आयुर्वेद में गंभीर से गंभीर बीमारी का इलाज है। संक्रमण से जूझने के लिए आयुर्वेद में भी कई औषधियां मौजूद हैं। ये औषधियां किसी साइड इफेक्ट के बगैर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती हैं, जो गंभीर बीमारियों से लड़ने के लिए आवश्यक है। आयुष मंत्रालय के तहत हुए कुछ प्रयोगों के दौरान देखा गया कि जिन लोगों ने क्वारंटीन की अवधि में कम से कम सात दिन आयुर्वेदिक या होम्योपैथिक दवा ली, उन सभी मरीजों में संक्रमण नहीं बढ़ा और वे रोगमुक्त हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ‘मन की बात’ में हाल ही इनोवेटिव इंडिया मुहिम से जोड़कर परंपरागत आयुर्विज्ञान को बढ़ावा देने पर जोर दिया था। आयुष मंत्रालय के शोधों में सामने आ रहे उत्साहजनक नतीजों ने उम्मीद की किरण दिखाई है।
- क्वारंटीन में काढ़े फायदेमंद
मंत्रालय के दिशा-निर्देशों में कहा गया है, क्वारंटीन के दौरान लोग आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों वाले काढ़ों और कुछ होम्योपैथिक दवाइयों का प्रयोग फायदेमंद है। आयुर्वेद के मौलिक सिद्धांतों का चिकित्सा विज्ञान के मानकों पर तकनीकी अध्ययन की यह गंभीर शुरुआत है। इससे रोजगार के बड़े अवसर सृजित होंगे और रिसर्च करने के लिए देश के युवा और चिकित्सा जगत के विशेषज्ञ आकर्षित भी होंगे। प्रधानमंत्री की पहल पर मंत्रालय ने आधुनिक चिकित्सा के मानकों पर आयुर्वेद के चिकित्सा सूत्रों को अपनाया है।
पहले भी स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत परंपरागत भारतीय औषधि विभाग गठित कर सचिव तैनात किया गया था। इसके बावजूद एलोपैथी के मुकाबले आयुर्वेद से दोयम दर्जे का व्यवहार होता रहा। पहली बार सरकार ने आईएएस की जगह आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. राजेश कोटेचा को सचिव नियुक्त किया। इसके बाद कई नए शोधकार्यों को गति मिली। कोटेचा की पहल पर ही एक प्रकार के रक्त कैंसर एक्यूट प्रोमाइलोसिटिक ल्यूकेमिया के इलाज में दिवंगत चंद्रप्रकाश द्वारा विकसित रसौषधि पर शोध करके, उसे प्रभावी पाया गया। इसके बाद इस औषधि के वैज्ञानिक विकास का रास्ता साफ हुआ।
- बजट बढ़ने के बाद से मिली आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार को गति
पहले आयुर्वेद के नगण्य बजट के कारण इस पद्धति के विकास, प्रचार-प्रसार को गति नहीं मिली। वर्ष 2014-15 में आयुष का बजट 1069 करोड़ रु था, वहीं 2020-21 में 2122.08 करोड़ रु है। 1956 में दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्थापना की गई थी। सात दशक के बाद आज भी एम्स परिसर में आयुर्वेद नाम का कक्ष ढूंढने से भी नहीं मिलता। अब राजधानी में लगभग 10.015 एकड़ क्षेत्र में 157 करोड़ रुपये की लागत से अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान की स्थापना हुई है।
(यह रिपोर्ट वैद्य बालेंदु प्रकाश से बातचीत पर आधारित है।)