बागेश्वर। कुंवारी गांव की तलहटी में शंभू नदी पर चार साल पहले ही झील बननी शुरू हो गई थी। धीरे-धीरे झील का आकार बढ़ता गया। अभी झील की लंबाई 700 मीटर तक बढ़ गई है। तहसील प्रशासन के निरीक्षण के बाद जिला प्रशासन ने सिंचाई विभाग को मलबा हटाने के निर्देश दे दिए हैं। सिंचाई विभाग ने प्रस्ताव बनाकर तहसील प्रशासन को भेज दिया है। जल्द ही पोकलैंड मशीन से मलबा हटाने का काम शुरू किया जाएगा।
कपकोट का अंतिम कुंवारी आपदा प्रभावित गांव है। वर्ष 2013 में गांव के समीप की पहाड़ी अचानक दरकने लगी और गांव भी खतरे की जद में आ गया। पहाड़ी से गिरने वाले मलबे के कारण शंभू नदी पर झील बन गई। हालांकि बरसात में नदी का जलस्तर बढ़ने से झील टूट गई। वर्ष 2018 में फिर से गांव की पहाड़ी से भारी मात्रा में भूस्खलन हुआ और शंभू नदी में झील बन गई जिसके बाद से लगातार झील का विस्तार हो रहा है। माना जा रहा है कि झील के एक छोर पर लगातार गिरने वाला मलबा जमा होता जा रहा है। पानी की निकासी के लिए सीमित जगह होने के कारण झील का आकार बढ़ता जा रहा है।
पिछले चार साल से झील का विस्तार होने के बावजूद ग्रामीण, जनप्रतिनिधि, प्रशासन और शासन की ओर से इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। यूसर्क की टीम अगर नदियों को जोड़ने की योजना के तहत सर्वे नहीं करती तो मामला प्रकाश में नहीं आता। जिस तेजी से झील का विस्तार हो रहा था, वह आने वाले दिनों में निश्चित तौर पर नुकसान पहुंचाता। हालांकि अब प्रशासन ने पहाड़ी से गिरकर नदी में जमा हुए मलबे को जल्द हटाने की बात कही है।
भूगर्भीय हलचल से होता है कुंवारी की पहाड़ी पर भूस्खलन
बागेश्वर। 2018 में कुंवारी में भूस्खलन के बाद आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र की टीम ने गांव का निरीक्षण किया। टीम ने अपनी रिपोर्ट में भूस्खलन का कारण भूगर्भीय हलचल को बताया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा अवसादी चट्टान (सेडीमेंटरी) और मेटासेडीमेंटरी वितलीय (प्लूटोनिक) चट्टानों से मिलकर बना है। कुंवारी के पास से कपकोट फोरमेसन और हत्थसिला फोरमेशन गुजर रहे हैं। इनके आपस में टकराने से टेक्टोनिक जोन बन रहा है और उसी कारण पहाड़ी से बैमौसम भी भूस्खलन हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया था कि गांव को भूस्खलन के अलावा समीप से गुजर रहे बरसाती नाले से भी खतरा है। वर्तमान में कुंवारी गांव के भूस्खलन का यह खतरा क्षेत्र से अधिक चमोली जिले के इलाकों के लिए पैदा हो रहा है। अगर समय रहते झील से पानी की निकासी नहीं हुई तो आपदा काल में थराली, नारायणबगड़ इलाके खतरे की जद में रहेंगे।
निरीक्षण के बाद तैयार करनी होगी विस्तृत रिपोर्ट
बागेश्वर। भूवैज्ञानिक/खान अधिकारी लेखराज ने बताया कि कुंवारी गांव की पहाड़ी से लगातार भूस्खलन होने से झील का आकार बढ़ गया है। वर्तमान में झील के पानी की निकासी करना प्राथमिकता है। गांव की पहाड़ी से लगातार होने वाले भूस्खलन की जांच के लिए गांव का निरीक्षण कर विस्तृत अध्ययन करना होगा। बारिश के बाद इस पर कार्य किया जाएगा। अध्ययन के आधार पर भूस्खलन और शंभू नदी पर बार-बार झील बनने से रोकने के लिए विस्तृत कार्ययोजना बनाई जाएगी और समस्या का स्थायी हल निकालने का प्रयास किया जाएगा।
शंभू नदी में बनी झील से पानी की निकासी के लिए तहसील प्रशासन से प्रस्ताव मांगा गया था। विभाग की ओर से 9.92 लाख का प्रस्ताव बनाकर एसडीएम को भेज दिया गया है। झील के पानी को मैन्युवली निकालना संभव नहीं है। तहसील और जिला प्रशासन के दिशा निर्देशों के अनुसार कार्य कर नदी से मलबा हटाया जाएगा।
जेएस बिष्ट, ईई, सिंचाई विभाग कपकोट
कोट
रविवार को प्रशासन ने झील का निरीक्षण कर ड्रोन कैमरों से तस्वीर ली है। झील का विस्तार करीब 700 मीटर तक हो गया है। हालांकि झील में करीब 6500 क्सूसेक पानी है औैर किसी तरह का बड़ा खतरा नहीं है। जल्द ही पोकलैंड मशीन की मदद से नदी में जमा मलबा हटाकर झील के पानी की निकासी कराई जाएगी।
-पारितोष वर्मा, एसडीएम कपकोट
कोट
लोनिवि, पीएमजीएसवाई, सिंचाई, राजस्व, आपदा प्रबंधन विभाग ने निरीक्षण के बाद झील की रिपोर्ट भेजी थी। रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद सिंचाई विभाग को प्रस्ताव तैयार करने और झील से मलबा हटाने के निर्देश दिए गए हैं। जल्द ही नदी से मलबा हटाकर नदी से पानी की निकासी करा दी जाएगी।
-चंद्र सिंह इमलाल, एडीएम बागेश्वर।
बागेश्वर के कुंवारी में इस तरह हो रहे भूस्खलन के कारण पहाड़ी से शंभू नदी में गिर रहा मलबा। संवाद न?- फोटो : BAGESHWAR
बागेश्वर। कुंवारी गांव की तलहटी में शंभू नदी पर चार साल पहले ही झील बननी शुरू हो गई थी। धीरे-धीरे झील का आकार बढ़ता गया। अभी झील की लंबाई 700 मीटर तक बढ़ गई है। तहसील प्रशासन के निरीक्षण के बाद जिला प्रशासन ने सिंचाई विभाग को मलबा हटाने के निर्देश दे दिए हैं। सिंचाई विभाग ने प्रस्ताव बनाकर तहसील प्रशासन को भेज दिया है। जल्द ही पोकलैंड मशीन से मलबा हटाने का काम शुरू किया जाएगा।
कपकोट का अंतिम कुंवारी आपदा प्रभावित गांव है। वर्ष 2013 में गांव के समीप की पहाड़ी अचानक दरकने लगी और गांव भी खतरे की जद में आ गया। पहाड़ी से गिरने वाले मलबे के कारण शंभू नदी पर झील बन गई। हालांकि बरसात में नदी का जलस्तर बढ़ने से झील टूट गई। वर्ष 2018 में फिर से गांव की पहाड़ी से भारी मात्रा में भूस्खलन हुआ और शंभू नदी में झील बन गई जिसके बाद से लगातार झील का विस्तार हो रहा है। माना जा रहा है कि झील के एक छोर पर लगातार गिरने वाला मलबा जमा होता जा रहा है। पानी की निकासी के लिए सीमित जगह होने के कारण झील का आकार बढ़ता जा रहा है।
पिछले चार साल से झील का विस्तार होने के बावजूद ग्रामीण, जनप्रतिनिधि, प्रशासन और शासन की ओर से इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। यूसर्क की टीम अगर नदियों को जोड़ने की योजना के तहत सर्वे नहीं करती तो मामला प्रकाश में नहीं आता। जिस तेजी से झील का विस्तार हो रहा था, वह आने वाले दिनों में निश्चित तौर पर नुकसान पहुंचाता। हालांकि अब प्रशासन ने पहाड़ी से गिरकर नदी में जमा हुए मलबे को जल्द हटाने की बात कही है।
भूगर्भीय हलचल से होता है कुंवारी की पहाड़ी पर भूस्खलन
बागेश्वर। 2018 में कुंवारी में भूस्खलन के बाद आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र की टीम ने गांव का निरीक्षण किया। टीम ने अपनी रिपोर्ट में भूस्खलन का कारण भूगर्भीय हलचल को बताया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा अवसादी चट्टान (सेडीमेंटरी) और मेटासेडीमेंटरी वितलीय (प्लूटोनिक) चट्टानों से मिलकर बना है। कुंवारी के पास से कपकोट फोरमेसन और हत्थसिला फोरमेशन गुजर रहे हैं। इनके आपस में टकराने से टेक्टोनिक जोन बन रहा है और उसी कारण पहाड़ी से बैमौसम भी भूस्खलन हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया था कि गांव को भूस्खलन के अलावा समीप से गुजर रहे बरसाती नाले से भी खतरा है। वर्तमान में कुंवारी गांव के भूस्खलन का यह खतरा क्षेत्र से अधिक चमोली जिले के इलाकों के लिए पैदा हो रहा है। अगर समय रहते झील से पानी की निकासी नहीं हुई तो आपदा काल में थराली, नारायणबगड़ इलाके खतरे की जद में रहेंगे।
निरीक्षण के बाद तैयार करनी होगी विस्तृत रिपोर्ट
बागेश्वर। भूवैज्ञानिक/खान अधिकारी लेखराज ने बताया कि कुंवारी गांव की पहाड़ी से लगातार भूस्खलन होने से झील का आकार बढ़ गया है। वर्तमान में झील के पानी की निकासी करना प्राथमिकता है। गांव की पहाड़ी से लगातार होने वाले भूस्खलन की जांच के लिए गांव का निरीक्षण कर विस्तृत अध्ययन करना होगा। बारिश के बाद इस पर कार्य किया जाएगा। अध्ययन के आधार पर भूस्खलन और शंभू नदी पर बार-बार झील बनने से रोकने के लिए विस्तृत कार्ययोजना बनाई जाएगी और समस्या का स्थायी हल निकालने का प्रयास किया जाएगा।
शंभू नदी में बनी झील से पानी की निकासी के लिए तहसील प्रशासन से प्रस्ताव मांगा गया था। विभाग की ओर से 9.92 लाख का प्रस्ताव बनाकर एसडीएम को भेज दिया गया है। झील के पानी को मैन्युवली निकालना संभव नहीं है। तहसील और जिला प्रशासन के दिशा निर्देशों के अनुसार कार्य कर नदी से मलबा हटाया जाएगा।
जेएस बिष्ट, ईई, सिंचाई विभाग कपकोट
कोट
रविवार को प्रशासन ने झील का निरीक्षण कर ड्रोन कैमरों से तस्वीर ली है। झील का विस्तार करीब 700 मीटर तक हो गया है। हालांकि झील में करीब 6500 क्सूसेक पानी है औैर किसी तरह का बड़ा खतरा नहीं है। जल्द ही पोकलैंड मशीन की मदद से नदी में जमा मलबा हटाकर झील के पानी की निकासी कराई जाएगी।
-पारितोष वर्मा, एसडीएम कपकोट
कोट
लोनिवि, पीएमजीएसवाई, सिंचाई, राजस्व, आपदा प्रबंधन विभाग ने निरीक्षण के बाद झील की रिपोर्ट भेजी थी। रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद सिंचाई विभाग को प्रस्ताव तैयार करने और झील से मलबा हटाने के निर्देश दिए गए हैं। जल्द ही नदी से मलबा हटाकर नदी से पानी की निकासी करा दी जाएगी।
-चंद्र सिंह इमलाल, एडीएम बागेश्वर।

बागेश्वर के कुंवारी में इस तरह हो रहे भूस्खलन के कारण पहाड़ी से शंभू नदी में गिर रहा मलबा। संवाद न?- फोटो : BAGESHWAR