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ज्यादातर महिलाओं को समाज में किसी न किसी रूप में हिंसा का शिकार होना पड़ता है, लेकिन महिला यौन कर्मियों को हिंसा का सबसे बुरा दंश झेलना पड़ता है क्योंकि उनके ग्राहकों को लगता है कि पैसा दे देने के बाद उन्हें उनके साथ 'कुछ भी' करने की छूट मिल गई है। यौन कर्मियों की शिकायत है कि उनके ग्राहक 'सहमति से यौन संबंध बनाने' को 'किसी भी तरह से संबंध बनाने' से लगाते हैं, जिसके कारण उन्हें प्रतिदिन बार-बार दुष्कर्म का शिकार होना पड़ता है।
महिला यौन कर्मियों के साथ सबसे ज्यादा अपराध उनकी इच्छा के बिना बगैर पुरुष गर्भ निरोधक के इस्तेमाल के जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाने के होते हैं। उचित कानूनों के अभाव में महिला सेक्स वर्कर्स इनके विरोध में न तो कोई शिकायत कर पाती हैं और न ही उन्हें इसका कोई समाधान मिल पाता है। यही कारण है कि इनमें ज्यादातर को लगातार इस पीड़ा से गुजरना पड़ता है।
इस तरह सुधर सकते हैं परिणाम
यूएन वूमेन (UN Woman) की 2019-20 रिपोर्ट के अनुसार संस्था ने एड्स (AIDS) के प्रति जागरूकता के लिए कर्नाटक के 6 जिलों में 'आवाहन' (Avahan) कार्यक्रम शुरू किया। महिला यौनकर्मियों के कहने पर इसमें उन्हें हिंसा से बचाने के विषय को भी शामिल किया गया। कार्यक्रम की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि यौनकर्मियों को प्रशिक्षण देने के बाद उनसे होने वाले दुष्कर्म के मामलों में 2007 की तुलना में 2011 में 30 फीसदी से 10 फीसदी तक की गिरावट आई।
अध्ययन में शामिल महिला यौनकर्मियों ने बताया कि जागरूकता बढ़ाने के बाद गर्भ निरोधक के साथ शारीरिक संबंध बनाने के मामले 2007 की तुलना में 2011 में 70 फीसदी से बढ़कर 82 फीसदी हो गए। इस मामले में कई बार महिला यौनकर्मियों ने अपने ग्राहकों को गर्भ निरोधक के इस्तेमाल न करने के दुष्परिणामों के बारे में उन्हें बताया।
कार्यक्रम से पुलिसबल को भी जोड़ा गया था। इसका नतीजा हुआ कि महिला यौनकर्मियों को किसी मामले में गिरफ्तार करने की घटनाएं 9.9 फीसदी से घटकर 6.1 फीसदी रह गईं। सामान्य छापों के दौरान भी महिला यौनकर्मियों के पकड़े जाने पर उनके गिरफ्तार करने के मामले भी 50 फीसदी से घटकर लगभग 19 फीसदी रह गए।
वहीं, किसी मामले में साथी यौनकर्मियों के गिरफ्तार होने पर अन्य सहकर्मी महिला यौनकर्मियों द्वारा उनका साथ देने के मामले 41 फीसदी से 70 फीसदी तक बढ़ गए। महिला यौनकर्मियों को शारीरिक संबंध बनाने के दौरान उन्हें पीटे जाने के मामले 8.4 फीसदी से घटकर 5.5 फीसदी रह गए।
सहमति से संबंध की सीमा
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी कुमार दुबे ने बताया कि निर्भया कांड के बाद आईपीसी की धारा 375, 375A और 376 में दुष्कर्म की व्याख्या बहुत व्यापक हो गई है। पुरूषों को समझना चाहिए कि सहमति से संबंध बनाने का अर्थ किसी गलत तरीके से संबंध बनाने की अनुमति नहीं होता है। अगर महिला किसी विशेष तरीके से शारीरिक संबंध बनाने को सहमत नहीं है तो पैसे देकर संबंध बनाने के बाद भी यह दुष्कर्म की परिभाषा में आता है। इसके लिए अपराध की प्रकृति के आधार पर सात वर्ष से आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है।
'सहमति' का अर्थ नहीं समझते ग्राहक
होप ह्यूमैनिटी सोशल वेलफेयर सोसाइटी की सह-संस्थापक अंबर जैदी ने अमर उजाला को बताया कि यौनकर्मियों के साथ सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि उनके ग्राहक शारीरिक संबंध बनाने के लिए 'सहमति' का अर्थ पैसा देकर 'सब कुछ खरीद लेने' से लगाते हैं। उन्हें लगता है कि पैसा देने के कारण वे 'चाहे जो' और 'चाहे जैसे' करने के अधिकारी बन गए हैं।
यही कारण है कि जब वे अपने 'मनचाहे' तरीके से शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश करते हैं और यौनकर्मी इससे इंकार करती है तो वे हिंसा पर उतारू हो जाते हैं। यौनकर्मियों के साथ सबसे ज्यादा अपराध बिना गर्भ निरोधक के संबंध बनाने का होता है जो कई बार उन्हें जानलेवा बीमारियों की चपेट में डाल देता है।
इस तरह के मामलों में यौनकर्मियों को अप्राकृतिक तरीके से यौन क्रिया करने, पुरुषों के प्राइवेट पार्ट से आपत्तिजनक व्यवहार करने और अप्राकृतिक ढंग से बैठने के तरीकों को अपनाने के लिए बाध्य किया जाता है। कई बार इसमें सामूहिक संबंध बनाना भी शामिल होता है।
अंबर जैदी के मुताबिक कई यौनकर्मी अपना अनुभव बताती हैं कि युवा पीढ़ी के ग्राहक शारीरिक संबंधों पर आधारित फैंटेसी फिल्मों को देखकर उन्हीं तरीकों को आजमाने की कोशिश करते हैं जो महिलाओं के लिए बेहद कष्टकारी साबित होता है। कई यौनकर्मियों ने शिकायत की है कि ग्राहक उनसे दिल्ली-गुरुग्राम हाईवे पर चलती कार में शारीरिक संबंध बनाने के लिए बाध्य करते हैं। कई बार इन जगहों पर संबंध बनाने के बाद वे उनके पैसे भी छीनकर भाग जाते हैं और यौनकर्मियों को सड़क किनारे झाड़ियों में छिपकर अपनी जान और इज्जत बचानी पड़ती है।
पुलिस से भी नहीं कर पाती हैं शिकायत
चूंकि देश में पैसा देकर शारीरिक संबंध बनाना कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है, ऐसी महिलाएं अपने साथ होने वाली अमानवीय हरकतों की शिकायत भी दर्ज नहीं करा पाती हैं। उन्हें डर होता है कि अगर वे पुलिस से शिकायत करती हैं तो वे गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में स्वयं गिरफ्तार हो सकती हैं या कई बार पुलिसकर्मी से भी स्वयं के शारीरिक रूप से पीड़ित किए जाने का डर होता है।
इस क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं का कहना है कि सरकार को इस पेशे को एक कानूनी रूप देना चाहिए जिससे इन महिलाओं, ट्रांसजेंडर्स को ऐसे अपराधों से मुक्ति दिलाई जा सके। इस पेशे को कानूनी रूप देने से यौनकर्मियों को एड्स, सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज (STDs) से मुक्ति दिलाने में मदद मिलेगी।