ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में एक ऐसा हिंदू परिवार है जो करीब 350 साल से सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल कायम कर रहा है।
मुहर्रम के दौरान ईमाम हुसैन के लिए बनाये गए ताजिया को रखने की परंपरा ये परिवार सालों से निभा रहा है। पूर्वजों ने साल 1664 से इसकी शुरुआत की थी।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक पडहारी परिवार के पूर्व जयदेब पडहारी ने परंपरा की शुरुआत की थी। दरअसल, अरेंज मैरिज से बचने के लिए जयदेब घर से भाग गए थे और इस बीच वे मुस्लिमों के पवित्र धार्मिक स्थान मक्का मदिना पहुंच गए, जहां उन्होंने धर्म के रीति-रिवाजों को करीब से जाना।
उन्होंने सभी रीति-रिवाजों को मानना शुरू कर दिया और इसलिए ताजिया रखा जाना परिवार की परपंरा हो गई। जयदेब जब अपने घर लौटे तो उनके साथ दो मौलाना और मुस्लिम नेता थे, जिन्होंने संभलपुर में रहने वाले जयदेब और उनके परिवार को ताजिया रखे जाने की इजाजत दे दी।
पढ़ें: गुजरात: मुहर्रम पर मातम की बजाय ये मुस्लिम समुदाय चला रहा रक्त दान की मुहिम
तत्कालीन संभलपुर के राजा छत्र साईं ने भी जयदेब को इसकी इजाजत दे दी थी। परिवार के सदस्य राजेश पडहारी का कहना है कि जैसे उनके पूर्वज इस परंपरा को निभा रहे थे, वैसे ही वे भी इसे हर साल पूरा करते हैं। खास बात है कि परिवार किसी की मदद के बिना खुद ताजिया रखते हैं और इसके बाद इलाके के कई लोग इस मौके पर उनके साथ शामिल होते हैं।
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में एक ऐसा हिंदू परिवार है जो करीब 350 साल से सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल कायम कर रहा है। मुहर्रम के दौरान ईमाम हुसैन के लिए बनाये गए ताजिया को रखने की परंपरा ये परिवार सालों से निभा रहा है। पूर्वजों ने साल 1664 से इसकी शुरुआत की थी।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक पडहारी परिवार के पूर्व जयदेब पडहारी ने परंपरा की शुरुआत की थी। दरअसल, अरेंज मैरिज से बचने के लिए जयदेब घर से भाग गए थे और इस बीच वे मुस्लिमों के पवित्र धार्मिक स्थान मक्का मदिना पहुंच गए, जहां उन्होंने धर्म के रीति-रिवाजों को करीब से जाना।
उन्होंने सभी रीति-रिवाजों को मानना शुरू कर दिया और इसलिए ताजिया रखा जाना परिवार की परपंरा हो गई। जयदेब जब अपने घर लौटे तो उनके साथ दो मौलाना और मुस्लिम नेता थे, जिन्होंने संभलपुर में रहने वाले जयदेब और उनके परिवार को ताजिया रखे जाने की इजाजत दे दी।
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तत्कालीन संभलपुर के राजा छत्र साईं ने भी जयदेब को इसकी इजाजत दे दी थी। परिवार के सदस्य राजेश पडहारी का कहना है कि जैसे उनके पूर्वज इस परंपरा को निभा रहे थे, वैसे ही वे भी इसे हर साल पूरा करते हैं। खास बात है कि परिवार किसी की मदद के बिना खुद ताजिया रखते हैं और इसके बाद इलाके के कई लोग इस मौके पर उनके साथ शामिल होते हैं।