बनाए गए परंपरागत तौला, गागर, फौला, परात, पूजा के बर्तन के अलावा वाद्य यंत्र रणसिंघ, तुतरी आदि बहुत प्रसिद्ध थे।
हर परिवार का अपना कारखाना था, लेकिन हाल के वर्षों में मशीनीकरण के आगे यहां के ताम्र कारीगर नहीं टिक पा रहे हैं, जिससे करीब 200 ताम्र कारीगरों की रोजी-रोटी पर असर पड़ा है और कई ताम्र शिल्पी रोजगार की तलाश में यहां से पलायन कर चुके हैं।