अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला तो पूरे देश को पता है। शनिवार, 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने फैसला सुनाया था। विवदित जमीन रामलला विराजमान पक्ष को दी गई और मस्जिद के लिए अलग से पांच एकड़ जमीन देने का निर्देश कोर्ट ने केंद्र सरकार को दिया है।
ये फैसला देते हुए कोर्ट ने अनुच्छेद 142 का जिक्र किया था। इसकी मदद से ही सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को मस्जिद के लिए आयोध्या में अलग से जमीन देने का फैसला सुनाया। क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों? आखिर अनुच्छेद 142 है क्या और कोर्ट को इस मामले में इसकी मदद क्यों लेनी पड़ी? इस अनुच्छेद का प्रयोग करते हुए कोर्ट ने क्या कहा? इन सवालों के जवाब आगे पढ़ें।
कोर्ट ने क्या कहा था?
विवादित जमीन पर बाबरी मस्जिद तोड़े जाने की घटना का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 'हम अनुच्छेद 142 की मदद ले रहे हैं, ताकि जो भी गलत हुआ उसे सुधारा जा सके।'
कोर्ट ने कहा कि 'मस्जिद के ढांचे को जिस तरह हटाया गया था वह एक धर्मनिरपेक्ष देश में कानूनी तौर पर उचित नहीं था। अब अगर कोर्ट मुस्लिम पक्ष के मस्जिद के अधिकार को अनदेखा करता है तो न्याय नहीं हो सकेगा। संविधान हर आस्था को बराबरी का अधिकार देने की बात करता है।'
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अनुच्छेद 142 क्या है?
संविधान का अनुच्छेद 142 (1) देश के शीर्ष न्यायालय (Supreme Court) को विशेष अधिकार देता है। इसमें कहा गया है कि 'किसी लंबित मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए सुप्रीम कोर्ट अपने अधिकारक्षेत्र में ऐसे आदेश दे सकता है, जो पूरे देश में इस तरह लागू होगा जैसे संसद द्वारा पारित किसी कानून के अंतर्गत होता है। कोर्ट का आदेश लागू रहेगा जब तक कि इसके निमित्त राष्ट्रपति द्वारा दिए गए आदेश के तहत कोई प्रावधान नहीं बन जाता।'
कुछ विशेष मामलों में जरूरी होने पर सुप्रीम कोर्ट इस अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है। अब तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस अनुच्छेद द्वारा दिए गए विशेषाधिकार का इस्तेमाल ज्यादातर मानवाधिकार और पर्यावरण संरक्षण के मामलों में किया गया है।
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अयोध्या मामले में यह पहली बार हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने निजी पक्षों के बीच चल रहे किसी संपत्ति पर दिवानी मामले (Civil Dispute) में इस अनुच्छेद का इस्तेमाल किया है। इसकी मदद लेते हुए कोर्ट ने कहा कि 'अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट की शक्तियां सीमित नहीं हैं। पूर्ण न्याय, समानता और हितों की रक्षा के लिए कोर्ट इस विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर सकता है।'
निर्मोही अखाड़ा मामले में हुआ 142 का प्रयोग
पूरे अयोध्या मामले में सिर्फ मुस्लिम पक्ष के लिए ही नहीं, निर्मोही अखाड़ा मामले में भी कोर्ट ने अनुच्छेद 142 का प्रयोग किया है। इसके आधार पर कोर्ट ने फैसला सुनाया कि अब निर्मोही अखाड़ा उस बोर्ड का हिस्सा होगा जिसे मंदिर निर्माण की योजना तैयार करनी है।
निर्मोही अखाड़ा के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा था कि 'विवादित जमीन पर निर्मोही अखाड़ा का ऐतिहासिक अस्तित्व और इस मामले में उनके योगदान को देखते हुए जरूरी है कि कोर्ट अनुच्छेद 142 की मदद ले और पूर्ण न्याय करे। इसलिए हम निर्देश देते हैं कि मंदिर निर्माण योजना तैयार करने में निर्मोही अखाड़ा को प्रबंधन में उचित भूमिका निभाने का मौका दिया जाए।'
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अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला तो पूरे देश को पता है। शनिवार, 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने फैसला सुनाया था। विवदित जमीन रामलला विराजमान पक्ष को दी गई और मस्जिद के लिए अलग से पांच एकड़ जमीन देने का निर्देश कोर्ट ने केंद्र सरकार को दिया है।
ये फैसला देते हुए कोर्ट ने अनुच्छेद 142 का जिक्र किया था। इसकी मदद से ही सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को मस्जिद के लिए आयोध्या में अलग से जमीन देने का फैसला सुनाया। क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों? आखिर अनुच्छेद 142 है क्या और कोर्ट को इस मामले में इसकी मदद क्यों लेनी पड़ी? इस अनुच्छेद का प्रयोग करते हुए कोर्ट ने क्या कहा? इन सवालों के जवाब आगे पढ़ें।