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लोकसभा चुनाव के परिणाम जारी होने के साथ ही बृहस्पतिवार को प्रदेश में इस चुनाव से जुड़े कई दिलचस्प मिथक टूट गए। कहा जाता था कि प्रदेश में सत्ताधारी दल कभी भी लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाता।
यह भी मिथक बना हुआ था कि बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के दौरान यदि लोकसभा चुनाव होता है तो टिहरी लोकसभा सीट पर राजपरिवार को हार झेलनी पड़ती है। लेकिन, इस बार यह धारणाएं टूट गई। लेकिन, कुछ मिथक ऐसे हैं जो अब तक बने हुए हैं।
मिथक-एक: जिसकी सरकार, उसकी हार
राज्य में लोकसभा चुनाव से जुड़ा एक मिथक था कि प्रदेश का सत्ताधारी दल कभी लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाया। वर्ष 2004, वर्ष 2009 और वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में यह मिथक मजबूत हुआ। इन सभी चुनावों में राज्य की सत्ता में बैठे दल के प्रत्याशियों को करारी हार का सामना करना पड़ा। इस लोकसभा चुनाव में ऐसा हुआ कि राज्य के सत्ताधारी दल ने ही लोकसभा की पांचों सीटों पर जीत हासिल की और केंद्र के हाथ मजबूत किए। इसके साथ ही प्रदेश में बना मिथक टूटा गया।
मिथक-दो: हरिद्वार में दो बार नहीं बनता सांसद
हरिद्वार लोकसभा सीट से जुड़ा मिथक था कि यहां राज्य बनने के बाद लगातार दो बार कोई भी सांसद नहीं बन पाया। वर्ष 2004 के बाद से यह मिथक कायम था। लेकिन, इस बार डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने लगातार दूसरी बार जीत हासिल कर इस मिथक को गलत साबित किया। उन्होंने वर्ष 2014 में भी हरिद्वार लोकसभा सीट से जीत दर्ज की थी।
मिथक-तीन: कपाट बंद होने पर नहीं जीतता राजपरिवार
टिहरी लोकसभा सीट से जुड़ा मिथक था कि बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के दौरान यदि लोकसभा चुनाव होता है तो टिहरी राजपरिवार को हार झेलनी पड़ती है। वर्ष 1971 के आमचुनाव और वर्ष 2007 के उपचुनाव के दौरान बदरीनाथ के कपाट बंद थे। इन दोनों ही मौकों पर राजपरिवार के प्रत्याशी को करारी हार का सामना करना पड़ा। लेकिन, इस बार माला राज्यलक्ष्मी शाह ने जीत हासिल कर इस मिथक को तोड़ दिया।
मिथक-चार: राहुल का प्रचार, कांग्रेस की हार
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद उत्तराखंड के साथ यह मिथक भी जुड़ा कि प्रदेश में जहां भी राहुल गांधी प्रचार के लिए जाते हैं, वहां पार्टी को हार का सामना करना पड़ता है। इस चुनाव में यह मिथक कायम रहा। राहुल ने लोकसभा चुनाव के लिए राज्य में कई सीटों पर जनसभाएं की, लेकिन वह पार्टी को एक सीट भी नहीं दिला पाए। प्रदेश में उनके प्रति यह मिथक बरकरार रहा।
मिथक-पांच: केवल परिवार के दम पर जीत नहीं
उत्तराखंड के लोकसभा चुनाव से जुड़ा एक दिलचस्प मिथक यह भी है कि यहां केवल परिवार के दम पर प्रत्याशी को जीत नहीं मिलती। जो भी प्रत्याशी अपने परिवार के दम पर चुनाव मैदान में उतरा, उसे मुंह की खानी पड़ी। विजय बहुगुणा, मनुजेंद्र शाह, साकेत बहुगुणा, जसपाल राणा इसके उदाहरण हैं। पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट से मनीष खंडूड़ी की हार के साथ यह मिथक कायम रहा। मनीष खंडूड़ी को मतदाताओं ने पूरी तरह नकार दिया।
लोकसभा चुनाव के परिणाम जारी होने के साथ ही बृहस्पतिवार को प्रदेश में इस चुनाव से जुड़े कई दिलचस्प मिथक टूट गए। कहा जाता था कि प्रदेश में सत्ताधारी दल कभी भी लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाता।
यह भी मिथक बना हुआ था कि बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के दौरान यदि लोकसभा चुनाव होता है तो टिहरी लोकसभा सीट पर राजपरिवार को हार झेलनी पड़ती है। लेकिन, इस बार यह धारणाएं टूट गई। लेकिन, कुछ मिथक ऐसे हैं जो अब तक बने हुए हैं।
मिथक-एक: जिसकी सरकार, उसकी हार
राज्य में लोकसभा चुनाव से जुड़ा एक मिथक था कि प्रदेश का सत्ताधारी दल कभी लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाया। वर्ष 2004, वर्ष 2009 और वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में यह मिथक मजबूत हुआ। इन सभी चुनावों में राज्य की सत्ता में बैठे दल के प्रत्याशियों को करारी हार का सामना करना पड़ा। इस लोकसभा चुनाव में ऐसा हुआ कि राज्य के सत्ताधारी दल ने ही लोकसभा की पांचों सीटों पर जीत हासिल की और केंद्र के हाथ मजबूत किए। इसके साथ ही प्रदेश में बना मिथक टूटा गया।
तोड़ डाले सारे मिथक
मिथक-दो: हरिद्वार में दो बार नहीं बनता सांसद
हरिद्वार लोकसभा सीट से जुड़ा मिथक था कि यहां राज्य बनने के बाद लगातार दो बार कोई भी सांसद नहीं बन पाया। वर्ष 2004 के बाद से यह मिथक कायम था। लेकिन, इस बार डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने लगातार दूसरी बार जीत हासिल कर इस मिथक को गलत साबित किया। उन्होंने वर्ष 2014 में भी हरिद्वार लोकसभा सीट से जीत दर्ज की थी।
मिथक-तीन: कपाट बंद होने पर नहीं जीतता राजपरिवार
टिहरी लोकसभा सीट से जुड़ा मिथक था कि बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के दौरान यदि लोकसभा चुनाव होता है तो टिहरी राजपरिवार को हार झेलनी पड़ती है। वर्ष 1971 के आमचुनाव और वर्ष 2007 के उपचुनाव के दौरान बदरीनाथ के कपाट बंद थे। इन दोनों ही मौकों पर राजपरिवार के प्रत्याशी को करारी हार का सामना करना पड़ा। लेकिन, इस बार माला राज्यलक्ष्मी शाह ने जीत हासिल कर इस मिथक को तोड़ दिया।
यह मिथक कायम
मिथक-चार: राहुल का प्रचार, कांग्रेस की हार
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद उत्तराखंड के साथ यह मिथक भी जुड़ा कि प्रदेश में जहां भी राहुल गांधी प्रचार के लिए जाते हैं, वहां पार्टी को हार का सामना करना पड़ता है। इस चुनाव में यह मिथक कायम रहा। राहुल ने लोकसभा चुनाव के लिए राज्य में कई सीटों पर जनसभाएं की, लेकिन वह पार्टी को एक सीट भी नहीं दिला पाए। प्रदेश में उनके प्रति यह मिथक बरकरार रहा।
मिथक-पांच: केवल परिवार के दम पर जीत नहीं
उत्तराखंड के लोकसभा चुनाव से जुड़ा एक दिलचस्प मिथक यह भी है कि यहां केवल परिवार के दम पर प्रत्याशी को जीत नहीं मिलती। जो भी प्रत्याशी अपने परिवार के दम पर चुनाव मैदान में उतरा, उसे मुंह की खानी पड़ी। विजय बहुगुणा, मनुजेंद्र शाह, साकेत बहुगुणा, जसपाल राणा इसके उदाहरण हैं। पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट से मनीष खंडूड़ी की हार के साथ यह मिथक कायम रहा। मनीष खंडूड़ी को मतदाताओं ने पूरी तरह नकार दिया।