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rajesh kumar sharma teach to the students under metro bridge in new delhi
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पुल के नीचे गरीब बच्चों के जीवन में शिक्षा के रंग भर रहा ये टीचर , नहीं लेता एक फूटी कौड़ी
पेड़ के नीचे महज दो बच्चों के साथ राजेश कुमार शर्मा ने की थी। इस स्कूल की शुरुआत समान रूप से शिक्षा प्राप्त करना हर बच्चे के लिए आसान नहीं है। झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों के लिए तो यह लगभग असंभव सा ही है। लेकिन, यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन के नीचे शुरू हुए 'फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज' में उन बच्चों को पढ़ाने वाले राजेश कुमार शर्मा ऐसे शिक्षक हैं।
जिन्होंने इस मुश्किल काम को हाथ में लिया है और अपने स्कूल के जरिए तमाम गरीब बच्चों के जीवन में रंग भर रहे हैं। 'फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज' के संस्थापक राजेश कुमार शर्मा बताते हैं कि एक या दो बच्चों के साथ उन्होंने इस स्कूल की शुरुआत की थी। वह कहते हैं, "मुझे नहीं पता था कि एक दिन ऐसा आएगा, जब इतनी संख्या में मेरे पास बच्चे पढ़ने के लिए पहुंचेंगे।
वर्ष 2006 में एक बार मैं यमुना बैंक के पास आया था, तब मैंने देखा कि बच्चे इधर-उधर घूमकर अपना भविष्य खराब कर रहे हैं। यहां लोगों से बातचीत करने पर बच्चों के लिए कुछ करने की सोची और पेड़ के नीचे महज दो बच्चों से इस स्कूल की शुरुआत की। पहले बड़ी मुश्किल होती थी, इनके मां-बाप को समझाना, बच्चों को पढ़ने बैठाना। फिर धीरे-धीरे संख्या बढ़ती रही।
बच्चों को पढ़ाने के लिए आने वाले शिक्षकों के बारे में राजेश बताते हैं कि जब बच्चे आए, तब मुश्किल थी इतने बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक ढूंढना, क्योंकि बिना वेतन के काम करने में सभी हिचकिचाते हैं। लेकिन मुझे सहायता मिलती गई। जैसे-जैसे लोगों को इस स्कूल के बारे में पता लगा, लोग खुद आकर पढ़ाने लगे। वह बताते हैं, ''इस स्कूल में कोई शिक्षक ऐसा नहीं है, जिसने कोई डिग्री प्राप्त की हो, सब कोई न कोई दूसरा काम करते हैं, लेकिन अपने काम से वक्त निकालकर वह आगे आए और यहां स्लम के इन बच्चों को पढ़ाने लगे।'' बच्चों की कॉपी-किताबों की सुविधाएं और उनके बस्ते तक सारे शिक्षक आपस में योगदान देकर ही लाते हैं।
मेट्रो की सफेद दीवार को सतरंगी बनाया गया है, उसमें चित्र बनाए गए हैं, ब्लैक बोर्ड के आसपास लाल, हरा, संतरी जैसे कई रंगों से फूल, बच्चे, पेड़, सीढ़ी के चित्रों के साथ अक्षर रंगे गए हैं, जो बच्चों में पढ़ाई को लेकर एक अलग उत्साह पैदा कर रहा है।
दिल्ली स्ट्रीट आर्ट की ओर से इस स्कूल को एक नया रूप दिया गया है। वहीं एक निजी कंपनी की ओर से बच्चों को संतरी कलर की टी-शर्ट भी दी गई है, जिस पर स्कूल का नाम लिखा है।
राजेश ने बताया कि स्कूल दो शिफ्ट में चलता है। एक शिफ्ट में लड़के आते हैं और एक शिफ्ट में लड़कियां आती हैं। जिसमें पहली क्लास से 10वीं तक में पढ़ने वाले बच्चे हैं। सुबह 9 बजे से लड़के पढ़ते हैं और 2 बजे से लड़कियां पढ़ती हैं। लोगों के अलावा इन बच्चों को पढ़ाने के लिए यहां कॉलेज स्टूडेंट्स भी आते हैं।
पेड़ के नीचे महज दो बच्चों के साथ राजेश कुमार शर्मा ने की थी। इस स्कूल की शुरुआत समान रूप से शिक्षा प्राप्त करना हर बच्चे के लिए आसान नहीं है। झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों के लिए तो यह लगभग असंभव सा ही है। लेकिन, यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन के नीचे शुरू हुए 'फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज' में उन बच्चों को पढ़ाने वाले राजेश कुमार शर्मा ऐसे शिक्षक हैं।
जिन्होंने इस मुश्किल काम को हाथ में लिया है और अपने स्कूल के जरिए तमाम गरीब बच्चों के जीवन में रंग भर रहे हैं। 'फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज' के संस्थापक राजेश कुमार शर्मा बताते हैं कि एक या दो बच्चों के साथ उन्होंने इस स्कूल की शुरुआत की थी। वह कहते हैं, "मुझे नहीं पता था कि एक दिन ऐसा आएगा, जब इतनी संख्या में मेरे पास बच्चे पढ़ने के लिए पहुंचेंगे।
वर्ष 2006 में एक बार मैं यमुना बैंक के पास आया था, तब मैंने देखा कि बच्चे इधर-उधर घूमकर अपना भविष्य खराब कर रहे हैं। यहां लोगों से बातचीत करने पर बच्चों के लिए कुछ करने की सोची और पेड़ के नीचे महज दो बच्चों से इस स्कूल की शुरुआत की। पहले बड़ी मुश्किल होती थी, इनके मां-बाप को समझाना, बच्चों को पढ़ने बैठाना। फिर धीरे-धीरे संख्या बढ़ती रही।
पढ़ने के लिए शिक्षक ढूंढ़ना
छात्र
बच्चों को पढ़ाने के लिए आने वाले शिक्षकों के बारे में राजेश बताते हैं कि जब बच्चे आए, तब मुश्किल थी इतने बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक ढूंढना, क्योंकि बिना वेतन के काम करने में सभी हिचकिचाते हैं। लेकिन मुझे सहायता मिलती गई। जैसे-जैसे लोगों को इस स्कूल के बारे में पता लगा, लोग खुद आकर पढ़ाने लगे। वह बताते हैं, ''इस स्कूल में कोई शिक्षक ऐसा नहीं है, जिसने कोई डिग्री प्राप्त की हो, सब कोई न कोई दूसरा काम करते हैं, लेकिन अपने काम से वक्त निकालकर वह आगे आए और यहां स्लम के इन बच्चों को पढ़ाने लगे।'' बच्चों की कॉपी-किताबों की सुविधाएं और उनके बस्ते तक सारे शिक्षक आपस में योगदान देकर ही लाते हैं।
दो शिफ्ट में पढ़ते हैं बच्चे
छात्र
मेट्रो की सफेद दीवार को सतरंगी बनाया गया है, उसमें चित्र बनाए गए हैं, ब्लैक बोर्ड के आसपास लाल, हरा, संतरी जैसे कई रंगों से फूल, बच्चे, पेड़, सीढ़ी के चित्रों के साथ अक्षर रंगे गए हैं, जो बच्चों में पढ़ाई को लेकर एक अलग उत्साह पैदा कर रहा है।
दिल्ली स्ट्रीट आर्ट की ओर से इस स्कूल को एक नया रूप दिया गया है। वहीं एक निजी कंपनी की ओर से बच्चों को संतरी कलर की टी-शर्ट भी दी गई है, जिस पर स्कूल का नाम लिखा है।
राजेश ने बताया कि स्कूल दो शिफ्ट में चलता है। एक शिफ्ट में लड़के आते हैं और एक शिफ्ट में लड़कियां आती हैं। जिसमें पहली क्लास से 10वीं तक में पढ़ने वाले बच्चे हैं। सुबह 9 बजे से लड़के पढ़ते हैं और 2 बजे से लड़कियां पढ़ती हैं। लोगों के अलावा इन बच्चों को पढ़ाने के लिए यहां कॉलेज स्टूडेंट्स भी आते हैं।
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