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अस्कोट-कर्णप्रयाग मार्ग पर थल स्थित रामगंगा में वर्ष 1962 में बने पुल की हालत अब बेहद खराब हो गई है। 68 मीटर लंबे इस पुल पर वर्ष 2007 तक रंगरोगन और मरम्मत का काम होता था। साथ ही पुल की देखरेख के लिए एक पुलिस कर्मी भी तैनात रहता था, लेकिन 2007 के बाद यह सब बंद हो गया। हालांकि, पिछले साल पुल को हो रहे खतरे को देखते हुए लोनिवि डीडीहाट ने कुछ समय तक भारी वाहनों के संचालन पर रोक लगाई थी, लेकिन बाद में पुल की थोड़ी मरम्मत करके फिर से भारी वाहनों का संचालन शुरू हो गया है।
वर्तमान में इस पुल पर लगे लोहे पर जंग लग चुका है। पुल के किनारे की दीवारें टूटने लगी हैं। दोनों छोर से लगातार बरसात का पानी पुल पर गिरने से उसकी दीवारों को खतरा पहुंच रहा है। पुल पर घास और पेड़ उग आए हैं। किनारों में काई जम गई है। 55 वर्ष पहले बना यह पुल डीडीहाट, धारचूला, थल, नाचनी जाने वाले वाहनों का प्रमुख साधन है। दो वर्ष पहले बेड़ीनाग से डीडीहाट तक की सड़क को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया गया, लेकिन पुलों की देखरेख का काम एनएच के अधीन नहीं हुआ है।
एनएच के अवर अभियंता बीसी जोशी का कहना है कि अब तक पुलों की देखरेख किसे करनी है, यह तय नहीं किया गया है। एनएच को सिर्फ सड़कों की मरम्मत और हॉटमिक्स की जिम्मेदारी मिली है। उधर, लोनिवि डीडीहाट के अधिशासी अभियंता गणेश जोशी का कहना है कि अगले महीने पुल की मरम्मत के लिए टेंडर लगाए जाएंगे और उसके बाद काम शुरू किया जाएगा।
पुल की देखरेख न होना लापरवाही
स्थानीय निवासी बसंत लोहनी का कहना है कि सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस पुल की देखरेख न होना गंभीर लापरवाही है। वह कहते हैं कि पुल जिस हालत में पहुंच गया है उसे देखकर लगता है कि यह किसी भी समय बड़े हादसे की वजह बन सकता है। पुल पर उग रहे पेड़ों की जड़ें पुल को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं।
मरम्मत क्यों नहीं हो रही, यह जांच का विषय
थल निवासी गिरीश पुनेठा का कहना है कि 2007 से पहले पुल की मरम्मत एवं रंगरोगन के लिए धन आता था, अब किन कारणों से बंद हुआ, इसकी जांच होनी चाहिए। वह कहते हैं कि सरकार पहले धन देती थी तो अब भी जरूर देती होगी, लेकिन इसमें कोई गोलमाल तो नहीं हो रहा है, इसकी पड़ताल होनी चाहिए।
अस्कोट-कर्णप्रयाग मार्ग पर थल स्थित रामगंगा में वर्ष 1962 में बने पुल की हालत अब बेहद खराब हो गई है। 68 मीटर लंबे इस पुल पर वर्ष 2007 तक रंगरोगन और मरम्मत का काम होता था। साथ ही पुल की देखरेख के लिए एक पुलिस कर्मी भी तैनात रहता था, लेकिन 2007 के बाद यह सब बंद हो गया। हालांकि, पिछले साल पुल को हो रहे खतरे को देखते हुए लोनिवि डीडीहाट ने कुछ समय तक भारी वाहनों के संचालन पर रोक लगाई थी, लेकिन बाद में पुल की थोड़ी मरम्मत करके फिर से भारी वाहनों का संचालन शुरू हो गया है।
वर्तमान में इस पुल पर लगे लोहे पर जंग लग चुका है। पुल के किनारे की दीवारें टूटने लगी हैं। दोनों छोर से लगातार बरसात का पानी पुल पर गिरने से उसकी दीवारों को खतरा पहुंच रहा है। पुल पर घास और पेड़ उग आए हैं। किनारों में काई जम गई है। 55 वर्ष पहले बना यह पुल डीडीहाट, धारचूला, थल, नाचनी जाने वाले वाहनों का प्रमुख साधन है। दो वर्ष पहले बेड़ीनाग से डीडीहाट तक की सड़क को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया गया, लेकिन पुलों की देखरेख का काम एनएच के अधीन नहीं हुआ है।
एनएच के अवर अभियंता बीसी जोशी का कहना है कि अब तक पुलों की देखरेख किसे करनी है, यह तय नहीं किया गया है। एनएच को सिर्फ सड़कों की मरम्मत और हॉटमिक्स की जिम्मेदारी मिली है। उधर, लोनिवि डीडीहाट के अधिशासी अभियंता गणेश जोशी का कहना है कि अगले महीने पुल की मरम्मत के लिए टेंडर लगाए जाएंगे और उसके बाद काम शुरू किया जाएगा।
पुल की देखरेख न होना लापरवाही
स्थानीय निवासी बसंत लोहनी का कहना है कि सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस पुल की देखरेख न होना गंभीर लापरवाही है। वह कहते हैं कि पुल जिस हालत में पहुंच गया है उसे देखकर लगता है कि यह किसी भी समय बड़े हादसे की वजह बन सकता है। पुल पर उग रहे पेड़ों की जड़ें पुल को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं।
मरम्मत क्यों नहीं हो रही, यह जांच का विषय
थल निवासी गिरीश पुनेठा का कहना है कि 2007 से पहले पुल की मरम्मत एवं रंगरोगन के लिए धन आता था, अब किन कारणों से बंद हुआ, इसकी जांच होनी चाहिए। वह कहते हैं कि सरकार पहले धन देती थी तो अब भी जरूर देती होगी, लेकिन इसमें कोई गोलमाल तो नहीं हो रहा है, इसकी पड़ताल होनी चाहिए।