हॉकी का नाम सुनते ही जेहन में सिर्फ ध्यानचंद का ही नाम उभर कर आता है। दुनिया में कोई खिलाड़ी अपने खेल में इतना लोकप्रिय नहीं हुआ, जितना ध्यानचंद हॉकी में हुए थे। ध्यानचंद के खेल और उनकी प्रसिद्धी को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि उनका जन्म हॉकी के लिए ही हुआ था। वह हॉकी को बेहद प्यार करते थे। इसी वजह से झांसी में उनका अंतिम संस्कार किसी श्मशान घाट में नहीं किया गया। बल्कि उस मैदान में किया गया जहां उन्होंने हॉकी खेलकर दुनिया को अपना शानदार परिचय दिया था।
ध्यानचंद ने अपने कला कौशल से हॉकी को जो ऊंचाई दी वह कोई अन्य खिलाड़ी अपने खेल को नहीं दे पाया। ध्यानचंद का जन्म इलाहाबाद में हुआ लेकिन उनका अधिकांश जीवन झांसी में बीता। उन्हें 21 साल में पहली बार न्यूजीलैंड जाने वाली टीम में चुना गया। यह दौरा काफी यादगार रहा। टीम इंडिया ने 21 में से 18 मैच जीते। 23 साल की उम्र में ध्यानचंद ने पहली बार हॉलैंड में ओलंपिक में हिस्सा लिया। इस ओलंपिक में ध्यानचंद ने 4 मैचों में 23 गोल किए। हॉकी इतिहास में सबसे ज्यादा गोल ध्यानचंद ने ही किए। 1932 ओलंपिक में टीम इंडिया ने अमेरिका को 24-1 के भारी अंतर से हराया। इस जीत में ध्यानचंद ओर उनके बड़े भाई रूप सिंह ने 8-8 गोल किए थे।
पढ़े:-
जानिए, सचिन तेंदुलकर कैसे हो गए भारत रत्न के लिए ध्यानचंद से आगे
ध्यानचंद पूरी दुनिया में हॉकी के लिए जाने जाते हैं। हॉकी खेलने वाले सभी देशों में उनका नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। ऑस्ट्रिया की राजधानी विएना में एक स्पोर्ट्स क्लब में उनकी मूर्ति लगाई गई है। जिसमें उनको चार हाथों में स्टिक पकड़े दिखाया गया है। ध्यानचंद ने अपनी आत्मकथा भी लिखी है। उसका र्शीषक गोल है। उसमें उन्होंने अपने आपको बहुत साधारण आदमी बताया है।
ध्यानचंद को भारत रत्न दिलाने के लिए हस्ताक्षर करें यहां -
goo.gl/hYuwMF
हॉकी का नाम सुनते ही जेहन में सिर्फ ध्यानचंद का ही नाम उभर कर आता है। दुनिया में कोई खिलाड़ी अपने खेल में इतना लोकप्रिय नहीं हुआ, जितना ध्यानचंद हॉकी में हुए थे। ध्यानचंद के खेल और उनकी प्रसिद्धी को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि उनका जन्म हॉकी के लिए ही हुआ था। वह हॉकी को बेहद प्यार करते थे। इसी वजह से झांसी में उनका अंतिम संस्कार किसी श्मशान घाट में नहीं किया गया। बल्कि उस मैदान में किया गया जहां उन्होंने हॉकी खेलकर दुनिया को अपना शानदार परिचय दिया था।
ध्यानचंद ने अपने कला कौशल से हॉकी को जो ऊंचाई दी वह कोई अन्य खिलाड़ी अपने खेल को नहीं दे पाया। ध्यानचंद का जन्म इलाहाबाद में हुआ लेकिन उनका अधिकांश जीवन झांसी में बीता। उन्हें 21 साल में पहली बार न्यूजीलैंड जाने वाली टीम में चुना गया। यह दौरा काफी यादगार रहा। टीम इंडिया ने 21 में से 18 मैच जीते। 23 साल की उम्र में ध्यानचंद ने पहली बार हॉलैंड में ओलंपिक में हिस्सा लिया। इस ओलंपिक में ध्यानचंद ने 4 मैचों में 23 गोल किए। हॉकी इतिहास में सबसे ज्यादा गोल ध्यानचंद ने ही किए। 1932 ओलंपिक में टीम इंडिया ने अमेरिका को 24-1 के भारी अंतर से हराया। इस जीत में ध्यानचंद ओर उनके बड़े भाई रूप सिंह ने 8-8 गोल किए थे।
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