डिजिटल रिव्यू: असुर (वेब सीरीज)
कलाकार: अरशद वारसी, बरुन सोबती, अनुप्रिया गोयनका, ऋद्धि डोगरा, शारिब हाशमी, अमेय वाघ, पवन चोपड़ा, गौरव अरोड़ा, दीपक काजिर, विशेष बंसल, देव्यांश तापुरिया आदि।
कथा, पटकथा और संवाद: गौरव शुक्ला, विनय छावल, निरेन भट्ट
निर्देशक: ओनी सेन
ओटीटी: वूट
रेटिंग: ****
अंत: अस्ति आरंभ अर्थात अंत ही आरंभ की शुरुआत है। वॉयकॉम 18 स्टूडियोज की कंपनी टिपिंग प्वाइंट की नेटफ्लिक्स पर प्रसारित हुईं तीनों सीरीज की गुणवत्ता, कथ्य और सृजन जहां खत्म होते है, वॉयकॉम के अपने ओटीटी वूट पर वहां से असुर की शुरुआत होती है। पौराणिक कथाओं से आज के जीवन को जोड़कर कहानियां बुनने की परंपरा हॉलीवुड की तमाम बेहतरीन फिल्मों में देखी जा चुकी है। दक्षिण भारतीय सिनेमा ने भी इस श्रेणी के सिनेमा को करीने से बुना है। अब बारी हिंदी की है। वूट की इस आठ एपिसोड की सीरीज की कल्पना गौरव शुक्ला की है लिहाजा सबसे ज्यादा बधाई उन्हीं को बनती है, साथ में लेखन टीम के विनय व निरेन भी साधुवाद के पात्र हैं।
सीरीज के पांचवें एपिसोड में एक संवाद है, “आज की तारीख में अच्छा होना सबसे बुरी बात है।” समाज में पीठ पीछे बुरा कहलाने के लिए तमाम लोगों का भला करना होता है, ये भी सच ही है। वाराणसी में कर्मकांड कराने वाले ब्राह्मण की उसका बेटा ही हत्या कर देता है। उसे श्रीमद्भगवतगीता कंठस्थ है। लेकिन, पिता उसे असुर कहता था। आईक्यू लेवल उसका 139 है। सीबीआई की फोरेंसिक टीम के मुखिया धनंजय राजपूत को खेत में लटकाई गई एक लाश मिलती है, जिसकी तर्जनी उंगली कटी हुई है। ऐसे कुछ कत्ल और हाल फिलहाल में हो चुके हैं। निखिल जो कभी धनंजय के साथ काम करता था, सीबीआई से इस्तीफा देकर अमेरिका में एफबीआई में काम कर रहा है। सीबीआई चीफ शशांक अवस्थी उसे बार बार वतन लौट आने के लिए कहता रहता है। हत्याओं का सिलसिला जारी रहता है तो निखिल भारत आ भी जाता है और आते ही धनंजय को अपनी पत्नी के कत्ल के जुर्म में गिरफ्तार करा देता है। धनंजय भी इस बात से हैरान है कि महिला की जिस विकृत लाश का उसने पोस्टमार्टम किया, वह उसकी पत्नी की थी।
ओटीटी वूट पर प्रीमियम कंटेट की शुरुआत असुर और मर्जी नाम की दो सीरीज से हुई है। असुर की कहानी का असर शुरू के दो एपिसोड के बाद होना शुरू होता है और सातवें एपीसोड तक की कहानी फिर आपको चैन नहीं लेने देती। आखिरी एपिसोड आकर थोड़ा लंबा हो गया और कहानी भी बिखरती सी दिखी। पर, कोरोना के चलते अगर आप घर में समय बिता रहे हैं तो इस सीरीज को बिंज वॉच कर सकते हैं। जेल में मौजूद धनंजय को एक कैदी से मिलने वाली तीसरे एपिसोड की गालियां अगर छोड़ दें, तो बाकी सीरीज साफ सुथरी है और घर के स्मार्ट टीवी पर भी देखी जा सकती है।
हॉट स्टार की सीरीज स्पेशल ऑप्स की तरह यहां भारी भरकम बजट तो नहीं है लेकिन यहां कहानी स्टार है। सुरों और असुरों के संग्राम, विष्णु पुराण की कहानियां, कलि का कल्कि को अवतार लेने के लिए संदेश भेजना, सब बहुत करीने से कहानी में बुना गया है। कहानी मौजूदा परिवेश पर भी एक गहरी चोट करती है और वो ये कि धर्म अब भी आसक्ति का कारण बन सकता है। अपने प्रवचनों से कोई भी भक्तों की ऐसी फौज खड़ी कर सकता है जो उसके लिए बिना उचित-अनुचित समझे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। सीरीज बिना ये बताए कि कातिल लोगों की तर्जनी क्यों काट लेता है, खत्म हो जाती है। शायद इसका उत्तर अगले सीजन में मिले।
वेब सीरीज असुर डिजिटल कंटेंट में एक नई तरह की सामग्री की वैसी ही आहट है, जैसी तुंबाड बड़े परदे की। यहां गौरव, विनय और निरेन की तिकड़ी ने दुष्ट प्रकृति का ऐसा मायावी रूप रचा है जिसमें वह किसी भी रूप में सामने आ सकता है। यहां विचार ही विलेन है। निर्देशक ओनी सेन ने अपने सिनेमैटोग्राफर सात्यक भट्टाचार्य, एडीटर चारू टक्कर और बैकग्राउंड म्यूजिक बनाने वाले धरम भट्ट के साथ मिलकर ने एक कायदे से लिखी कहानी को परदे पर कायदे से ही उतारने में दस में कम से कम आठ नंबर तो जरूर हासिल किए हैं। सीरीज के संवादों में थोड़ी बेहतरी की गुंजाइश बाकी है। शुभ अगर संस्कृतनिष्ठ हिंदी बोलता है तो वह ‘शीघ्र मुलाकात होगी’ कभी नहीं बोलेगा, वह बोलेगा, ‘शीघ्र भेंट होगी’। ऐसे संवाद और भी हैं जो शुभ के किरदार को कमजोर करते हैं।
अभिनय के लिहाज से अरशद वारसी ने अपने डिजिटल डेब्यू में शानदार काम किया है। अरशद का असली टैलेंट हिंदी सिनेमा में कम ही इस्तेमाल हुआ है। राज कुमार हीरानी और अनीस बज्मी जैसे निर्देशकों ने उनके ऊपर कॉमेडियन का ठप्पा लगा दिया है। उनके संजीदा अभिनय की अब तक की सबसे अच्छी बानगी फिल्म सहर रही है, अब उस लिस्ट में वेब सीरीज असुर भी शामिल हो गई है। बरुन सोबती इस वेब सीरीज के हीरो हैं। जितना मौका उन्हें इस फिल्म में अपने अभिनय का विस्तार दिखाने का मिला है, किसी दूसरे कलाकार को नहीं मिला। और, वह इस कसौटी पर खरे भी उतरे। अनुप्रिया गोयनका फिर एक बार हैरान परेशान महिला किरदार में हैं, इस तरह के किरदार बार बार करने से उन्हें बचना चाहिए। उनसे ज्यादा नुसरत के किरदार में ऋद्धि डोगरा प्रभावित करती हैं। द फैमिली मैन के बाद शारिब हाशमी ने फिर एक बार कमाल का अभिनय किया है। अमेय वाघ का असली काम फाइनल एपिसोड में सामने आता है।
डिजिटल की दुनिया में प्राइम वीडियो की सीरीज ब्रीद ने एक मानक स्थापित किया था। ये मानक है बिना स्त्री पुरुष के कपड़े उतारे या बिना उन्हें हम बिस्तर होते हुए दिखाए रिश्तों के ताने बाने परदे पर पेश कर देना। सेक्रेड गेम्स ने एकता कपूर वाला रास्ता पकड़कर पहले सीजन में कामयाबी पाई लेकिन इसका दूसरा सीजन उसी वजह से औंधे मुंह गिरा। इम्तियाज अली की शी का भी कमजोर पहलू यही है कि वह अनुराग कश्यप बनने की कोशिश करते पकड़े गए। नीरज पांडे ने स्पेशल ऑप्स में इससे दूरी बनाए रखी और यहां असुर में वूट की क्रिएटिव टीम ने। हिंदी वेब सीरीज का स्तर धीरे धीरे ही सही पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर का हो रहा है।
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