सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वह वकीलों के चैंबर्स के लिए जमीन आवंटित करने का मामला सरकार के सामने उठाएंगे। कोर्ट ने कहा कि वकील, हमारा हिस्सा हैं इसलिए अपने लोगों के लिए न्यायिक शक्तियों का इस्तेमाल करना सही नहीं है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के अध्यक्ष विकास सिंह ने याचिका दाखिल की है। याचिका में 1.33 एकड़ जमीन को स्थानांतरित करके बार एसोसिएशन को आवंटित करने की गई है ताकि उस पर वकीलों के चैंबर बनाए जा सकें।
याचिका पर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने सुनवाई की। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि वकील हमारा हिस्सा हैं...लेकिन क्या हम अपनी न्यायिक शक्तियों का अपने ही लोगों की भलाई के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं? यह ऐसा है जैसे सुप्रीम कोर्ट अपनी ही जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी न्यायिक शक्तियों का इस्तेमाल कर रहा है। पीठ में मुख्य न्यायाधीश के अलावा जस्टिस एसके कौल और जस्टिस पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं।
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पीठ ने कहा कि हमें अदालत के प्रशासनिक वर्ग पर विश्वास रखना चाहिए कि वह सरकार के सामने इस मामले को उठाएगा। हमें सरकार को यह संकेत नहीं देना चाहिए कि हम उनके अधिकार क्षेत्र को ध्वस्त करके कोई न्यायिक आदेश दे सकते हैं। उदाहरण के लिए ई-कोर्ट प्रोजेक्ट के लिए सरकार ने 7 हजार करोड़ रुपए आवंटित किए थे क्योंकि हमें उनकी जरूरत थी। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) ने भी सुनवाई में शामिल करने की मांग की है। एसोसिएशन की तरफ से कोर्ट में पेश हुईं वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोरा ने बताया कि कोर्ट में कई वकीलों को चैंबर्स की जरूरत है।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने भी कोर्ट में वकीलों के चैंबर्स के लिए जगह की जरूरत बताई। सर्वोच्च अदालत ने फिलहाल इस मामले पर अपने आदेश को सुरक्षित रख लिया है।
पीएफआई लिंक वाली महिला की जमानत याचिका पर एमपी सरकार को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इंदौर जिले में सुनवाई के दौरान अदालत की कार्यवाही का वीडियो बनाने के आरोप में गिरफ्तार 30 वर्षीय एक महिला की जमानत याचिका पर मध्य प्रदेश सरकार से जवाब मांगा। पुलिस अधिकारियों ने आरोप लगाया है कि महिला के प्रतिबंधित समूह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से संबंध हैं। जस्टिस अजय रस्तोगी और बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने सोनू मंसूरी की याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया।
शुरुआत में पीठ ने इस मामले पर विचार करने के लिए अनिच्छा व्यक्त की और याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश होने वाले वकील को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को कहा। पीठ ने कहा कि सब कुछ दिल्ली स्थानांतरित करने का यह धंधा बंद होना चाहिए। आप उच्च न्यायालय क्यों नहीं जाते।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि आरोपी दो महीने से अधिक समय से हिरासत में है और किसी भी वकील को उसके लिए उपस्थित होने की अनुमति नहीं दी जा रही है। दवे ने कहा कि जब किसी नागरिक के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है तो शीर्ष अदालत का कर्तव्य है कि वह हस्तक्षेप करे। शीर्ष अदालत ने तब मामले में नोटिस जारी किया और मामले को 20 मार्च को सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया।