मौसम की चाल बदलने से भारत में बाढ़, सूखा और बेमौसम बारिश लगातार बढ़ती जा रही है। मौसम के इस बदलाव को नहीं समझ पा रहे किसानों को लगातार नुकसान हो रहा है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से वैज्ञानिक जिन बीमारियों व नुकसान के बारे में अपने शोध से आगाह करते आ रहे हैं, उसका असर किसानों को खेतों में दिखाई देने लगा है। भारत में जलवायु परिवर्तन के कृषि पर पड़ रहे प्रभावों को दिखाती विशेष श्रंखला।
तापमान बढ़ने से सरसों का दाना हो जाता है छोटा
किसान वीरेश कुमार सरसों की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से फसल में कीट लगना और दाना छोटा होने की समस्या बढ़ गई है। इस बीच बारिश और ओले से फसल को नुकसान पहुंच रहा है। वीरेश अक्टूबर के पहले सप्ताह में सरसों की बुवाई पहले भी करते थे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में लाल कीर लगना शुरू हो गया।
विकसित की जा रही नई किस्में
फसल के कुछ पौधे सूख जाते हैं और दाने छोटे होने से पैदावार कम हो रही है। राजस्थान के भरतपुर जिले के टांडा गांव में रहने वाले वीरेश कुमार की ही तरह सरसों की खेती करने वाले लाखों किसान लगातार हो रहे इस नुकसान से परेशान हैं। बदले मौसम का असर है कि किसानों को अपेक्षित पैदावार नहीं मिल पाती।
वीरेश बताते हैं अगर अक्टूबर में गर्मी है और बुवाई कर दी तो फसल अच्छी नहीं होती। तापमान कम होने का इंतजार करते हैं तो बुवाई में देर हो जाती है। फसल को कम समय मिल पाता है और आखिर में फसल पकने के दौरान एकदम से तापमान बढ़ने से धीरे-धीरे सूखने लगती है और उत्पादन घट जाता है।
पिछले साल आठ दिन ऐसी सर्दी पड़ी की फसल में पाला पड़ गया और फूल की बढ़वार रुक गई सरसों की लट लंबी नहीं हो पाई। ज्यादा सर्दी पड़ने पर तना गलन और महू रोग की भी समस्या बढ़ रही है। सरसों की खेती के दौरान बारिश और ओले की गिरने की समस्या लगातार बढ़ रही है। इससे भी फसल गिर जाती है या फूल झड़ जाते हैं, जिसके उत्पादन पर असर पड़ता है।
किसानों को मौसम के हिसाब से कम दिनों की फसल बोने की सलाह
सरसों के खेतों में लगने वाले कीड़ों और बीमारियों पर सरसों अनुसंधान के निदेशक प्रमोद कुमार कहते हैं आज से 507 साल पहले तक ठंडक थोड़ा पहले पड़नी शुरू हो जाती थी तो 'पेटेंड बग' विशेष की नहीं आता था गर्मी बढ़ने के साथ ही इसका प्रकोप बढ़ रहा है।
इस्टेम राड पौधा सफेद हो जाना पहले कम था, दस बारह साल से अधिक देखा जा रहा है। अब ज्यादा फोकस जलवायु परिवर्तन को लेकर है, कम दिनों में अधिक पैदावार हो और बदलते मौसम के साथ खुद को ढाल ले वही सरसों की किस्म होनी चाहिए। हम भी जलवायु परिवर्तन के हिसाब से ही नई किस्में विकसित कर रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन का सीधा असर
भरतपुर में स्थित सरसों अनुसंधान निदेशालय के निदेशक प्रमोद कुमार राय जलवायु परिवर्तन का सीधा असर मानते हैं। वह कहते हैं बुवाई के समय दिन में किसी भी समय तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुंच जाता है, तो नुकसान होना तय है। तापमान बढ़ने सरसों की बुवाई का समय 30 सितंबर से आगे बढ़ा है। अब 20 अक्टूबर के आसपास सरसों की बुवाई को कहा जाता है। लेकिन देर से बुवाई पर अच्छी तरह से पक नहीं पाती और दाना छोटा रह जाता है।
सरसों उत्पादन में राज्यों का प्रतिशत
राज्य प्रतिशत
राजस्थान 40.8%
हरियाणा 13.3%
मध्य प्रदेश 11.7%
यूपी 11.40%
गुजरात 8.6%
(स्रोत: नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड, 2017)
भारत में सरसों का उत्पादन
वर्ष उत्पादन
(मिलियन मीट्रिक टन)
2014-15 62.8
2015-16 67.97
2016-17 69.17
2017-18 83.22
2018-19 86.93
(स्रोत : एपीड)
मौसम की चाल बदलने से भारत में बाढ़, सूखा और बेमौसम बारिश लगातार बढ़ती जा रही है। मौसम के इस बदलाव को नहीं समझ पा रहे किसानों को लगातार नुकसान हो रहा है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से वैज्ञानिक जिन बीमारियों व नुकसान के बारे में अपने शोध से आगाह करते आ रहे हैं, उसका असर किसानों को खेतों में दिखाई देने लगा है। भारत में जलवायु परिवर्तन के कृषि पर पड़ रहे प्रभावों को दिखाती विशेष श्रंखला।
तापमान बढ़ने से सरसों का दाना हो जाता है छोटा
किसान वीरेश कुमार सरसों की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से फसल में कीट लगना और दाना छोटा होने की समस्या बढ़ गई है। इस बीच बारिश और ओले से फसल को नुकसान पहुंच रहा है। वीरेश अक्टूबर के पहले सप्ताह में सरसों की बुवाई पहले भी करते थे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में लाल कीर लगना शुरू हो गया।
विकसित की जा रही नई किस्में
फसल के कुछ पौधे सूख जाते हैं और दाने छोटे होने से पैदावार कम हो रही है। राजस्थान के भरतपुर जिले के टांडा गांव में रहने वाले वीरेश कुमार की ही तरह सरसों की खेती करने वाले लाखों किसान लगातार हो रहे इस नुकसान से परेशान हैं। बदले मौसम का असर है कि किसानों को अपेक्षित पैदावार नहीं मिल पाती।
वीरेश बताते हैं अगर अक्टूबर में गर्मी है और बुवाई कर दी तो फसल अच्छी नहीं होती। तापमान कम होने का इंतजार करते हैं तो बुवाई में देर हो जाती है। फसल को कम समय मिल पाता है और आखिर में फसल पकने के दौरान एकदम से तापमान बढ़ने से धीरे-धीरे सूखने लगती है और उत्पादन घट जाता है।
पिछले साल आठ दिन ऐसी सर्दी पड़ी की फसल में पाला पड़ गया और फूल की बढ़वार रुक गई सरसों की लट लंबी नहीं हो पाई। ज्यादा सर्दी पड़ने पर तना गलन और महू रोग की भी समस्या बढ़ रही है। सरसों की खेती के दौरान बारिश और ओले की गिरने की समस्या लगातार बढ़ रही है। इससे भी फसल गिर जाती है या फूल झड़ जाते हैं, जिसके उत्पादन पर असर पड़ता है।
किसानों को मौसम के हिसाब से कम दिनों की फसल बोने की सलाह
सरसों के खेतों में लगने वाले कीड़ों और बीमारियों पर सरसों अनुसंधान के निदेशक प्रमोद कुमार कहते हैं आज से 507 साल पहले तक ठंडक थोड़ा पहले पड़नी शुरू हो जाती थी तो 'पेटेंड बग' विशेष की नहीं आता था गर्मी बढ़ने के साथ ही इसका प्रकोप बढ़ रहा है।
इस्टेम राड पौधा सफेद हो जाना पहले कम था, दस बारह साल से अधिक देखा जा रहा है। अब ज्यादा फोकस जलवायु परिवर्तन को लेकर है, कम दिनों में अधिक पैदावार हो और बदलते मौसम के साथ खुद को ढाल ले वही सरसों की किस्म होनी चाहिए। हम भी जलवायु परिवर्तन के हिसाब से ही नई किस्में विकसित कर रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन का सीधा असर
भरतपुर में स्थित सरसों अनुसंधान निदेशालय के निदेशक प्रमोद कुमार राय जलवायु परिवर्तन का सीधा असर मानते हैं। वह कहते हैं बुवाई के समय दिन में किसी भी समय तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुंच जाता है, तो नुकसान होना तय है। तापमान बढ़ने सरसों की बुवाई का समय 30 सितंबर से आगे बढ़ा है। अब 20 अक्टूबर के आसपास सरसों की बुवाई को कहा जाता है। लेकिन देर से बुवाई पर अच्छी तरह से पक नहीं पाती और दाना छोटा रह जाता है।
सरसों उत्पादन में राज्यों का प्रतिशत
राज्य प्रतिशत
राजस्थान 40.8%
हरियाणा 13.3%
मध्य प्रदेश 11.7%
यूपी 11.40%
गुजरात 8.6%
(स्रोत: नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड, 2017)
भारत में सरसों का उत्पादन
वर्ष उत्पादन
(मिलियन मीट्रिक टन)
2014-15 62.8
2015-16 67.97
2016-17 69.17
2017-18 83.22
2018-19 86.93
(स्रोत : एपीड)