एक नवजात शिशु मां की बांहों में भीड़ को टुकुर-टुकुर देख रहा है...कुछ ही दूर पर लड़कियां लहक-लहक कर शादी के गीत गा रही हैं...और एक दूसरे छोर पर कंबल पर लेटा एक बेजान जिस्म अपने आखिरी सफर का इंतजार कर रहा है। रोहिंग्या शरणार्थियों की इस बस्ती की गंदी गलियों में जिंदगी कुछ इस तरह रवां दवां है। कई दशक पुरानी इस बस्ती में जिंदगी अपने सभी रूपों में मौजूद है। यह बस्ती को जिंदगी का एक एहसास, एक नाम और एक रूप दे रही है।