भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO - Indian Space Research Organisation) ने शुरुआत से ही चंद्रयान 2 की कई तस्वीरें सार्वजनिक की हैं। आपने हमेशा इसकी तस्वीरों में देखा होगा कि ये सैटेलाइट किसी सुनहरी चीज में लिपटा होता है। सिर्फ चंद्रयान 2 ही नहीं, अंतरिक्ष में भेजा जाने वाला कोई भी सैटेलाइट इसी तरह सोने सी परत में लपेटा जाता है।
क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों किया जाता है? क्यों हमारे वैज्ञानिक सैटेलाइट्स पर ये सोने सी परत चढ़ाते हैं? क्या सिर्फ इसरो ही ऐसा करता है या नासा भी? क्या ये सुनहरी परत सोने से बनी होती है? इन सभी सवालों के जवाब काफी रोचक हैं। ये जवाब हम आपको आगे दे रहे हैं।
सैटेलाइट्स को जिस सुनहरी चीज में लपेटा जाता है उसे मल्टी लेयर इंसुलेशन (MLI) कहते हैं। यह काफी हल्का लेकिन बेहद मजबूत होता है। काफी पतली-पतली सतहों को मिलाकर एक मोटी परत बनाई जाती है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में मल्टी लेयर इंसुलेशन का नाम दिया गया है। आम भाषा में लोग इसे गोल्ड प्लेटिंग भी कहते हैं। आगे पढ़ें, क्या ये सोने से बना होता है?
मल्टी लेयर इंसुलेशन में पॉलिमाइड या पॉलीस्टर फिल्म्स का इस्तेमाल किया जाता है। ये फिल्म्स एक अलग-अलग तरह की प्लास्टिक्स होते हैं, जिनकी एल्युमिनियम की पतली परतों से कोटिंग की जाती है। इसमें सोने का भी इस्तेमाल होता है। हालांकि हमेशा सोने का प्रयोग जरूरी नहीं होता। यह इस बात पर निर्भर करता है कि सैटेलाइट कहां तक जाएगा, किस ऑर्बिट में रहेगा। आगे पढ़ें, क्यों होता है इस परत का इस्तेमाल?
विज्ञान ने ये सिद्ध किया है कि सोना सैटेलाइट की परिवर्तनशीलता, चालकता (कंडक्टिविटी) और जंग के प्रतिरोध को रोकता है। इसके अलावा जिन धातुओं का इस्तेमाल इस कोटिंग में होता है वे भी एयरोस्पेस इंडस्ट्री में बेदह मूल्यवान हैं। इनमें थर्मल कंट्रोल प्रॉपर्टी होती है। यानी ये परत हानिकारक इन्फ्रारेड रेडिएशन, थर्मल रेडिएशन को रोकने में मदद करती है।
सोना सहित अन्य धातुओं से बनी इस परत से अगर सैटेलाइट को ढका नहीं जाएगा, तो अंतरिक्ष में होने वाले रेडिएशन इतने खतरनाक होते हैं कि वे सैटेलाइट को तुरंत नष्ट कर सकते हैं। ये परत सैटेलाइट के नाजुक उपकरणओं, इसके सेंसर्स को इससे टकराने वाली हर तरह की वस्तुओं से भी बचाती है। आगे पढ़ें, क्या नासा भी करता है इस परत का इस्तेमाल?
हां, नासा भी अंतरिक्ष में भेजने वाली सैटेलाइट्स पर अंतरिक्ष यात्रियों के स्पेस सूट में सोने व इस तरह की परत का इस्तेमाल करता है। अपोलो लूनर मॉड्यूल में भी नासा ने सैटेलाइट बनाने में सोने का इस्तेमाल किया था।
नासा के इंजीनियरों के अनुसार, गोल्ड प्लेट की एक पतली परत का उपयोग एक थर्मल ब्लैंकेट की शीर्ष परत के रूप में किया गया था। ये ब्लैंकेट अविश्वसनीय रूप से 25 परतों में जटिलता से तैयार किया गया। इन परतों में कांच, ऊन, केप्टन, मायलर और एल्यूमीनियम जैसे धातु भी शामिल थे। आगे पढ़ें, किस नाम से जाना जाता है इस परत में इस्तेमाल होने वाला गोल्ड?