सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी में मतभेद के कारण अमेरिका में कॉरपोरेट और धनी लोगों पर टैक्स बढ़ाने का मामला लटक गया लगता है, लेकिन अमेरिका के अनुरोध पर जी-20 देशों ने वैश्विक न्यूनतम प्रत्यक्ष करों की न्यूनतम दर तय करने के मुद्दे पर चर्चा जरूर शुरू कर दी है। इसी हफ्ते अमेरिकी ट्रेजरी सेक्रेटरी (वित्त मंत्री) जेनेट येलेन ने ऐसी दर तय करने की अपील की थी। ताजा खबरों के मुताबिक फ्रांस और जर्मनी ने अमेरिकी प्रस्ताव का समर्थन किया है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि नई न्यूनतम दर इसी साल गर्मियों से लागू की जा सकती है।
अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडन ने कॉरपोरेट टैक्स को 21 फीसदी से बढ़ा कर 28 फीसदी करने का प्रस्ताव पेश किया है। लेकिन डेमोक्रेटिक सीनेटर जो मेंचिन के इस मामले में विरोधी रुख अपना लेने के कारण फिलहाल इस प्रस्ताव के सीनेट में पास होने की संभावना कम दिखती है। 100 सदस्यीय सीनेट में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों पार्टियों के 50-50 सदस्य हैं। रिपब्लिकन पार्टी टैक्स बढ़ाने की सख्त विरोधी है। ऐसे में किसी एक डेमोक्रेट सीनेटर के विरोध में मतदान करने पर ऐसे प्रस्ताव का गिर जाना तय है।
बुधवार को बाइडन प्रशासन ने अपने टैक्स प्रस्ताव का ब्योरा जारी किया। इसके मुताबिक कॉरपोरेट टैक्स को बढ़ा कर 28 फीसदी किया जाएगा। इसके अलावा उन कंपनियों पर न्यूनतम 15 फीसदी टैक्स लगाया जाएगा, जो भारी मुनाफा दिखाती हैं, लेकिन जिनकी टैक्स योग्य आय नगण्य होती है। बाइडन प्रशासन ने जीवाश्म (फॉसिल) ईंधन को मिलने वाली सब्सिडी खत्म करने और उसे स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र को देने की पेशकश भी की है। साथ ही प्रशासन ने टैक्स नियमों को सख्ती से लागू करने के उपाय घोषित किए हैँ।
अमेरिका में कॉरपोरेट टैक्स बढ़ाने के प्रस्ताव पर जर्मनी के विदेश मंत्री ओलाफ शोल्ज ने कहा कि उन्हें पूरा भरोसा है कि इस कॉरपोरेट टैक्स संबंधी पहल से दुनिया में टैक्स घटाने की चल रही होड़ पर विराम लग जाएगा। फ्रांस के विदेश मंत्री ब्रूनो ले मायर ने अमेरिकी प्रस्ताव का स्वागत करते हुए कहा- ‘अंतरराष्ट्रीय कर नियम के बारे में एक वैश्विक समझौता अब हम सबकी पहुंच में है। हमें इस एतिहासिक मौके का अवश्य लाभ उठाना चाहिए।’
जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों की बुधवार को वर्चुअल बैठक हुई। उसमें बताया गया कि जी-20 देश धनी देशों के संगठन ऑर्गनाइजेशन ऑर इकॉनमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीटडी) के तहत कॉरपोरेट टैक्स सुधार पर विचार-विमर्श कर रहे हैं। उनकी कोशिश यह है कि अगले जुलाई में होने वाली जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों की बैठक तक इस बारे में कोई सहमति बना ली जाए।
मिली जानकारी के मुताबिक दो बिंदुओं पर काम शुरू हो गया है। पहली चुनौती डिजिटल कारोबार और उन बड़ी कंपनियों के बारे में सहमति बनाने की है, जो देशों की सीमाओं से बाहर जाकर कारोबार करती हैं। इनके बारे में तय यह कहना है कि इन कंपनियों को किस देश में टैक्स देना चाहिए। ये कंपनियां उन देशों को टैक्स देने के लिए चुनती हैं, जहां टैक्स की दरें कम हैं। यानी ये वहां अपना मुख्यालय बना लेती हैं। अब प्रस्ताव यह है कि इन कंपनियों को वहां टैक्स देने को मजबूर किया जाए, जहां उनके कस्टमर (ग्राहक) हैं, भले उनका मुख्यालय कहीं हो। इस मामले में वैश्विक सहमति बनाने की कोशिशें पहले भी हुईं, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इससे असंतुष्ट हो कर ब्रिटेन और फ्रांस ने अपने यहां डिजिटल सर्विस टैक्स लगा दिया है।
दूसरा बिंदु वैश्विक स्तर पर न्यूनतम कॉरपोरेट टैक्स की दर तय करने का है। इस मामले में सहमति बनाना ज्यादा बड़ी चुनौती है, क्योंकि आयरलैंड और नीदरलैंड्स जैसे कई देशों ने बहुराष्ट्रीय निवेश को लुभाने के लिए अपने यहां टैक्स दरें बहुत कम कर रखी हैं। अमेरिकी प्रस्ताव आने के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में आयरलैंड के वित्त मंत्री पाशेल दोनोहे ने इस पर एतराज जताया। उन्होंने कहा कि टैक्स की वैश्विक न्यूनतम दर तय करने का छोटे और मध्यम आकार की अर्थव्यवस्था वाले देशों पर बुरा असर पड़ेगा। आयरलैंड में कॉरपोरेट टैक्स की दर सिर्फ 12.5 फीसदी है, जो दुनिया में सबसे कम है।
इसके अलावा केमैन आइलैंड जैसे कई छोटे देशों में टैक्स दरें या तो बहुत कम हैं या फिर वहां शून्य टैक्स लगता है। इसलिए धनी लोग इन देशों का इस्तेमाल टैक्स हैवेन के रूप में करते हैं। इन देशों को न्यूनतम कर लगाने पर कैसे राजी किया जाएगा, अमेरिकी प्रस्ताव की राह में यह सबसे बड़ी चुनौती है।