सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ केंद्र सरकार कार्रवाई के मूड में दिखाई दे रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने वर्मा पर बतौर 'सीबीआई निदेशक' अपने पद का दुरुपयोग और सेवा के दौरान नियमों का उल्लंघन करने जैसे आरोप लगाए थे। इसी आधार पर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की गई है। केरल के डीजीपी एवं दूसरे कई अहम पदों पर रह चुके एक पूर्व आईपीएस अधिकारी का कहना है कि अगर ऐसा कुछ होता है तो यह बहुत निराशाजनक होगा। आलोक वर्मा ने जब सीबीआई निदेशक का कार्यभार संभाला तो वे देश के सबसे वरिष्ठ 'आईपीएस' थे। हालांकि उनके खिलाफ जांच का आदेश देना, इसमें किसी नियम का उल्लंघन नहीं हुआ है। रिटायरमेंट से चार साल पहले तक किसी केस में जांच हो सकती है। उन्हें तो रिटायरमेंट से पहले चार्जशीट भी दे दी गई थी। सरकार चाहे तो उनका रैंक घटा सकती है। यानी डीजी से एडीजी या आईजी बना दे। सर्विस से निकाले जाने का भी प्रावधान है। पेंशन पूरी तरह रोकी जा सकती है। हालांकि इस तरह की 'कार्रवाई' कोर्ट में टिकेगी नहीं। केवल परेशान करने वाली बात है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐसे ही अलग-अलग 12 मामलों में सुनाए गए फैसले तत्कालीन सीबीआई निदेशक 'वर्मा' की पेंशन बचा सकते हैं।
पूर्व आईपीएस कहते हैं, ऐसे मामलों में आर्थिक दंड की ही ज्यादा संभावना दिखती है। अगर मामला गंभीर है, अपराधिक है तो केस दूसरी तरफ जा सकता है। आलोक वर्मा के मामले में ढाई साल बाद सरकार, कार्रवाई की बात कर रही है, ऐसा क्यों। ये सवाल कुछ परेशान करने वाला है। आलोक वर्मा पहले ही सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) समेत अपने सेवानिवृत्ति लाभ के लिए कई महीनों तक भटकते रहे हैं। इस मामले में 'सीवीसी' और 'यूपीएससी' भी शामिल हैं। असल कार्रवाई पीएमओ और केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक ही होगी। डीओपीटी द्वारा जो भी आदेश जारी होगा, उसका मतलब है कि पीएमओ से उसे मंजूरी मिली है। केंद्रीय गृह मंत्रालय उस पर सहमत है। सरकार ने वर्मा के रहते हुए जांच शुरू करा दी। चार्जशीट पेश कर दी गई। यह सब नियमानुसार है। अब सरकार द्वारा दंड क्या दिया जाता है, ये देखने वाली बात होगी। वर्मा को सर्विस से निकाला जा सकता है। छोटा-मोटा दंड है तो इंक्रीमेंट रोक सकते हैं। बड़ा दंड है तो रैंक कम कर सकते हैं।
केंद्रीय सतर्कता आयोग की सिफारिश पर आलोक वर्मा को अक्तूबर 2018 में पहली बार आधिकारिक तौर पर सीबीआई निदेशक के पद से हटा दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2019 में उन्हें बहाल कर दिया था। उसके दो दिन बाद, उच्चस्तरीय चयन कमेटी ने उन्हें हटा दिया। इस कमेटी में प्रधानमंत्री मोदी के अलावा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एके सीकरी और नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल थे। इतना ही नहीं, आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक पद से हटाकर महानिदेशक 'दमकल सेवा' बना दिया गया। वर्मा ने यह जिम्मेदारी संभालने से मना कर दिया। उन्होंने सरकार को अपना इस्तीफा भेज दिया।
वर्मा ने डीओपीटी सचिव को भेजे अपने त्याग-पत्र में कहा, यह 'सामूहिक आत्ममंथन' का क्षण है। यह भी गौर किया जाए कि पत्र के नीचे हस्ताक्षर करने वाला व्यक्ति 31 जुलाई 2017 को रिटायर हो चुका था। उसने 31 जनवरी 2019 तक सीबीआई निदेशक के तौर पर अपनी सेवाएं दीं। इसकी वजह, सीबीआई निदेशक का पद तय कार्यकाल वाली भूमिका के दायरे में आता है। हस्ताक्षर करने वाला व्यक्ति अब सीबीआई निदेशक नहीं है। ऐसे में वह महानिदेशक दमकल सेवा, नागरिक सुरक्षा एवं गृह रक्षा के पद के लिहाज से पहले ही रिटायरमेंट की आयु पार कर चुका है। पूर्व आईपीएस कहते हैं, वर्मा का महानिदेशक दमकल सेवा पद पर ज्वाइन न करने का निर्णय बिल्कुल सही था। सीबीआई निदेशक पद पर जिस दिन उनकी नौकरी खत्म हुई, उसी दिन उनका पद खत्म हो जाता है। केंद्रीय जांच एजेंसी के निदेशक का कार्यकाल दो साल का होता है, उसके बाद सरकार कहे तो भी वर्मा को किसी दूसरे पद पर ज्वाइन नहीं करना चाहिए था, क्योंकि उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है। कोर्ट में सरकार का इस प्वाइंट पर घिरना तय है।
केरल के डीजीपी रहे पूर्व आईपीएस ने बताया, अगर सरकार वाकई ही आलोक वर्मा के खिलाफ कोई कार्रवाई करती है तो यह केस अदालत में जाएगा। पेंशन पर रोक लगाना इतना आसान नही है। सुप्रीम कोर्ट ने पेंशन के मामलों में 12 फैसले दिए हैं। इनमें दो तो संवैधानिक बैंच के फैसले हैं। इनमें कहा गया है कि पेंशन देने का मतलब, सरकार का कोई अहसान नहीं है। यह किसी भी कार्मिक का अधिकार है। इसका किसी मामले से कोई लिंक नहीं होता। इसे संबंधित कर्मी के सेवाकाल से जोड़ा जाता है। उसने दशकों तक सरकार को अपनी सेवाएं दी हैं, इसलिए उसे पेंशन दी जा रही है। पेंशन भी एक तरह से वेतन की तरह ही होती है। इसे 'डेफर्ड पेमेंट ऑफ सेलरी' कहा गया है।
मौजूदा मामले में सरकार, वर्मा की उस बात से आहत है कि उन्होंने महानिदेशक दमकल के पद पर ज्वाइन क्यों नहीं किया। वर्मा के जीपीएफ व अन्य लाभों पर रोक लगाई गई। उनके ज्वाइन न करने के कदम को सरकार ने अकारण अवकाश माना था। इसे सरकारी सेवा के नियमों का उल्लंघन माना गया। वर्मा के सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) और अन्य सेवानिवृत्ति के लाभों पर केंद्र सरकार ने 11 जनवरी से 31 जनवरी 2019 के बीच अकारण छुट्टी पर जाने के बाद रोक लगा दी। वर्मा ने सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने लिखा, मुझे सेवानिवृत्त माना जाए, क्योंकि मैं 31 जुलाई, 2017 को 60 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हूं। उनकी इस दलील को सरकार ने स्वीकार नहीं किया और उसे अनुशासनहीनता के दायरे में शामिल कर दिया।
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सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ केंद्र सरकार कार्रवाई के मूड में दिखाई दे रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने वर्मा पर बतौर 'सीबीआई निदेशक' अपने पद का दुरुपयोग और सेवा के दौरान नियमों का उल्लंघन करने जैसे आरोप लगाए थे। इसी आधार पर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की गई है। केरल के डीजीपी एवं दूसरे कई अहम पदों पर रह चुके एक पूर्व आईपीएस अधिकारी का कहना है कि अगर ऐसा कुछ होता है तो यह बहुत निराशाजनक होगा। आलोक वर्मा ने जब सीबीआई निदेशक का कार्यभार संभाला तो वे देश के सबसे वरिष्ठ 'आईपीएस' थे। हालांकि उनके खिलाफ जांच का आदेश देना, इसमें किसी नियम का उल्लंघन नहीं हुआ है। रिटायरमेंट से चार साल पहले तक किसी केस में जांच हो सकती है। उन्हें तो रिटायरमेंट से पहले चार्जशीट भी दे दी गई थी। सरकार चाहे तो उनका रैंक घटा सकती है। यानी डीजी से एडीजी या आईजी बना दे। सर्विस से निकाले जाने का भी प्रावधान है। पेंशन पूरी तरह रोकी जा सकती है। हालांकि इस तरह की 'कार्रवाई' कोर्ट में टिकेगी नहीं। केवल परेशान करने वाली बात है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐसे ही अलग-अलग 12 मामलों में सुनाए गए फैसले तत्कालीन सीबीआई निदेशक 'वर्मा' की पेंशन बचा सकते हैं।
पूर्व आईपीएस कहते हैं, ऐसे मामलों में आर्थिक दंड की ही ज्यादा संभावना दिखती है। अगर मामला गंभीर है, अपराधिक है तो केस दूसरी तरफ जा सकता है। आलोक वर्मा के मामले में ढाई साल बाद सरकार, कार्रवाई की बात कर रही है, ऐसा क्यों। ये सवाल कुछ परेशान करने वाला है। आलोक वर्मा पहले ही सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) समेत अपने सेवानिवृत्ति लाभ के लिए कई महीनों तक भटकते रहे हैं। इस मामले में 'सीवीसी' और 'यूपीएससी' भी शामिल हैं। असल कार्रवाई पीएमओ और केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक ही होगी। डीओपीटी द्वारा जो भी आदेश जारी होगा, उसका मतलब है कि पीएमओ से उसे मंजूरी मिली है। केंद्रीय गृह मंत्रालय उस पर सहमत है। सरकार ने वर्मा के रहते हुए जांच शुरू करा दी। चार्जशीट पेश कर दी गई। यह सब नियमानुसार है। अब सरकार द्वारा दंड क्या दिया जाता है, ये देखने वाली बात होगी। वर्मा को सर्विस से निकाला जा सकता है। छोटा-मोटा दंड है तो इंक्रीमेंट रोक सकते हैं। बड़ा दंड है तो रैंक कम कर सकते हैं।