पं जयगोविंद शास्त्री, ज्योतिषाचार्य, नई दिल्ली
Updated Sat, 16 Jan 2021 12:03 AM IST
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कुंडली में विष योग
ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार किसी भी जातक की जन्मकुंडली में यदि शनि एवं चन्द्र एक साथ बैठे हों तो 'विषयोग' निर्मित होता है। विषयोग मनुष्य को उसके पूर्व के जन्मों में स्त्री/पुरुष के प्रति किये गए क्रूर-कठोर आचरण की ओर संकेत करता है। इस योग का प्रभाव जातक के जीवन में शत-प्रतिशत घटित होता है, इसीलिए इसे ज्योतिषशास्त्र के सर्वाधिक प्रभावशाली योगों में गिना जाता है।
जो जन्मकाल से आरंभ होकर मृत्यु पर्यंत अपने अशुभ प्रभाव देता रहता है। इस योग के समय जन्म लेने वाला जातक यदि श्वान को भी रोटी खिलाए तो देर-सवेर वह भी उसे काट खायेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि इस विष योग वाली कुंडली का जातक अपने ही मित्रों सम्बन्धियों के द्वारा ठगा जाता है।
ये जिस किसी भी व्यक्ति की मदद करते हैं उनसे अपयश मिलना तय रहता है। कुंडली में जिस भाव में भी 'विषयोग' बनता है, प्राणी को उस भाव से ही सम्बंधित कष्ट मिलते हैं अथवा उस भाव से सम्बंधित कारकत्व पदार्थों का अभाव रहता है। इसका सूक्ष्म विवेचन अष्टक वर्ग के 'द्रेष्काण' में गहनता से किया जाता है जो जातक द्वारा पूर्व के जन्मों में किसी स्त्री को दिये गये कष्ट की ओर संकेत करता है। पुनः वही स्त्री प्रतिशोध लेने के लिए मनुष्य योनि में विषयोग वाले प्राणी की माँ, पत्नी, पुत्री, बहन आदि के रूप में आती है।
माँ की कुंडली में शुभत्व प्रबल होने पर वह पुत्र की गाढ़ी कमाई का धन स्वास्थ्य, विलासिता एवं अन्य संतानों पर व्यय कराती है और दुख, दारिद्र्य तथा धन का नाश कराते हुए दीर्घकाल तक जीवित रहती है। यहाँ तक कि मृत्यु के समय भी वह अन्य संतानों की देखभाल करने का वचन भी ले लेती है। पुत्र की जन्मकुंडली में ये ग्रह प्रबल हो तो जन्म के बाद माँ की मृत्यु होने का भय रहता है।
शनि के चंद्रमा से अधिक अंश या अगली राशि में होने पर जातक अपयश का भागी होता है। यही विषयोग यदि महिलाओं की जन्म कुंडली में हो तो उन्हें पुरुष पिता, भाई, पति, पुत्र आदि के रूप में आर्थिक मानसिक एवं शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते रहते हैं। इस योग से प्रभावित महिला भी अति संघर्ष का सामना करते हुए जीवन का निर्वहन करती है।
कुंडली में विष योग
ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार किसी भी जातक की जन्मकुंडली में यदि शनि एवं चन्द्र एक साथ बैठे हों तो 'विषयोग' निर्मित होता है। विषयोग मनुष्य को उसके पूर्व के जन्मों में स्त्री/पुरुष के प्रति किये गए क्रूर-कठोर आचरण की ओर संकेत करता है। इस योग का प्रभाव जातक के जीवन में शत-प्रतिशत घटित होता है, इसीलिए इसे ज्योतिषशास्त्र के सर्वाधिक प्रभावशाली योगों में गिना जाता है।
जो जन्मकाल से आरंभ होकर मृत्यु पर्यंत अपने अशुभ प्रभाव देता रहता है। इस योग के समय जन्म लेने वाला जातक यदि श्वान को भी रोटी खिलाए तो देर-सवेर वह भी उसे काट खायेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि इस विष योग वाली कुंडली का जातक अपने ही मित्रों सम्बन्धियों के द्वारा ठगा जाता है।
ये जिस किसी भी व्यक्ति की मदद करते हैं उनसे अपयश मिलना तय रहता है। कुंडली में जिस भाव में भी 'विषयोग' बनता है, प्राणी को उस भाव से ही सम्बंधित कष्ट मिलते हैं अथवा उस भाव से सम्बंधित कारकत्व पदार्थों का अभाव रहता है। इसका सूक्ष्म विवेचन अष्टक वर्ग के 'द्रेष्काण' में गहनता से किया जाता है जो जातक द्वारा पूर्व के जन्मों में किसी स्त्री को दिये गये कष्ट की ओर संकेत करता है। पुनः वही स्त्री प्रतिशोध लेने के लिए मनुष्य योनि में विषयोग वाले प्राणी की माँ, पत्नी, पुत्री, बहन आदि के रूप में आती है।
माँ की कुंडली में शुभत्व प्रबल होने पर वह पुत्र की गाढ़ी कमाई का धन स्वास्थ्य, विलासिता एवं अन्य संतानों पर व्यय कराती है और दुख, दारिद्र्य तथा धन का नाश कराते हुए दीर्घकाल तक जीवित रहती है। यहाँ तक कि मृत्यु के समय भी वह अन्य संतानों की देखभाल करने का वचन भी ले लेती है। पुत्र की जन्मकुंडली में ये ग्रह प्रबल हो तो जन्म के बाद माँ की मृत्यु होने का भय रहता है।
शनि के चंद्रमा से अधिक अंश या अगली राशि में होने पर जातक अपयश का भागी होता है। यही विषयोग यदि महिलाओं की जन्म कुंडली में हो तो उन्हें पुरुष पिता, भाई, पति, पुत्र आदि के रूप में आर्थिक मानसिक एवं शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते रहते हैं। इस योग से प्रभावित महिला भी अति संघर्ष का सामना करते हुए जीवन का निर्वहन करती है।