बकरीद इस्लाम मजहब का प्रमुख त्योहार है। मुसलमान लोग इस त्योहार को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। लेकिन इस बार भी कोरोना संक्रमण के चलते बकरीद की चमक फीकी रह जाएगी। मान्यता के अनुसार, बकरीद को ईद-उल-अजहा, ईद-उल-जुहा, बकरा ईद, के नाम से जाना जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार हर साल बकरीद 12वें महीने की 10 तारीख को मनाई जाती है। बकरीद रमजान माह के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद मनाई जाती है। इस ईद में कुर्बानी देने की प्रथा है। बकरीद पर मुस्लिम समुदाय के लोग साफ-पाक होकर ईदगाह मे नमाज पढ़ते हैं। नमाज के बाद कुर्बानी दी जाती है। ईद के मौके पर लोग अपने रिश्तेदारों और करीबों लोगों को ईद की मुबारकबाद देते हैं। ईद की नमाज में लोग अपने लोगों की सलामती की दुआ करते हैं। एक-दूसरे से गले मिलकर भाईचारे और शांति का संदेश देते हैं। बाजारों में भी रौनक दिखाई देती है। आइए जानते हैं बकरीद से जुड़ी दस महत्वपूर्ण बातें...
1. इस्लाम मजहब की मान्यता के अनुसार, कहा जाता है अल्लाह ने हजरत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी थी। हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे, लिहाजा उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया।
2. अल्लाह के हुक्म की फरमानी करते हुए हजरत इब्राहिम ने जैसे ही अपने बेटे की कुर्बानी देनी चाही तो अल्लाह ने एक बकरे की कुर्बानी दिलवा दी। कहते हैं तभी से बकरीद का त्योहार मनाया जाने लगा। इसलिए ईद-उल-अजहा यानी बकरीद हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में ही मनाया जाता है।
3. बकरीद के मौके पर बकरे की कुर्बानी एक प्रतीकात्मक कुर्बानी होती है। लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर किसी को इस मौके पर बकरे की कुर्बानी देनी ही होती है। इंसानियत के नाते आप अपना समय और धन भी कुर्बान कर सकते हैं।
4. बकरीद मे ऐसे जानवर की कुर्बानी नहीं दी जा सकती जिसमें कोई शारीरिक बीमारी या भैंगापन हो, सींग या कान का अधिकतर भाग टूटा हो या जो शारीरिक तौर से बीमार हो। बहुत छोटे पशु की भी बलि भी नहीं दी जा सकती। कम-से-कम उसे दो दांत यानि एक साल या फिर चार दांत का होना चाहिए।