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She Review: कमजोर कहानी में खो गए दमदार किरदार, इम्तियाज की पहली वेब सीरीज को मिले इतने स्टार

पंकज शुक्ल, मुंबई Published by: Mishra Mishra Updated Fri, 20 Mar 2020 07:51 PM IST
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डिजिटल रिव्यू: शी (वेब सीरीज)
कलाकार: अदिति पोहनकर, विजय वर्मा, विश्वास किनी, शिवानी रंगोले, अजय जाधव, साकिब अयूब, परितोष संड और किशोर कुमार
निर्देशक: आरिफ अली, अविनाश दास
सृजक: इम्तियाज अली
ओटीटी: नेटफ्लिक्स
रेटिंग: **


वायकॉम 18 स्टूडियोज की कंपनी टिपिंग प्वाइंट ने पिछले साल काफी पैसा खर्च करके तीन वेब सीरीज बनाईं, जामताड़ा, ताजमहल 1989 और शी। तीनों को बनाने में इतना पैसा खर्च हो गया कि कंपनी ने इन्हें अपने ही ओटीटी प्लेटफॉर्म वूट पर रिलीज करने से मना कर दिया। टिपिंग प्वाइंट के कर्ताधर्ताओं ने नेटफ्लिक्स में गोटी सेट की और ये तीनों सीरीज इन्हें चिटका दीं। इस कड़ी की आखिरी सीरीज शी के सातों एपीसोड शुक्रवार को रिलीज हुए। सीरीज देखने के बाद समझ आता है कि इम्तियाज अली ने इन्हें उसी मूड में लिखा जिस मूड में उन्होंने अपनी पिछली फिल्म लव आज कल बनाई।

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इम्तियाज अली और साइको क्राइम थ्रिलर दोनों का कोई जोड़ नहीं है। लेकिन कहानी का ये तोड इम्तियाज अली के दिमाग में उनके मुताबिक जब वी मेट से पहले का है। इस कहानी का जो बिंब उनके दिमाग में रहा, वह उन्हें भारतीय सेंसर बोर्ड के हिसाब से सिनेमा में उतारने की हिम्मत नहीं दे पाया। और जब ओटीटी में उन्हें मौका मिला तो पहली सर्विस उन्होंने सीधे नेट पर दे मारी। वो शेर है ना, बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का, जो चीरा तो इक क़तरा-ए-ख़ूँ न निकला।

शी की कहानी है भूमिका परदेसी की। मुंबई पुलिस की कंधे पर बिना फीते वाली सीनियर कांस्टेबल है। पति ने उसको छोड़ इसलिए दिया क्योंकि उसे अपनी बीवी में औरत जैसा कुछ नहीं मिला। छोटी बहन बन ठन कर रहती है। होटल चलाने वाले हेमंत से चोंच लड़ाती है और बदले में महंगा फोन पाती है। मां घर पर बीमार है। और, भूमि खुद दफ्तर में अपने काम से लाचार है। एसीपी फर्नांडिस को उसमें एक खास बात नजर आती है और वह उसे एक सीक्रेट मिशन पर लगा देता है। मिशन है सस्या नाम के एक गैंगस्टर के जरिए ड्रग डीलर नायक को पकड़ने का। कहानी सुनने में अच्छी लगती है। बिल्कुल क्राइम थ्रिलर जैसी। इम्तियाज ने इसमें देह का मनोविज्ञान डाला है।
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भूमि को पहली बार अपनी देह में उठने वाली तरंगों का भान तब होता है जब वह सस्या के चंगुल में होती है। फिर, अपने इस नए ज्ञान को वह कभी छोटी बहन के बॉयफ्रेंड पर आजमाती है। कभी होटल में रिसेप्शन पर बैठने वाले छोकरे पर तो कभी खुद एसीपी को भी वह इसकी झलक दिखाने से बाज नहीं आती। वह झिझकती है। बिदकती है और फिर सीरीज के आखिरी एपीसोड तक आते आते बदलती भी है। ड्रग माफिया नायक जब उसके नीचे होता है तो वह अपनी नई पहचान का ऐलान करती है। शीशे में देख खुद पर इतराती है।

 
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इम्तियाज अली के बाद अगर किसी वजह से ये सीरीज उत्सुकुता बटोरने में कामयाब रही तो वह हैं फिल्म गली बॉय से मशहूर हुए विजय वर्मा। गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले सस्या के किरदार में विजय ने काम भी काबिले तारीफ किया है। बोलने का उनका हैदराबादी लहजा जमता है। लेकिन, सस्या का किरदार नहीं जमता। न वह पुलिस का खबरी कायदे का बन पाता है और न नायक का खरा लेफ्टिनेंट। हलाल तो होना ही था। मराठी फिल्म लय भारी में अपने किरदार से हिंदी सिनेमा का ध्यान खींचने वाली अदिति का किरदार प्रभावी है। एक घरेलू लड़की ड्यूटी करते करते खुद से प्यार करने लगती है। उसे एहसास हो जाता है कि उसके पास जो है उससे वह जहान जीत सकती है। उसके बदले रंग पर हर कोई फिदा है और वह इन्हीं नए रंगों से एक नई तस्वीर बनाने निकल पड़ी है। उसका किरदार जहां आकर रुकता है वह सीरीज के दूसरे सीजन की दस्तक देता है। सीरीज के आखिरी दो एपीसोड में आकर कहानी का असली विलेन सामने आता है। लेकिन, तब तक दर्शक का मन ऊबने लगता है। नायक के किरदार में कन्नड़ कलाकार किशोर कुमार साउथ के मशहूर विलेन रहे रघुवरन की याद दिलाते हैं। वैसा ही ठंडा दिमाग और वैसा ही क्रूर अंदाज। उसने पूरा गेम साल के दिन, हफ्ते और महीनों की संख्या में बुना है। पुलिस विभाग के लिए वह एक मिथ रहा है लेकिन भूमि इस मिथ को बस एक बार हमबिस्तर होकर न सिर्फ तोड़ देती है बल्कि उसको हजम भी कर जाती है। बस, यहीं आकर कहानी कमजोर हो जाती है।
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सीरीज की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी है इसका पुलिस की कार्यशैली वाला ट्रैक। न तो एसीपी के किरदार में विश्वास भरोसा जगा पाते हैं और न ही परितोष संड उनके सीनियर के किरदार में। हां, अजय जाधव फिर एक बार प्रभावित करते हैं। साकिब अयूब का किरदार भी कायदे से गढ़ा नहीं गया है। छोटी बहन बनी शिवानी रंगोले जरूर जब भी कहानी में आती है कुछ कर दिखाने की उम्मीद जगाती है, पर किरदार इतना कमजोर है कि कलाकार उभर नहीं पाता। भूमिका का पारिवारिक ट्रैक थोड़ा और मजबूत होता है तो परिवार और कर्तव्य का टकराव सीरीज को दमदार बना सकता था। हो सकता है अगली सीजन में कुछ बात बने, पर ये सीजन आखिर तक देखना काफी धैर्य का काम है। अपनी रिस्क पर ही देखें।

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