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भगवान राम के तीन भाई थे। तीनों भाइयों में राम के सबसे प्रिय थे लक्ष्मण। लक्ष्मण भी राम का बहुत आदर करते थे इसलिए जब भगवान राम वनवास के लिए जाने लगे तो लक्ष्मण भी हठ करके राम के साथ वन गए।
लक्ष्मण ने हर सुख दुख में भगवान राम का साथ दिया। इसके बाद भी एक बार लक्ष्मण जी से एक छोटी सी गलती हो गयी तो भगवान राम ने उन्हें मृत्युदंड दे दिया। भगवान राम की आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण जी ने जल समाधि ले ली।
सवाल उठता है कि न्यायप्रिय और भक्तवत्सल कहलाने वाले राम ने आखिर अपने प्राणप्रिय भाई को उनकी छोटी सी गलती पर प्राणदंड क्यों दिया और वह गलती क्या थी जिसने भगवान राम को ऐसी कठोर सजा देने के लिए विवश कर दिया था।
यमराज यह जानते थे कि भगवान की इच्छा के बिना भगवान न तो स्वयं शरीर का त्याग करेंगे और न शेषनाग के अंशावतार लक्ष्मण जी। ऐसे में यमराज ने एक चाल चली। एक दिन यमराज किसी विषय पर बात करने भगवान राम के पास आ पहुंचे।
भगवान राम ने जब यमराज से आने का कारण पूछा तो यमराज ने कहा कि आपसे कुछ जरूरी बातें करनी है। भगवान राम यमराज को अपने कक्ष में ले गए। यमराज ने कहा कि मैं चाहता हूं कि जब तक मेरी और आपकी बात हो उस बीच कोई इस कक्ष में नहीं आए।
यमराज ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अगर कोई बीच में आ जाता है तो आप उसे मृत्युदंड देंगे। भगवान राम ने यमराज की बात मान ली और यह सोचकर कि लक्ष्मण उनके सबसे आज्ञाकारी हैं इसलिए उन्होंने लक्ष्मण जी को पहरे पर बैठा दिया।
यमराज और राम जी की बात जब चल रही थी उसी समय दुर्वसा ऋषि अयोध्या पहुंच गए और राम जी से तुरंत मिलने की इच्छा जताई। लक्ष्मण जी ने कहा कि भगवान राम अभी यमराज के साथ विशेष चर्चा कर रहे हैं। भगवान की आज्ञा है कि जब तक उनकी बात समाप्त नहीं हो जाए कोई उनके कक्ष में नहीं आए। इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप कुछ समय प्रतीक्षा करें।
ऋषि दुर्वसा लक्ष्मण जी की बातों से क्रोधित हो गए और कहा कि अभी जाकर राम से कहो कि मैं उनसे मिलना चाहता हूं अन्यथा मैं पूरी अयोध्या को नष्ट होने का शाप दे दूंगा। लक्ष्मण जी ने सोचा कि उनके प्राणों से अधिक महत्व उनके राज्य और उसकी जनता का है इसलिए अपने प्राणों का मोह छोड़कर लक्ष्मण जी भगवान राम के कक्ष में चले गए।
भगवान राम लक्ष्मण को सामने देखकर हैरान और परेशान हो गए। भगवान राम ने लक्ष्मण से पूछा कि यह जानते हुए भी कि इस समय कक्ष में प्रवेश करने वाले को मृत्युदंड दिया जाएगा, तुम मेरे कक्ष में क्यों आए हो।
लक्ष्मण जी ने कहा कि दुर्वसा ऋषि आपसे अभी मिलना चाहते हैं। उनके हठ के कारण मुझे अभी कक्ष में आना पड़ा है। राम जी यमराज से अपनी बात पूरी करके जल्दी से ऋषि दुर्वासा से मिलने पहुंचे।
यमराज अपनी चाल में सफल हो चुके थे। राम जी से यमराज ने कहा कि आप अपने वचन के अनुसार लक्ष्मण को मृत्युदंड दीजिए। भगवान राम अपने वचन से मजबूर थे। राम जी सोच में थे कि अपने प्राणों से प्रिय भाई को कैसे मृत्युदंड दिया जाए।
राम जी ने अपने गुरू वशिष्ठ जी से इस विषय में बात की तो गुरू ने बताया कि अपनों का त्याग मृत्युदंड के समान ही होता है। इसलिए आप लक्ष्मण को अपने से दूर कर दीजिए यह उनके लिए मृत्युदंड के बराबर ही सजा होगी।
जब राम जी ने लक्ष्मण को अपने से दूर जाने के लिए कहा तो लक्ष्मण जी ने कहा कि आपसे दूर जाकर तो मैं यूं भी मर जाऊंगा। इसलिए अब मेरे लिए उचित है कि मैं आपके वचन की लाज रखूं। लक्ष्मण जी भगवान राम को प्रणाम करके राजमहल से चल पड़े और सरयू नदी में जाकर जल समाधि ले ली।
इस तरह राम और लक्ष्मण दोनों ने अपने-अपने वचनों और कर्तव्य का पालन किया। इसलिए कहते 'रघुकुल रिति सदा चलि आई। प्राण जाय पर वचन न जाई।।
भगवान राम के तीन भाई थे। तीनों भाइयों में राम के सबसे प्रिय थे लक्ष्मण। लक्ष्मण भी राम का बहुत आदर करते थे इसलिए जब भगवान राम वनवास के लिए जाने लगे तो लक्ष्मण भी हठ करके राम के साथ वन गए।
लक्ष्मण ने हर सुख दुख में भगवान राम का साथ दिया। इसके बाद भी एक बार लक्ष्मण जी से एक छोटी सी गलती हो गयी तो भगवान राम ने उन्हें मृत्युदंड दे दिया। भगवान राम की आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण जी ने जल समाधि ले ली।
सवाल उठता है कि न्यायप्रिय और भक्तवत्सल कहलाने वाले राम ने आखिर अपने प्राणप्रिय भाई को उनकी छोटी सी गलती पर प्राणदंड क्यों दिया और वह गलती क्या थी जिसने भगवान राम को ऐसी कठोर सजा देने के लिए विवश कर दिया था।
अजब शर्त से राम जी फंसे यमराज के जाल में
यमराज यह जानते थे कि भगवान की इच्छा के बिना भगवान न तो स्वयं शरीर का त्याग करेंगे और न शेषनाग के अंशावतार लक्ष्मण जी। ऐसे में यमराज ने एक चाल चली। एक दिन यमराज किसी विषय पर बात करने भगवान राम के पास आ पहुंचे।
भगवान राम ने जब यमराज से आने का कारण पूछा तो यमराज ने कहा कि आपसे कुछ जरूरी बातें करनी है। भगवान राम यमराज को अपने कक्ष में ले गए। यमराज ने कहा कि मैं चाहता हूं कि जब तक मेरी और आपकी बात हो उस बीच कोई इस कक्ष में नहीं आए।
यमराज ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अगर कोई बीच में आ जाता है तो आप उसे मृत्युदंड देंगे। भगवान राम ने यमराज की बात मान ली और यह सोचकर कि लक्ष्मण उनके सबसे आज्ञाकारी हैं इसलिए उन्होंने लक्ष्मण जी को पहरे पर बैठा दिया।
लक्ष्मण जी हुए मजबूर कर बैठे यह भूल
यमराज और राम जी की बात जब चल रही थी उसी समय दुर्वसा ऋषि अयोध्या पहुंच गए और राम जी से तुरंत मिलने की इच्छा जताई। लक्ष्मण जी ने कहा कि भगवान राम अभी यमराज के साथ विशेष चर्चा कर रहे हैं। भगवान की आज्ञा है कि जब तक उनकी बात समाप्त नहीं हो जाए कोई उनके कक्ष में नहीं आए। इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप कुछ समय प्रतीक्षा करें।
ऋषि दुर्वसा लक्ष्मण जी की बातों से क्रोधित हो गए और कहा कि अभी जाकर राम से कहो कि मैं उनसे मिलना चाहता हूं अन्यथा मैं पूरी अयोध्या को नष्ट होने का शाप दे दूंगा। लक्ष्मण जी ने सोचा कि उनके प्राणों से अधिक महत्व उनके राज्य और उसकी जनता का है इसलिए अपने प्राणों का मोह छोड़कर लक्ष्मण जी भगवान राम के कक्ष में चले गए।
भगवान राम लक्ष्मण को सामने देखकर हैरान और परेशान हो गए। भगवान राम ने लक्ष्मण से पूछा कि यह जानते हुए भी कि इस समय कक्ष में प्रवेश करने वाले को मृत्युदंड दिया जाएगा, तुम मेरे कक्ष में क्यों आए हो।
लक्ष्मण जी ने कहा कि दुर्वसा ऋषि आपसे अभी मिलना चाहते हैं। उनके हठ के कारण मुझे अभी कक्ष में आना पड़ा है। राम जी यमराज से अपनी बात पूरी करके जल्दी से ऋषि दुर्वासा से मिलने पहुंचे।
और इस तरह राम ने दिया मृत्युदंड, लक्ष्मण ने ली जल समाधि
यमराज अपनी चाल में सफल हो चुके थे। राम जी से यमराज ने कहा कि आप अपने वचन के अनुसार लक्ष्मण को मृत्युदंड दीजिए। भगवान राम अपने वचन से मजबूर थे। राम जी सोच में थे कि अपने प्राणों से प्रिय भाई को कैसे मृत्युदंड दिया जाए।
राम जी ने अपने गुरू वशिष्ठ जी से इस विषय में बात की तो गुरू ने बताया कि अपनों का त्याग मृत्युदंड के समान ही होता है। इसलिए आप लक्ष्मण को अपने से दूर कर दीजिए यह उनके लिए मृत्युदंड के बराबर ही सजा होगी।
जब राम जी ने लक्ष्मण को अपने से दूर जाने के लिए कहा तो लक्ष्मण जी ने कहा कि आपसे दूर जाकर तो मैं यूं भी मर जाऊंगा। इसलिए अब मेरे लिए उचित है कि मैं आपके वचन की लाज रखूं। लक्ष्मण जी भगवान राम को प्रणाम करके राजमहल से चल पड़े और सरयू नदी में जाकर जल समाधि ले ली।
इस तरह राम और लक्ष्मण दोनों ने अपने-अपने वचनों और कर्तव्य का पालन किया। इसलिए कहते 'रघुकुल रिति सदा चलि आई। प्राण जाय पर वचन न जाई।।