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Jehanabad Web Series Review in Hindi by Pankaj Shukla Ritwik Bhowmik Harshita Gaur Parambrata Sony Liv Rajeev
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Jehanabad Web Series Review: जहानाबाद जेल ब्रेक की पृष्ठभूमि में विस्फोटक प्रेम कहानी, हर मोड़ यहां नया हादसा
जहानाबाद जेल ब्रेक की तारीख याद है आपको? मुझे बहुत अच्छी तरह से याद है और वह इसलिए क्योंकि उस दिन जी न्यूज में रहते हुए हमने इस घटना का लाइव टेलीकास्ट किया था। जी हां, लाइव टेलीकास्ट और वह भी इसलिए क्योंकि नक्सलियों ने खुद बिहार की मीडिया को जहानाबाद में कुछ अप्रत्याशित होने की सूचना पहले से लीक कर दी थी। 2005 में राज्य में फरवरी में हुए विधानसभा चुनावों में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला तो सरकार ही नहीं बन सकी। राष्ट्रपति शासन लगा और अक्टूबर-नवंबर 2005 में बिहार में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। जहानाबाद जेल में कैद देश के शीर्षस्थ नक्सली नेताओं में से एक को छुड़ाने के लिए बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश से पहुंचे करीब हजार नक्सलियों ने पूरे जहानाबाद शहर पर ही कब्जा कर लिया। जेल पर हमला करके इन लोगों ने करीब सवा सौ नक्सलियों को आजाद करा लिया। इस घटना के पहले जहानाबाद में क्या कुछ होता रहा होगा, उसी पर आधारित है सोनी लिव की वेब सीरीज ‘जहानाबाद- ऑफ लव एंड वॉर’।
Jehanabad Web Series Review
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
‘रेड एक्शन’ से गिरी प्रेमकथा
बिहार के लेखक अमर नाथ झा ने जहानाबाद जेलब्रेक पर अपनी पहली किताब ‘रेड एक्शन’ साल 2010 में लिखी, फिर उन्होने एक किताब और लिखी, ‘डिकोड रेड’ जो कि उनकी पहली ही किताब का एक संवर्धित संस्करण थी। जहानाबाद जेल ब्रेक के पीछे की घटनाओं और बिहार व आसपास के राज्यों में नक्सलियों की योजनाओं पर इससे बेहतर किताब हाल के दिनों में शायद ही दूसरी कोई लिखी गई हो। वेब सीरीज ‘जहानाबाद- ऑफ लव एंड वॉर’ देखते समय कई बार ऐसा लगता है कि ये सीरीज इसी उपन्यास के कुछ पन्नों से गिरे शब्दों से उभर आई है। राजीव बरनवाल और अमरनाथ झा लंबे समय तक सहयोगी भी रहे हैं और हो सकता है कि इस सीरीज का बीज राजीव के मस्तिष्क में इसी किताब से पनपा हो। राजीव ने इसे बरगद बनाने में इसमें वट सावित्री जैसी एक कथा डाली है। लेकिन, इस सत्यप्रेम की कथा ही इस पूरी हिंसक घटना पर पानी भी फेरती है।
Jehanabad Web Series Review
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
बिहार की राजनीति के धुंधले रंग
वेब सीरीज ‘जहानाबाद- ऑफ लव एंड वॉर’ की कहानी देखने में कॉलेज में नए नए आए अंग्रेजी के एक प्राध्यापक और जेल में कैंटीन चलाने वाले की बेटी की प्रेम कहानी लगती है। उधर, जेल में जो खतरनाक नक्सली कैद है, उसने अंदर भीतर उत्पात मचा रखा है। जिले का पुलिस अधीक्षक और ये कैदी दोनों एक ही कॉलेज में पढ़े और बाहर निकले तो कानून की सरहद के दोनों इधर उधर। इधर उधर इस सीरीज में पांचवें एपिसोड के बाद बहुत होता है। दरअसल ये सीरीज पांचवें एपिसोड तो जो भी किले बनाती है, बाकी के पांच एपिसोड की कहानी उन्हीं किलों को ढहाने की कहानी है। चाहे फिर वह गुरु और शिष्य की प्रेम कथा हो। चुनाव की तैयारी में लगे एक सवर्ण नेता की हो। पिछड़ों के वोट काटने की राजनीति की हो या फिर हो अपने फायदे के लिए नक्सलियों को साधने की कोशिश की। अमर नाथ झा की किताब यहां फिर याद आती है नक्सलियों के चरित्र चित्रण में। अर्बन नक्सल इतने सधे हुए तरीके से शायद ही अब तक किसी फिल्म या सीरीज में दिखाए गए हों।
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- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
एकरस संवादों ने मजा खराब किया
खैर, वेब सीरीज ‘जहानाबाद- ऑफ लव एंड वॉर’ की कहानी सीरीज के दो तीन एपिसोड देखने के बाद ही समझ आने लगती है और ये भी समझ आने लगता है कि परदे पर जो किरदार दिख रहे हैं, वे बहुत जल्द गुलाटी मारने वाले हैं। सीरीज की कहानी अच्छी है। पटकथा भी बढ़िया है लेकिन इसमें सबसे बड़ा झोल इसके संवादों को लेकर है। सीरीज के सारे किरदार एक तयशुदा फिल्मी बिहारी लहजे में बात करते दिखते हैं। असल में ऐसा होता नहीं है। बिहार में एक आईपीएस अफसर बढ़िया और साफ वैसी ही हिंदी बोलेगा जैसे कि देश के दूसरे हिस्सों के लोग बोलेंगे। अंग्रेजी का प्राध्यापक और जेल में कैंटीन चलाने वाला भी अलग अलग लहजे में हिंदी बोलेंगे। इसके अलावा सीरीज देखते हुए समझ ये भी आता है कि इसके निर्देशक और सिनेमैटोग्राफर को टीवी या वेब सीरीज बनाने का कतई अनुभव नहीं है क्योंकि इन लोगों ने अगर पहले ऐसा कुछ काम किया होता तो उन्हें स्क्रीन का ‘सेफ एरिया’ जरूर पता होता और चैनल का लोगो बार बार कलाकारों के चेहरे कवर नहीं करता।
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- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
जहानाबाद जैसा कुछ नहीं
वेब सीरीज ‘जहानाबाद- ऑफ लव एंड वॉर’ के निर्देशन में भी दिक्कत हैं। इस कहानी का असल किरदार इसका वातावरण होना चाहिए। लेकिन कैमरा जैसे ही कहानी शुरू होती है ढप से कलाकारों के चेहरे मोहरों पर आ गिरता है। एकाध बार कैमरा आसमान से देखता भी है लेकिन वे दृश्य बस कहानी की धारा मोड़ने भर को इस्तेमाल होते दिखते हैं। निर्देशन में ऐसा कुछ नहीं है कि ये कहानी खालिस जहानाबाद की लगे। पूरी कहानी को, इसके कलाकारों को और इसके घटनाक्रम को आप पटना, सिवान, रांची कही रख दीजिए, कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। फिर वेब सीरीज का नाम ‘जहानाबाद- ऑफ लव एंड वॉर’ रखने का क्या फायदा, जबकि जेल ब्रेक यहां धारा का मुख्य किनारा ही नहीं है। संवाद और निर्देशन में मात खाने के अलावा वेब सीरीज ‘जहानाबाद- ऑफ लव एंड वॉर’ पांच एपिसोड तक जो कुछ भी कमाती है, वह सब अगले पांच एपिसोड में गंवा देती है।
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- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
ऋत्विक भौमिक ने निराश किया
सोनी लिव की ही वेब सीरीज ‘महारानी 2’ और नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज ‘बिहार द खाकी चैप्टर’ से वेब सीरीज ‘जहानाबाद- ऑफ लव एंड वॉर’ की तुलना करें तो ये पहले की दोनों सीरीज से काफी कमजोर सीरीज साबित होती है। ऋत्विक भौमिक की जो कास्टिंग इस सीरीज का सबसे बड़ा आकर्षण हो सकती थी, वह इसकी सबसे कमजोर कड़ी इसलिए बन जाती है कि जितना कैमरा ऋत्विक के ऊपर रहता है, उतना वह अब तक इस तरह के किरदार को निभाने को तैयार नहीं हैं। सत्यदीप मिश्रा और परमब्रत चट्टोपाध्याय के दृश्य ऐसे लिखे गए हैं कि वे बस एक प्रेम कहानी के बीच के फिलर जैसे लगने लगते हैं। अगर इन दोनों किरदारों के नजरिये से ही ये वेब सीरीज लिखी गई होती तो कमाल की अपराध कथा बनती।
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- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
किरदारों को जमाने पर ध्यान नहीं
वेब सीरीज ‘जहानाबाद- ऑफ लव एंड वॉर’ में कुछ कमाल के कलाकारों की कास्टिंग की गई है। लेकिन, इनमें से अधिकतर के किरदार कहानी में जमाने का मौका सीरीज बनाने वाली टीम ने खो दिया। सत्यदीप मिश्रा के किरदार का जो रुआब पहले एपिसोड के क्लाइमेक्स के बाद बनना चाहिए था, वह बनने ही नहीं पाता। अदालत में जो कांड दीपक कर देता है, उसके बाद भी उसका भौकाल जेल में जो बनना चाहिए था, वह जमने नहीं पाता। परमब्रत का आभामंडल यहां कमजोर पड़ जाता है। फिर बारी आती है रजत कपूर की। एक धूर्त राजनेता की शतरंज की बिसात पर चलती चालें दिखती हैं, उसकी गालियां भी असर डालने की कोशिश करती हैं, लेकिन सीधे पुलिस अधीक्षक को फोन पर हड़का सकने वाली शख्सियत बनती नहीं दिखती।
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- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
नंबर वन रहीं हर्षिता गौर
कुल मिलाकर अगर किसी मुख्य कलाकार का अभिनय वेब सीरीज ‘जहानाबाद- ऑफ लव एंड वॉर’ में तारीफ करने लायक है तो वह हैं हर्षिता गौर। हर्षिता गौर ने 21वीं सदी के शुरुआती साल की बदलती मानसिकता वाली एक युवती का किरदार शानदार तरीके से निभाया है, हालांकि पता नहीं कि जहानाबाद में तब युवतियों इतनी ‘मॉडर्न’ हो भी पाई थीं कि अपनी मां से सीधे ‘सेक्स’ की बात कर सकें। किरदार की इन छोटी मोटी गड़बड़ियों के बावजूद वेब सीरीज ‘जहानाबाद- ऑफ लव एंड वॉर’ का सबसे चमकता सितारा हर्षिता गौर ही हैं। प्यार में कुछ भी कर गुजरने का जो जज्बा और जुनून उन्होंने अपने अभिनय के जरिये दर्शाया है, वह उन्हें इनाम और इकराम दोनों का हकदार बनाता है। बस, पूरी वेबसीरीज भी उनकी जैसी ही चमकदार होती तो इसे देखने का मजा ही कुछ और होता।
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