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Bharat Jodo Yatra: राहुल की चमक बढ़ी, मगर गंभीरता से स्वीकार्यता नहीं, अब निकालनी होगी कांग्रेस जोड़ो यात्रा!

Jitendra Bhardwaj जितेंद्र भारद्वाज
Updated Sat, 28 Jan 2023 05:11 PM IST
सार

Bharat Jodo Yatra: जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर डॉ. आनंद कुमार ने कहा, मौजूदा परिस्थितियों में राहुल गांधी को कांग्रेस जोड़ने पर फोकस करना होगा। भले ही राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा निकाली है, लेकिन कांग्रेस का कुनबा अभी एकजुट होना बाकी है। राहुल को प्रयोग करने की आवश्यकता है...

Bharat Jodo Yatra- Rahul Gandhi, Priyanka Gandhi in Jammu Kashmir
Bharat Jodo Yatra- Rahul Gandhi, Priyanka Gandhi in Jammu Kashmir - फोटो : Agency

विस्तार

'भारत जोड़ो यात्रा' अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच गई है। राहुल गांधी, 30 जनवरी को श्रीनगर में पार्टी मुख्यालय पर राष्ट्रीय ध्वज फहराएंगे। पार्टी नेता जयराम रमेश ने कहा है कि 26 अप्रैल तक सभी राज्यों में घर-घर तक कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा राहुल गांधी का संदेश और मोदी सरकार की विफलता पर चार्जशीट पहुंचाई जाएगी। इस यात्रा को लेकर प्रख्यात राजनीतिक एवं सामाजिक विचारक और जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर डॉ. आनंद कुमार ने कहा, ठीक है यात्रा से राहुल की छवि सुधरी है। हालांकि अभी ये देखने वाली बात होगी कि लोगों में उनकी स्वीकार्यता को लेकर कोई गंभीरता है या नहीं। अगर अभी की बात करें तो 'गंभीरता' को लेकर कुछ खास नहीं है। इस यात्रा के माध्यम से कांग्रेस के लिए 'मिशन 24' आसान हो जाएगा, इस बाबत अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। इससे पहले बिखरे परिवार के 'राजकुमार' को 'कांग्रेस जोड़ो यात्रा' निकालनी चाहिए।    

कांग्रेस का कुनबा अभी एकजुट होना बाकी है

प्रो. आनंद कुमार ने एक विशेष बातचीत में कहा, मौजूदा परिस्थितियों में राहुल गांधी को कांग्रेस जोड़ने पर फोकस करना होगा। भले ही राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा निकाली है, लेकिन कांग्रेस का कुनबा अभी एकजुट होना बाकी है। राहुल को प्रयोग करने की आवश्यकता है। इन्हीं प्रयोगों पर जनता के बीच गंभीरता से राहुल की स्वीकार्यता टिकी है। विपक्ष, जहां पर नए नेता खड़े हो रहे हैं, वहां राहुल के लिए अपनी जगह बनाना आसान नहीं है। लोकतंत्र में पुख्ता सबूतों को लेकर सरकार की आलोचना करना फायदेमंद रहता है। राहुल ऐसा कर रहे हैं। उन्हें यह देखना होगा कि उनकी पार्टी में तीन तरह के लोग हैं। एक, जो पार्टी में सुधार चाहते हैं। दूसरा, वे हैं जो अपनी ज्यादा हिस्सेदारी चाहते हैं। अमूमन इन्हीं लोगों की संख्या अधिक रहती है। तीसरा, कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो बदलाव चाहते हैं। हालांकि ऐसे लोगों की संख्या कम ही रहती है। अगर ऐसा होता तो पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह को अन्ना आंदोलन से सबक लेकर बदलना चाहिए था। उस वक्त ऐसे बदलाव के समर्थक मुश्किल से तीन फीसदी लोग ही रहे होंगे।



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