न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Wed, 20 Nov 2019 06:09 AM IST
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बच्चों से जुड़े यौन उत्पीड़न व दुष्कर्म के मामलों से निपटने के तरीके को ‘खौफनाक’ करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व सभी राज्य सरकारों को इन मामलों में ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाने का आदेश दिया है। शीर्ष अदालत ने केंद्र व राज्य सरकारों को ऐसी घटनाओं की त्वरित जांच कराकर एक साल के अंदर ट्रायल पूरा कराने की व्यवस्था करने को कहा है। शीर्ष अदालत ने 12 दिसंबर को अगली सुनवाई पर सरकारों को एक्शन रिपोर्ट जमा कराने का भी आदेश दिया है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के खिलाफ बढ़ती वारदातों में ‘चेताने वाली बढ़ोतरी’ के बाद खुद संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की थी। शीर्ष अदालत पहले ही केंद्र सरकार को पॉक्सो एक्ट की 100 से ज्यादा एफआईआर वाले सभी जिलों में विशेष फास्ट ट्रैक अदालत स्थापित करने का आदेश दे चुका है। 13 नवंबर को तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार सुरिंदर एस. राठी की तरफ से तैयार की गई रिपोर्ट का संज्ञान लिया था।
पीठ ने पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज सभी मामलों को एक साल के अंदर निस्तारित कराने का आदेश दिया है। पीठ ने कहा, रिपोर्ट में कार्रवाई की स्थिति खौफनाक है। ट्रायल की क्या बात करें, 20 फीसदी मामलों में एक साल के अंदर जांच भी पूरी नहीं हो रही है। तत्कालीन चीफ जस्टिस गोगोई के साथ जस्टिस दीपक गुप्ता व जस्टिस संजीव खन्ना की मौजूदगी वाली पीठ ने कहा, पीड़ितों को न ही कोई सहायक दिया गया और न ही मुआवजा। तकरीबन दो तिहाई मामलों में एक साल से भी ज्यादा समय से ट्रायल लंबित है।
दो दिन पहले यानी 17 नवंबर को सीजेआई के पद से सेवानिवृत्त हुए जस्टिस गोगोई ने कहा था कि पॉक्सो एक्ट के तहत दी गई समयसीमा का पालन करने में नाकामी से जांचकर्ताओं के अंदर समर्पण और जागरूकता की कमी नजर आ रही है। उन्होंने केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को सभी मामलों में पॉक्सो एक्ट के तहत दी गई समयसीमा का पालन सुनिश्चित कराने का आदेश दिया। साथ ही जांचकर्ताओं को इस बारे में संवेदनशील बनाने का भी आदेश दिया ताकि पॉक्सो मामलों को ‘उच्च प्राथमिकता’ की श्रेणी में रखकर जांच की जा सके।
क्या कहता है कानून
कानून के मुताबिक, जांच एजेंसियों को 10 साल या उससे ज्यादा जेल की सजा वाले सभी अपराधों के लिए 90 दिन के अंदर और कम सजा वाले अपराधों के लिए 60 दिन के अंदर चार्जशीट दाखिल कर देनी चाहिए।
सार
- इस साल 1 जनवरी से 30 जून के बीच पूरे देश में दर्ज हुई हैं बच्चों के खिलाफ अपराध की 24,212 एफआईआर
- 11,981 मामलों में अभी तक पुलिस ने जांच पूरी नहीं की है, 12,231 मामलों में ही चार्जशीट की गई है दाखिल
- 6,449 मामलों में ही चार्जशीट के बाद ट्रायल हो पाया है चालू, 4871 मामलों में फिलहाल शुरुआत होनी है बाकी
विस्तार
बच्चों से जुड़े यौन उत्पीड़न व दुष्कर्म के मामलों से निपटने के तरीके को ‘खौफनाक’ करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व सभी राज्य सरकारों को इन मामलों में ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाने का आदेश दिया है। शीर्ष अदालत ने केंद्र व राज्य सरकारों को ऐसी घटनाओं की त्वरित जांच कराकर एक साल के अंदर ट्रायल पूरा कराने की व्यवस्था करने को कहा है। शीर्ष अदालत ने 12 दिसंबर को अगली सुनवाई पर सरकारों को एक्शन रिपोर्ट जमा कराने का भी आदेश दिया है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के खिलाफ बढ़ती वारदातों में ‘चेताने वाली बढ़ोतरी’ के बाद खुद संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की थी। शीर्ष अदालत पहले ही केंद्र सरकार को पॉक्सो एक्ट की 100 से ज्यादा एफआईआर वाले सभी जिलों में विशेष फास्ट ट्रैक अदालत स्थापित करने का आदेश दे चुका है। 13 नवंबर को तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार सुरिंदर एस. राठी की तरफ से तैयार की गई रिपोर्ट का संज्ञान लिया था।
पीठ ने पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज सभी मामलों को एक साल के अंदर निस्तारित कराने का आदेश दिया है। पीठ ने कहा, रिपोर्ट में कार्रवाई की स्थिति खौफनाक है। ट्रायल की क्या बात करें, 20 फीसदी मामलों में एक साल के अंदर जांच भी पूरी नहीं हो रही है। तत्कालीन चीफ जस्टिस गोगोई के साथ जस्टिस दीपक गुप्ता व जस्टिस संजीव खन्ना की मौजूदगी वाली पीठ ने कहा, पीड़ितों को न ही कोई सहायक दिया गया और न ही मुआवजा। तकरीबन दो तिहाई मामलों में एक साल से भी ज्यादा समय से ट्रायल लंबित है।
दो दिन पहले यानी 17 नवंबर को सीजेआई के पद से सेवानिवृत्त हुए जस्टिस गोगोई ने कहा था कि पॉक्सो एक्ट के तहत दी गई समयसीमा का पालन करने में नाकामी से जांचकर्ताओं के अंदर समर्पण और जागरूकता की कमी नजर आ रही है। उन्होंने केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को सभी मामलों में पॉक्सो एक्ट के तहत दी गई समयसीमा का पालन सुनिश्चित कराने का आदेश दिया। साथ ही जांचकर्ताओं को इस बारे में संवेदनशील बनाने का भी आदेश दिया ताकि पॉक्सो मामलों को ‘उच्च प्राथमिकता’ की श्रेणी में रखकर जांच की जा सके।
क्या कहता है कानून
कानून के मुताबिक, जांच एजेंसियों को 10 साल या उससे ज्यादा जेल की सजा वाले सभी अपराधों के लिए 90 दिन के अंदर और कम सजा वाले अपराधों के लिए 60 दिन के अंदर चार्जशीट दाखिल कर देनी चाहिए।