हरीश रावत के ट्वीट के बाद उपजे विवाद का पटाक्षेप करने के लिए बुलाई गई बैठक के बाद यह स्पष्ट हो गया कि वह हाईकमान के लिए कितने जरूरी हैं। जिस तरह से उन्हें फ्रीहैंड दिया गया है, उससे स्पष्ट है उत्तराखंड के साथ चार अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों को देखते हुए पार्टी हाईकमान कोई रिस्क नहीं लेना चाहता है। पार्टी की प्राथमिकता इस वक्त खेमेबाजी पर लगाम लगाने की है, ताकि किसी भी तरह का नकारात्मक संदेश न जाए।
अपनी जीत के तौर पर देख रहा हरीश खेमा
पूर्व सीएम हरीश रावत ने अपने ट्वीट में जिस तरह से संकेतों में अपनी उपेक्षा किए जाने और संगठनात्मक स्तर पर सहयोग न मिलने के सवाल उठाए थे, उनका किस स्तर तक समाधान हो पाया है, यह तो आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन, जो कुछ हुआ, इसे हरीश खेमा अपनी जीत के तौर पर देख रहा है। बताया जा रहा है कि तीन दिन पहले जब उन्होंने ट्वीट किया था, उसके कुछ समय बाद ही प्रियंका गांधी ने उनसे इस मसले पर लंबी बातचीत की थी।
हरीश ने उसी समय अपना दर्द उनसे बयां कर दिया था। इसके बाद शुक्रवार को राहुल गांधी के साथ हुई वन-टू-वन बातचीत के लिए भी हरीश रावत को सबसे पहले आमंत्रित किया गया। इस बातचीत में उन्होंने तमाम मसलों को विस्तृत रूप से सामने रखा। इसके बाद जिस तरह से बाहर आकर विजयी मुद्रा में उन्होंने मीडिया से बातचीत की, उससे स्पष्ट हो गया था कि बात उनके पक्ष में गई है।
Uttarakhand Election 2022: कभी-कभी पीड़ा व्यक्त करना भी पार्टी के लिए लाभदायक होता है- हरीश रावत
पार्टी इस बात को भली-भांति जानती है कि उत्तराखंड के चुनाव में हरीश रावत के बिना कांग्रेस की सत्ता में वापसी संभव नहीं है। उत्तराखंड उन राज्यों में शुमार है, जहां उसे अपनी जीत पक्की नजर आ रही है। ऐसे में जब उत्तराखंड के साथ उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा और मणिपुर में भी चुनाव होने जा रहे हैं, पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। इन राज्यों में पंजाब एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां उसकी सरकार है। जबकि पार्टी को इस बार उत्तराखंड के साथ गोवा, मणिपुर और उत्तर प्रदेश में भी जीत की आस है। पंजाब में पार्टी की सरकार रहते हुए भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, लेकिन फिर भी पार्टी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है। पार्टी के आंतरिक सर्वे और तमाम सर्वेक्षणों में भी हरीश रावत हैं जरूरी, की बात सामने आई है। यह बात पार्टी हाईकमान भी अच्छी तरह जानती है।
अब तक इस पूरे घटनाक्रम के केंद्र में रही सीएम चेहरे की बात जहां की तहां है। इससे हरीश गुट के समर्थकों में कहीं न कहीं मलाल है। कहा जा रहा था कि हरीश रावत ने खुद को सीएम चेहरा घोषित करने को लेकर यह दांव खेला था, लेकिन पार्टी हाईकमान ने मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद खुद हरीश रावत ने यह बात मीडिया में आकर कही, पार्टी का चेहरा तो मैं ही रहूंगा, लेकिन मुख्यमंत्री कौन होगा, यह जीत दर्ज करने के बाद विधानमंडल दल के सदस्यों की राय लेने के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी तय करेंगी। अब इस बात पर भी बहस छीड़ी है कि पार्टी चुनाव प्रचार कैंपेन के मुखिया तो हरीश पहले भी थे, लेकिन इस पूरी कवायद के बाद हरीश को मिला क्या है?
अनसुलझे हैं तमाम सवाल, इन पर कब होगी बात
हरीश रावत ने अपने ट्वीट में कहा था जिस समुद्र में तैरना है, सत्ता ने वहां कई मगरमच्छ छोड़ रखे हैं। जिनके आदेश पर तैरना है, उनके नुमाइंदे मेरे हाथ-पांव बांध रहे हैं। इशारा पार्टी प्रभारी देवेंद्र यादव और उनकी टीम की तरफ था। लेकिन अब जब कहा जा रहा है, सब कुछ ठीक हो गया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है, जबकि हरीश को इसी पुरानी टीम के साथ काम करना है तो अब वह कैसे तालमेल बिठाएंगे।
..तो क्या हटाए जाएंगे, नापसंद चेहरे
हरीश रावत ने संगठन के ढांचे को लेकर भी सवाल उठाए थे। उनका कहना था कि संगठन का ढांचा ही अधिकांश स्थानों पर हाथ आगे बढ़ाने के बजाय या तो मुंह फेर करके खड़ा हो जा रहा है या नकारात्मक भूमिका निभा रहा है। उनका इशारा उन नेताओं की तरफ था, जो पहले से ही हरीश रावत के धुरविरोधी माने जाते हैं। इनमें कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत रावत और कोषाध्यक्ष आयेंद्र शर्मा का नाम शामिल है। रावत का ट्वीट सामने आने के बाद हरीश के खासमखास सांसद प्रदीप टम्टा ने भी इन दोनों नेताओं के खिलाफ मोर्चो खोलते हुए तमाम सवाल उठाए थे। उनका आरोप था कि दोनों नेता लगातार पार्टी को कमजोर करते रहे हैं, उसके बाद भी उन्हें पदों पर बैठा दिया गया है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं, हरीश रावत की राहुल गांधी के साथ हुई लंबी गुफ्तगू में इस बात की भी जरूर चर्चा हुई होगी। आने वाले दिनों में इस मामले में पार्टी को फरमान जारी कर सकती है।
प्रीतम का जोर....सीएम का चेहरा बाद में तय होगा
दिल्ली में राहुल गांधी के साथ बैठक के बाद बाहर निकले सीएलपी नेता प्रीतम सिंह ने भी मीडिया से बातचीत की। अपने बयान में उन्होंने कहा कि हरीश रावत चुनाव कैंपेन समिति के चेयरमैन पहले भी थे और आगे भी बने रहेंगे। उन्होंने इस बात पर जोर देकर कहा कि सीएम का चेहरा बाद में तय होगा। फिलहाल सब मिलकर चुनाव लड़ेंगे। जो छोटी-मोटी समस्याएं थीं, वह सुलझा ली गई हैं।
हरीश रावत की मुझसे कोई नाराजगी नहीं है। चुनाव के समय में कुछ छोटी-मोटी बातें होती रहती हैं। अब सब ठीक है और सारे मसले सुलझा लिए गए हैं। हरीश रावत कैंपेन समिति के चैयरमैन हैं और वह पूरे चुनाव का कैंपेन लीड करेंगे। अब कोई मतभेद नही हैं। जो काम करता है, काम के तरीके में फर्क हो सकता है पर हमारा ध्येय एक है।
- देवेंद्र यादव, पार्टी प्रदेश प्रभारी, उत्तराखंड
विस्तार
हरीश रावत के ट्वीट के बाद उपजे विवाद का पटाक्षेप करने के लिए बुलाई गई बैठक के बाद यह स्पष्ट हो गया कि वह हाईकमान के लिए कितने जरूरी हैं। जिस तरह से उन्हें फ्रीहैंड दिया गया है, उससे स्पष्ट है उत्तराखंड के साथ चार अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों को देखते हुए पार्टी हाईकमान कोई रिस्क नहीं लेना चाहता है। पार्टी की प्राथमिकता इस वक्त खेमेबाजी पर लगाम लगाने की है, ताकि किसी भी तरह का नकारात्मक संदेश न जाए।
अपनी जीत के तौर पर देख रहा हरीश खेमा
पूर्व सीएम हरीश रावत ने अपने ट्वीट में जिस तरह से संकेतों में अपनी उपेक्षा किए जाने और संगठनात्मक स्तर पर सहयोग न मिलने के सवाल उठाए थे, उनका किस स्तर तक समाधान हो पाया है, यह तो आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन, जो कुछ हुआ, इसे हरीश खेमा अपनी जीत के तौर पर देख रहा है। बताया जा रहा है कि तीन दिन पहले जब उन्होंने ट्वीट किया था, उसके कुछ समय बाद ही प्रियंका गांधी ने उनसे इस मसले पर लंबी बातचीत की थी।
हरीश ने उसी समय अपना दर्द उनसे बयां कर दिया था। इसके बाद शुक्रवार को राहुल गांधी के साथ हुई वन-टू-वन बातचीत के लिए भी हरीश रावत को सबसे पहले आमंत्रित किया गया। इस बातचीत में उन्होंने तमाम मसलों को विस्तृत रूप से सामने रखा। इसके बाद जिस तरह से बाहर आकर विजयी मुद्रा में उन्होंने मीडिया से बातचीत की, उससे स्पष्ट हो गया था कि बात उनके पक्ष में गई है।
Uttarakhand Election 2022: कभी-कभी पीड़ा व्यक्त करना भी पार्टी के लिए लाभदायक होता है- हरीश रावत
पार्टी इस बात को भली-भांति जानती है कि उत्तराखंड के चुनाव में हरीश रावत के बिना कांग्रेस की सत्ता में वापसी संभव नहीं है। उत्तराखंड उन राज्यों में शुमार है, जहां उसे अपनी जीत पक्की नजर आ रही है। ऐसे में जब उत्तराखंड के साथ उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा और मणिपुर में भी चुनाव होने जा रहे हैं, पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। इन राज्यों में पंजाब एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां उसकी सरकार है। जबकि पार्टी को इस बार उत्तराखंड के साथ गोवा, मणिपुर और उत्तर प्रदेश में भी जीत की आस है। पंजाब में पार्टी की सरकार रहते हुए भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, लेकिन फिर भी पार्टी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है। पार्टी के आंतरिक सर्वे और तमाम सर्वेक्षणों में भी हरीश रावत हैं जरूरी, की बात सामने आई है। यह बात पार्टी हाईकमान भी अच्छी तरह जानती है।