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चुनौती से दो-दो हाथः दो इंजीनियर दोस्तों ने कबाड़ को बना लिया रोजगार

रोली खन्ना, अमर उजाला, लखनऊ Published by: ishwar ashish Updated Tue, 28 Jul 2020 05:54 PM IST
ओमप्रकाश और मुकेश
ओमप्रकाश और मुकेश - फोटो : amar ujala

लॉकडाउन ने बड़ी संख्या में लोगों को बेरोजगार किया है। बेरोजगारों की इसी फौज का हिस्सा थे ओमप्रकाश और मुकेश। एक बनारस में साइट इंजीनियर था, दूसरा चंडीगढ़ में काम कर रहा था। साइट बंद काम बंद, कब शुरू होगा मालूम नहीं था। लखनऊ लौटने का फैसला किया।



खाली बैठना मंजूर नहीं था, तो बन गए कबाड़ीवाले। कबाड़ी वाले का नाम सुनते ही ध्यान आ जाता है  कबाड़ी वाला..., कबाड़ीवाला... आवाज लगाते, कंधे पर बड़ा सा बोरा और उसमें तराजू लिए एक शख्स। पर हम जिन दो कबाड़ी वाले दोस्तों से आपको मिलवा रहे हैं, वो इन सबसे अलग हैं।

 

कैसे और क्यों बने कबाड़ी वाला

ओम प्रकाश बताते हैं कि बनारस में काम बंद हुआ तो हम लखनऊ चले आए। सवाल था क्या करें, नौकरी करने का अब मन नहीं था और कोरोना की चुनौतियां अभी सामने हैं। दो साल पहले एक वेबसाइट बनाकर यूं ही छोड़ दी थी। इंजीनियर होने के नाते स्क्रैप बेचने के बारे में ठीक ठाक जानकारी है।

इसी अनुभव का लाभ लेते हुए हमने कबाड़ीवाला बनने का फैसला किया और अस्तित्व में आई लखनऊ कबाड़ीवाला डाटकाम सर्विस। मुकेश मेरा दोस्त है, तभी ये चंडीगढ़ में बेरोजगार हो गया। इससे पूछा कि साथ दोगे, ये तैयार हो गया। हमने पांच लोगों की टीम बनाई और काम शुरू कर दिया। 

लागइन कीजिए, जरूरत बताइए, तय समय पर पहुंचेगा पिकअप ब्वॉय

ओमप्रकाश और मुकेश
ओमप्रकाश और मुकेश - फोटो : अमर उजाला
मुकेश बताते हैं कि हमारी साइट पर स्क्रैप के प्राइस दिए गए हैं। सोशल मीडिया के जरिए हम प्रचार करते हैं। इस वेबसाइट पर जाकर लोग अपनी जरूरत की चीजें भर दें। हम उन्हें टाइम दे देते हैं। इसके बाद हमारा पिकअप ब्वॉय वहां जाकर कबाड़ ले लेता है। अभी हम लकड़ी नहीं खरीद रहे हैं, क्योंकि उसे बेचने की थोड़ी दिक्कत है। खास बात है कि हम सैनिटाइजेशन का पूरा ध्यान रखते हैं। कबाड़ लेने जाने वाला मास्क, ग्लव्स, सैनिटाइजर का पूरा इस्तेमाल करता है।

घरवाले बोले- इंजीनियर कबाड़ बेचने के लिए बने हो
ओमप्रकाश व मुकेश बताते हैं कि लोगों को यकीन ही नहीं होता था कि हम कबाड़ीवाले हैं। शक की नजर से देखते, मानों चोर उच्चक्के हों। लेकिन अपनी कोशिशों से अब तक 200 ग्राहकों का विश्वास जीत लिया है। मुकेश कहते हैं कि जब हमने घरवालों को कहा कि हम कबाड़ीवाला बनेंगे तो उन्होंने विरोध भी किया और सुनाया भी कि इंजीनियर कबाड़ बेचने के लिए बने हो क्या। धीरे-धीरे उन्होंने माना कि यह हमारी मेहनत का स्टार्टअप है।

कोई काम छोटा  या बड़ा नहीं होता   
मुकेश कहते हैं कि स्क्रैप बेचने वाले बड़े-बड़े कारोबारी हैं दुनिया में। वो भी तो कबाड़ ही खरीदते और बेचते हैं। ओमप्रकाश कहते हैं कि हमारे पास डिग्री है, लेकिन काम नहीं था। हमने सोचा कि क्यों न हम बेरोजगार बैठने के बजाए कुछ ऐसा करें जो कुछ लोगों को रोजगार दे सके। आज हमारे पास तीन लड़के काम कर रहे हैं। कल ये तीस और तीन सौ भी हो सकते हैं। काम छोटा या बड़ा नहीं होता, उसे करने का तरीका नया होना चाहिए।
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