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Sri Lanka: श्रीलंका को मिले आईएमएफ के कर्ज से एमनेस्टी इंटरनेशनल है क्यों चिंतित?

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, कोलंबो Published by: Harendra Chaudhary Updated Thu, 30 Mar 2023 07:09 PM IST
सार

Sri Lanka: मानव अधिकारों की रक्षा के मामले में श्रीलंका सरकार दशकों से कठघरे में रही है। संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद में भी इस मुद्दे पर उसके खिलाफ प्रस्ताव पारित हो चुके हैं। अब एमनेस्टी इंटरनेशनल ने आर्थिक सुधारों के साथ-साथ मानव अधिकारों की रक्षा के कार्यक्रम पर भी अमल की मांग की है...

Why is Amnesty International show concern after the IMF loan given to Sri Lanka
Amnesty international - फोटो : Agency (File Photo)

विस्तार
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अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल श्रीलंका को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की तरफ से दिए गए 2.9 बिलियन डॉलर ऋण के संभावित सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को लेकर चिंतित है। अपनी यह चिंता अंतरराष्ट्रीय संगठन के वरिष्ठ निदेशक डेप्रोज मुचेना आईएमएफ के अधिकारियों को बताएंगे। मुचेना अभी श्रीलंका के दौरे पर आए हुए हैं। उन्होंने कहा कि वे जल्द ही आईएमएफ के अधिकारियों से मुलाकात करेंगे।

मुचेना ने कहा है कि उनका संगठन यह जानना चाहता है कि श्रीलंका पर आईएमएफ ने जिन ‘आर्थिक सुधारों’ की शर्त लगाई है, क्या वे एमनेस्टी इंटरनेशनल के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों पर खरे उतरते हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल लंदन स्थित संस्था है, जिसकी पश्चिमी देशों में ऊंची प्रतिष्ठा है। इसलिए उसके वरिष्ठ निदेशक के श्रीलंका दौरे और उनकी टिप्पणियों को यहां गंभीरता से लिया गया है। मुचेना ने यहां मानवाधिकारों की स्थिति पर 2022-23 की एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट को भी जारी किया।

मुचेना ने वेबसाइट इकॉनमी नेक्स्ट को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि आईएमएफ के साथ श्रीलंका को जो करार हुआ है, उसमें पूरी पारदर्शिता बरते जाने की जरूरत है। साथ ही आर्थिक सुधारों को लेकर जवाबदेही तय होनी चाहिए। यही बात अन्य कर्जदाताओं से ऋण के लिए होने वाले समझौतों पर भी लागू होनी चाहिए। उन्होंने कहा- ‘सरकार जो आर्थिक कार्यक्रम लागू कर रही है, उसके केंद्र में लोगों को रखा जाना चाहिए। सरकार के पास यह विकल्प नहीं है कि वह विकास और मानव अधिकारों के बीच किसी एक का चुनाव करे।’

मानव अधिकारों की रक्षा के मामले में श्रीलंका सरकार दशकों से कठघरे में रही है। संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद में भी इस मुद्दे पर उसके खिलाफ प्रस्ताव पारित हो चुके हैं। अब एमनेस्टी इंटरनेशनल ने आर्थिक सुधारों के साथ-साथ मानव अधिकारों की रक्षा के कार्यक्रम पर भी अमल की मांग की है। मुचेना ने कहा- सरकार के एजेंडे में लोगों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए और कठोर कानूनों की वापसी सहित उनकी तमाम अपेक्षाओं को पूरा किया जाना चाहिए।

श्रीलंका के आतंकवाद निरोधक कानून (पीटीए) को एक कठोर अधिनियम बताया जाता रहा है। देश की सिविल सोसायटी से लेकर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं तक ने इस कानून के इस्तेमाल की आलोचना की है। लेकिन सरकार की दलील रही है कि इस कानून के तहत उन लोगों को ही गिरफ्तार किया गया है, जो समाज में हिंसा फैलाने में जुटे हुए थे।

श्रीलंका के सिविल सोसायटी संगठनों के साथ-साथ कई विपक्षी दलों ने भी हाल में आरोप लगाए हैं कि देश के अंदर असहमति जताने के अवसर सिकुड़ते जा रहे हैं। हाल में हुए सरकार विरोधी शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के दौरान सरकारी बलों ने काफी सख्ती बरती। जबकि ये प्रदर्शन बढ़ती आर्थिक मुसीबतों के कारण हुए थे। हाल में ट्रेड यूनियनों ने आईएमएफ की तरफ से लगाई गई शर्तों के विरोध में हड़ताल भी की थी। इन शर्तों के तहत देश में कई चीजों पर शुल्क लगाए गए हैं, जबकि इनकम टैक्स की दरें बढ़ा दी गई हैं। समझा जाता है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इन्हीं मुद्दों की तरफ अब ध्यान खींचा है और इस बारे में सीधे आईएमएफ से बातचीत करने का फैसला किया है।

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