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हल्द्वानी। एक गांव तक सड़क पहुंचाने की जल्दबाजी का ही नतीजा रहा कि सदियों से सुरक्षित काठगोदाम का ब्यूरा खाम गांव अब असुरक्षित हो गया है। पहाड़ की तलहटी पर बसे इस गांव पर अब भूस्खलन का खतरा मंडराता रहेगा। खतरनाक यह भी है कि प्रदेश में ब्यूराखाम जैसे कई गांव हैं जिनके लिए इस तरह की पटकथा या तो तैयार की जा चुकी है या फिर तैयार की जा रही है।
विधानसभा चुनाव के दौरान बलूटी-बधूनी मोटरमार्ग का काम जल्द से जल्द पूरा कर लेने के लिए दबाव बना था। यह सड़क है जो प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के गांव तक पहुंचाई जा रही थी। दबाव का ही नतीजा रहा कि चुनाव के दौरान न तो सड़क के संरेखण(अलाइंमेंट) और न ही सड़क निर्माण से निकले मलबे को सही जगह डंप करने पर ध्यान दिया गया।
गलत संरेखण और मलबा सड़क से नीचे की ओर डाल देने पर वन विभाग ने आपत्ति जताई तो कार्यदायी संस्था ने काम ही रोक दिया। नतीजा मलबा ब्यूरा खाम के ऊपर के इलाके में पसरा रहा और तेज बारिश के कारण इसी मलबे ने गांव में तबाही मचाई।
अब देर से जागे प्रशासन ने गंाव को तात्कालिक रूप से राहत तो दिलाई, लेकिन ब्यूरा खाम को असुरक्षित बनाने वाले संबंधित विभाग अब भी कार्यवाही की जद से बाहर हैं। मामला सिंचाई विभाग और वन विभाग के बीच ही उलझ कर रह गया है। वन विभाग इस प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बन रही सड़क में मानकों का पालन करने की शिकायत केंद्र सरकार से कर चुका है।
सिंचाई विभाग का कहना है कि वन विभाग ने काम रुकवा दिया था, लिहाजा मलबे को हटाया नहीं जा सका। कारण जो भी रहा हो, लेकिन खामियाजा भुगत बेकसूर ब्यूरा खाम रहा है। यह कहानी कई और जगह भी दोहराई जा रही है। सड़क को विकास का पैमाना मान लिया गया है और सड़क बनाने में मानक ताक पर रहते हैं। पिछले साल ही बस्तड़ी की आपदा के पीछे भी सड़क निर्माण के दौरान किए गए अनियंत्रित विस्फोट भी एक कारण गिनाया गया था।
हल्द्वानी। एक गांव तक सड़क पहुंचाने की जल्दबाजी का ही नतीजा रहा कि सदियों से सुरक्षित काठगोदाम का ब्यूरा खाम गांव अब असुरक्षित हो गया है। पहाड़ की तलहटी पर बसे इस गांव पर अब भूस्खलन का खतरा मंडराता रहेगा। खतरनाक यह भी है कि प्रदेश में ब्यूराखाम जैसे कई गांव हैं जिनके लिए इस तरह की पटकथा या तो तैयार की जा चुकी है या फिर तैयार की जा रही है।
विधानसभा चुनाव के दौरान बलूटी-बधूनी मोटरमार्ग का काम जल्द से जल्द पूरा कर लेने के लिए दबाव बना था। यह सड़क है जो प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के गांव तक पहुंचाई जा रही थी। दबाव का ही नतीजा रहा कि चुनाव के दौरान न तो सड़क के संरेखण(अलाइंमेंट) और न ही सड़क निर्माण से निकले मलबे को सही जगह डंप करने पर ध्यान दिया गया।
गलत संरेखण और मलबा सड़क से नीचे की ओर डाल देने पर वन विभाग ने आपत्ति जताई तो कार्यदायी संस्था ने काम ही रोक दिया। नतीजा मलबा ब्यूरा खाम के ऊपर के इलाके में पसरा रहा और तेज बारिश के कारण इसी मलबे ने गांव में तबाही मचाई।
अब देर से जागे प्रशासन ने गंाव को तात्कालिक रूप से राहत तो दिलाई, लेकिन ब्यूरा खाम को असुरक्षित बनाने वाले संबंधित विभाग अब भी कार्यवाही की जद से बाहर हैं। मामला सिंचाई विभाग और वन विभाग के बीच ही उलझ कर रह गया है। वन विभाग इस प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बन रही सड़क में मानकों का पालन करने की शिकायत केंद्र सरकार से कर चुका है।
सिंचाई विभाग का कहना है कि वन विभाग ने काम रुकवा दिया था, लिहाजा मलबे को हटाया नहीं जा सका। कारण जो भी रहा हो, लेकिन खामियाजा भुगत बेकसूर ब्यूरा खाम रहा है। यह कहानी कई और जगह भी दोहराई जा रही है। सड़क को विकास का पैमाना मान लिया गया है और सड़क बनाने में मानक ताक पर रहते हैं। पिछले साल ही बस्तड़ी की आपदा के पीछे भी सड़क निर्माण के दौरान किए गए अनियंत्रित विस्फोट भी एक कारण गिनाया गया था।